"किताबें "
किताबें
खटखटा रही हैं
दरवाजे दिमाग के
लायी हैं कुछ
सवाल कुछ जबाब
छू रहीं है
दिल को
भिगो रही हैं
मन को
अजीब है न चाँद
बचपन का मामा
और मामा को चंदू मामा
फिर जवानी की दहलीज
न पार नहीं की है
बस कदम रखा है
और अब यार चाँद बन गया
क्या कहूँ
चाँद को
कभी कभी लगता है
मामा ही बना रहे
और कभी
बिना देखे शब् भर चैन नहीं आता
लगता है गर्दिश ही गर्दिश है
ये किताबें भी न
कभी कभी
आँखें फटी रह जाती हैं
पढ़ के
क्या आँखें झील
गजाल सी
कभी स्याह
कभी निर्झर सी
कभी कभी
नूर बरसाती
कितनी रंगीन है दुनिया
हसीन है दुनिया
जिस्म शरारा
जिस्म शबाब
जिस्म शराब
होंठ गुलाब
जिन भूत
शैतान
बच्चे भी
कितने शैतान होते हैं
पढ़ लेते हैं
अखबार और पूछते हैं
ये किताबों में तो नहीं
आखिर क्या है
ये कोहिनूर
तब भी आँखें फटी रह जाती है
बता देते हैं
हीरा है गौहर है
खैर पता है
जानते हैं दफ़न कुछ भी नहीं
सिवाए राज के
माटी भी भला दफ़न होती है क्या
बस मिल जाती है माटी में
ये किताबें भी न
संदीप पटेल "दीप"
Comment
संदीप जी नमस्कार
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .........रचना के लिए बधाई
फूल सिंह
बच्चे भी
कितने शैतान होते हैं
पढ़ लेते हैं
अखबार और पूछते हैं
ये किताबों में तो नहीं
आखिर क्या है
ये कोहिनूर
तब भी आँखें फटी रह जाती है
बता देते हैं
हीरा है गौहर है ,संदीप जी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बहुत खूब ,बधाई
badhaai bhaai.........
umda tana bana kavita ka
जिस्म शरारा
जिस्म शबाब
जिस्म शराब
होंठ गुलाब
__waah...sundar shabd !
_badhaai !
जानते हैं दफ़न कुछ भी नहीं, सिवाए राज के
माटी भी भला दफ़न होती है क्या
बस मिल जाती है माटी में
ये किताबें भी न
संदीप कुमार पटेल जी, अच्छी लगी, बधाई
वाह सर, कितनी खूबसूरती से पूरी बातें कह गये। किताबों मे वो पुरानी बातें पढ़कर आज भी मन बचपन मे चला जाता है। फिर हम वही चाँद की तुलना उस और इस चाँद से करने लगते हैं। और भी बहुत सी बातें।
बहुत सुखद लगी आपकी ये रचना। बधाई स्वीकार कीजिये।
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