बच्चे ने पूछा - दादी, आप भगवन को प्यारी कब होंगी ? बूढी दादी बोली-बेटा,भगवान् की पूजा करना ही अपने हाथ में है,बाकी सब भगवान पर है | बच्चे ने फिर पूछा- दादी आप "टै" कब बोंलेगी ? दादी कुछ देर विस्मय से बच्चे को गुहारती रही,फिर सोच कर बोंली- सौरभ बेटे "टै" बोलने से क्या होता है ? चल तू कहता है तो अभी ही बोल लेती हूँ -टै | इस पर सौरभ बोंला - दादी. रात को माँ पापा से कह रहा था कि आप नयी कार कब खरीदोंगे | मम्मी-पापा बात कररहे थे कि दादी के पास बहुत सारा धन है | पर जब वह "टै" बोल जायेगी तब ही अपने को उसका धन मिल सकेगा |और तब ही नयी कार खरीद कर लायेंगे | तब तक तो हमें कार लाने के लिए इन्तजार ही करना पडेगा |
Comment
सुन्दर कथा... यह भी एक अजब संयोग है....
टें बोल दो न!
बच्चे ने रट लगा दी,
बार बार कहे-
दादी!
टें बोलकर दिखाओ!
दादी भी अड़ गयी-
क्यों बोलूं पहले ये बताओ?
आखिरकार बच्चे ने राज खोला
मासूमियत से बोला-
कल रात जब
मैं झूटमूट सो रहा था,
तब पापा ने
मम्मी से कहा था-
कि अम्मा जब
टें बोलेंगी तो
खूब सारे रुपये मिलेंगे,
फिर हम
ये घर बेच के
दूसरा घर ले लेंगे.
किसी तरह
दादी ने रोक लिया रोना,
बच्चा जिद करता रहा-
अब तो टें बोल दो ना...!!! (अशोक चक्रधर)
सादर
श्री अरुण शर्मा 'अनंत' और अशोक कुमार राकताले जी
बेहद सुन्दर रचना सर बहुत-२ बधाई
आदरणीय
सादर नमस्कार, समझ नहीं आता आजकल लोगों को बुजुर्गों के टें बोलने का इंतजार क्यूँ रहता है पैसा हो तब भी ना हो तब भी. सुन्दर लघु कथा.
बहुत बहुत आभार आदरणीय रेखा जोशीजी -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी और योग राज प्रभाकर जी, आप दोनों की सुझावात्मक टिप्पणी अच्छी लगी | कहानी में बच्चे सौरभ के माता-पिता पर निश्चित रूप से कही अडौस-पडौस का अथवा संगत का असर ही होगा, जो कहानी में परिलक्षित नहीं होता, आपका यही आशय है अथवा कुछ और, कृपया मार्ग दर्शन करे | लघु कथा पढ़कर सुझाव देने और होंसला बढ़ने के लिए हार्दिक आभार |
विषय वस्तु संतोषजनक है किन्तु कथ्य और शिल्प दोनों ही स्तरों पर अभी भी बहुत कसावट की गुंजायश है, इस सन्दर्भ में आदरणीय सौरभ पांडे जी के इशारों को समझे. बहरहाल लघुकथा रोचक है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है जिसके लिए हार्दिक साधुवाद.
ऐसे विचार दादी ने पापा को या नानी ने माँ को तो नहीं ही दिये होंगे. फिर यह कैसे संसृत हुआ ? विचारणीय है.
इस लघुकथा के लिये सादर बधाई, आदरणीय लक्ष्मणजी. रचनाओं की कसावट के प्रति सतत संवेदनशील रहना होगा.
आदरणीय लक्ष्मण जी ,सादर नमस्ते ,इस रंग बदलती दुनिया में अपनों की ही नीयत ठीक नही ,बहुत बढ़िया लघु कथा ,बधाई
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