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जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे - वीनस

मित्रों, एक ताज़ा ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ....


जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे

खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने लगे

फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे

वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे

वक्त की पोटली से हैं लम्हात गुम
होश अब भी तो मेरा ठिकाने लगे

चंद खुशियाँ जो मेहमां हुईं मेरे घर
रंजो गम कैसा तेवर दिखाने लगे

मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे

""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
बह्र -ए- मुतदारिक मुसम्मन सालिम

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on August 18, 2012 at 11:54pm

शुक्रिया सौरभ जी
अनेकानेक शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2012 at 8:37am

माला बनाने के क्रम में मोती की जगह शेर पिरो दिये. वाह ! लो, ग़ज़ल हो गयी. क्या कहा है आपने वीनस जी और क्या ही खूब कहा है. भाव हैं, वज़्न है और तेवर है. इन अश’आर को विशेष रूप बार-बार याद कर रहा हूँ.

वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे
मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे  

 

Comment by वीनस केसरी on August 14, 2012 at 1:23am

डॉ सूर्या बाली जी
अम्बरीश श्रीवास्तव जी
आदरणीय योगराज जी
संदीप जी
सुरेन्द्र जी
विवेक जी
और
उमाशंकर जी

आप सभी ने ग़ज़ल को सराहा और इतना मान दिया इस जर्रा नवाजी के लिए तहे दिल से शुक्रिया

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 13, 2012 at 11:27pm

वक्त की पोटली से हैं लम्हात गुम
होश अब भी तो मेरा ठिकाने लगे....क्या बात है वीनस जी इतनी गहराई की उम्मीद आपसे ही की जा सकती है

समय हाथ से निकला जा रहा है फिर भी मै  होश में नहीं आया

Comment by विवेक मिश्र on August 13, 2012 at 7:07pm

/जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे/-
बढ़िया मतला..

/खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने लगे/-
बाल मजदूरी पर अच्छा शे'र..

/फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे/-
वाह.. आज के सियासी माहौल पर फिट बैठता और मेरी नज़र में हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र.

/वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे/-
एकदम सटीक शे'र. आजकल सच कौन सुन पाता है साहब.. राहत इन्दौरी साहब के दो शे'र याद आते हैं कि-
"झूठों ने झूठों से कहा है, सच बोलो-
सरकारी ऐलान हुआ है, सच बोलो-
घर के अन्दर झूठों की एक मण्डी है
दरवाजे पर लिखा हुआ है, सच बोलो-"

/वक्त की पोटली से हैं लम्हात गुम
होश अब भी तो मेरा ठिकाने लगे/-
मिसरा-ए-उला कमाल का हुआ है, शायद मेरी समझ का फेर हो, पर सानी अपेक्षाकृत कमजोर सा लग रहा है.

/चंद खुशियाँ जो मेहमां हुईं मेरे घर
रंजो गम कैसा तेवर दिखाने लगे/-
बहुत खूब.. अच्छा शे'र है.

/मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे/-
वाह.. क्या खूब है.. इसे कहते हैं 'क्लोज-अप कॉन्फिडेंस' वाला शे'र. :)
एक अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 13, 2012 at 7:06pm

फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे

मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे

प्रिय वीनस जी गूढ़ अर्थ के साथ सामाजिक परिदृश्य झलका अच्छी तस्वीर खिंची  ..खूबसूरत गजल,  बधाई ..
जय श्री राधे 
सुन्दर गजल ...
भ्रमर ५ 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 13, 2012 at 6:18pm

फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे----- अय-हय-हय क्या बात है जनाब!! हक़ीक़त की क्या मुकम्मल तस्वीर पेश की!

मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे-----  भई हम भी उन्हीं लोगों में से हैं! :-)

लाजवाब-बेमिसाल अश'आर से लैस एक जानदार-शानदार ग़ज़ल की पेशकश पर दिली मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं मित्र!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 13, 2012 at 4:02pm

भई वाह, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है वीनस जी. ढेर सारी दाद पेश है - स्वीकार करें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:32pm

//फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे

वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे//

वाह वीनस भाई वाह ..........बहुत बेहतरीन व सामयिक गज़ल कही है आपने .........एक एक शेर अपने आप में बेमिसाल है ...बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं .....

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 13, 2012 at 10:20am

वीनस भाई बहुत उम्दा ग़ज़ल से नवाजा है इस मंच को आपने ...एक एक शेर माशाल्लाह  लाजवाब है ...खास कर ये शेर तो ग़ज़ब का है भाई...

वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे॥

दिली दाद कुबूल करें !!

 

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