For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३४

प्यार की इक खोई नज़र आज फिर लौट आयी, झुकी आँखों का दबा दबा भंवर आज फिर याद हो आया. ज़मीन पे बिछे तोशक पे, दीवार से लगके बैठे, कँवल सी फ़ैली हथेलियों में अपनी ठोढ़ी संभाल के, अपनी लरज़ती ज़ुल्फों के काकुल के झरोखे से ज़मीन को ताकते हुए तुम किसे सोचती थीं? मैं जानता हूँ, वो मैं ही था और और थीं तो हमारे बेसाख्ता पैदा हुए प्यार के गैरमुऐयन मुस्तकबिल (अनिश्चित भविष्य) की तश्वीशात (चिंताएं)! फिक्रमंद, अपनी सतर उँगलियों से मिट्टी पे जो अबूझ से नक्श तुमने उकेरे थे, ...इक शाम मेरे साथ, आज वो ख़्वाबों की इक नामुकम्मिल इबारत बनकर हमारी ज़िंदगी और प्यार की गुमनामियों की दास्ताँ कह रहे हैं.

 

बैंगलोर के गर्ल्स हॉस्टल की सुबहोशाम और वहाँ गुज़ारे कुछ पल- हमारे साथ रहने की कहानी इससे ज़्यादा लम्बी न रही, मगर वो पल जैसे हज़ार ज़िंदगी पे भारी हैं और आज की शाम भी तनहा ही बंगलोर के कूचों में टहलते हुए अपने इमरोज़ को उनसे हारते हुए देखा!

 

© राज़ नवादवी

बैंगलोर, रात्रिकाल ०९.०४, बुधवार, १५/०८/२०१२    

Views: 385

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on August 21, 2012 at 9:10pm

आदरणीया रेखा जी एवं आदरणीया राजेश जी , खेद है कि काम की व्यस्तताओं की वजह से वक़्त पे आपकी बधाइयों का जवाब न दे सका, मगर पढ़कर जो हौसलाअफजाई हुई है उसका हाल बयाँ नहीं कर सकता. मुझे बेहद खुशी है कि आप दोनों को मेरी इन्फिरादी ज़िंदगी का ये पहलू पसंद आया. आपकी दुआएं हमेशा दिल को रौशन करेंगी!

आपका ही, 

- राज़ नवादवी 

Comment by Rekha Joshi on August 16, 2012 at 8:31pm

मगर वो पल जैसे हज़ार ज़िंदगी पे भारी हैं और आज की शाम भी तनहा ही बंगलोर के कूचों में टहलते हुए अपने इमरोज़ को उनसे हारते हुए देखा!,अति सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय राज़ जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 3:39pm

अपनी सतर उँगलियों से मिट्टी पे जो अबूझ से नक्श तुमने उकेरे थे, ...इक शाम मेरे साथ, आज वो ख़्वाबों की इक नामुकम्मिल इबारत बनकर हमारी ज़िंदगी और प्यार की गुमनामियों की दास्ताँ कह रहे हैं.---बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आँखों के सम्मुख चित्र सा बनाती हुई आपकी ये पंक्तियाँ मेरी एक रचना मिलन का इन्द्रधनुष कि याद दिला गई आपके लिखने का अंदाज बहुत पसंद आता है ----हार्दिक बधाई इस प्यारी रचना के लिए 

Comment by राज़ नवादवी on August 16, 2012 at 3:19pm

आदरणीय सौरभ भाई साहेब, आपका तबसरा खुद में इक खूबसूरत नस्र है. आपने सही फरमाया- मुग्धा, हिन्दी साहित्य में अनेक नायिकाओं में एक, मगर शायद प्यार की रूमानियत को खामोशियों में बयाँ करता इक लासानी तसव्वुर. इंसानी और रूहानी इश्क में फर्क कहाँ रह जाता है. 

आपकी तहसीन ओ दाद का शुक्रिया तो अदा करता हूँ, मगर क़र्ज़ तो बना रहेगा- बहुत बहुत शुक्रिया जनाब! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 16, 2012 at 10:06am

भंगिमाओं में हो रही लरजपन पर आपके उत्कृष्ट लेखन को मेरी हार्दिक बधाई, राज़ साहब. मुग्धा के मनोभाव की गहरी समझ साझा करती गद्य की अंतर्धारा में बहती इस कोमल कविता के लिये अनेकानेक बधाइयाँ. आपकी स्वकेन्द्रित अभिव्यक्तियाँ पाठक के मन-भाव को गहरे संतुष्ट करती हैं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service