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"जिन्दगी का कोरा सच

"जिन्दगी का कोरा सच "

सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार 
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही 
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर बार
कलम रुकी
सच में
हाँ सच में
जो कोरा है
हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है 

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 6, 2012 at 11:42am
जिंदगी का कोरा सच समझना तो आसन नहीं, शायद कोई सूफी संत भी बमुश्किल से ही समझ पाया 
हो भाई संदीप कुमार पटेल जी, जो जिंदगी से लड़ते आत्मसात कर सकता है,वही शायद समझ सकता है 
कहते है रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी,पुनः जन्म लेकर जहार्के प्याला पी, और मीरा बाई भी 
कृष्ण भक्ति में रमे जहाँ का प्याला पी जिन्दगी से आत्मसात कर पायी थी | बहरहाल रचना के लिए बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 6, 2012 at 11:28am

ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया, पर मौत ज़िन्दगी का कोरा सच है जो कभी न लिख पाया......  बहुत सुन्दर चिंतन मनन को दर्शाती रचना. हार्दिक बधाई संदीप पटेल जी.

आपके स्व सत्यान्वेष्णात्मक  चिंतन मनन को आपकी रचनाएं बिम्बित करती हैं. पर इस रचना के अंत के शब्द व चिंतन कुछ अधूरा सा लगता है. 
हमारे भारतवर्ष में ऐसे अनेक महान सिद्ध, अवधूत हुए हैं जिन्होंने सिर्फ मृत्यु  ही नहीं, मृत्यु पार के भी हर गुह्यतम  रहस्य को खोजा है. हमारे उपनिषद इसका प्रमाण हैं. 
कई लोगों नें (मुमुक्षुओं नें ) out of the body experiences और साधनाओं की उच्चतम अवस्थाओं में मृत्यु को भली भांति जाना है, और उस ज्ञान को शब्दबद्ध किया है.
WALKING WITH A HIMALAYAN MASTER - by Justin में भी इसका ज़िक्र है.
यह सत्य है की आज कोई मृत्यु के बारे में नहीं लिखता, बात नहीं करता.... क्योंकि इससे सब भागते हैं, डरते हैं. 
पर यह भी सत्य है कि जो जानना चाहता है, वो ही इसे पूर्णता से और ख़ूबसूरती से अवश्य जान भी पाता है, और जल में कमलवत जीवन का आनंद उठाता है. 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:42pm

आदरणीय अशोक जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना मिली इस रचना को लेखन कर्म सफल हुआ
आपका ये स्नेह और सहयोग यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 12:40pm

जींदगी को कई रूपों में ढाल कर ले जाति इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें आ. संदीप जी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:10pm

आदरणीय भाई संदीप जी सादर नमस्कार 
आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी इस अधपकी रचना को भी पूर्ण कर दिया है
हार्दिक प्रसन्नता हुई आपकी सराहना मिली मुझे
अपना ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत  बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 4, 2012 at 11:50am

जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है

वाह भाई दीप जी शुरू से ले कर अंत तक सरपट पढ़ता ही चला गया! प्रवाहमयी रचना पर हार्दिक बधाई!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:45am

आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
आपने रचना को सराहा और इसका रसास्वादन किया
इसके लिए मैं आपका अनुज नित आभारी हूँ
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
ह्रदय से धन्यवाद आपका

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 4, 2012 at 11:42am

//हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है //

उत्तम प्रवाह से युक्त इस शानदार रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें भाई संदीप जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:36am

आदरणीय नीरज जी सादर नमस्कार
आपको लेखन पसंद आया और आपकी सराहना मिली
अपना स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद  सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:35am

आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस अनुपम हर्ष से भरी प्रतिक्रिया मिली मन में एक उत्साह जाग गया
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

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