"जिन्दगी का कोरा सच "
सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर बार
कलम रुकी
सच में
हाँ सच में
जो कोरा है
हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद लेखन की गहराई का अंदाजा सा लग जाता है
ये कविता मैंने कल ही महज १० मिनट में लिखी है
और कुछ शांति भंग करने वाले तत्वों के आगमन की वजह से अंत प्रभावित हो गया
या ऐसा कहूँ आपके कहे अनुसार इसे ढंग से पकाया नहीं और परोस दिया है
इसीलिए अंत में थोड़ी फीकी हो गयी
आपका निरंतर सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद से ही मैं इस तरह से लेखन कुछ आजमाइश कर लेता हूँ
किन्तु अगले प्रयास में आप और कसावट महसूस करेंगे ऐसा आपसे मेरा वायदा है
स्नेह यूँ ही मुझ पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय गौरव अजीतेन्दु जी सादर नमस्कार
आपकी प्रसंसा मिली मन को सुखद अनुभूति हुई
ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर
सादर आभार आपका
आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर नमन
आपकी सराहना मिली लेखन सफल हुआ
आपका ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
सत्य ही कहा आपने वो सच लिखने में तो जितना लिखा जाये उतना कम है
फिर भी आप सभी सुधीजनों के बीच अपने कुछ विचार इस तरह रख दिए हैं
जिनको आपकी सराहना मिली
आपका ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार
आदरणीय फूल सिंह जी सादर नमस्कार
आपकी मिली सराहना ह्रदय में धारते हुए ख़ुशी हो रही है
आपका बहुत बहुत आभार
अपना स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
वाह, कविता सरपट दौड़ती हुई अपने मंजिल तक पहुची है, अंतिम पक्तियों तक आते आते ह्रदय को स्पर्श करती है यह रचना, बधाई हो संदीप जी |
कवि की वैचारिकता, आत्म-मंथन एवं आत्मान्वेषण की प्रक्रिया-दशा को सुन्दर ढंग से उभारा है आपने, संदीप भाई. हृदय से बधाई.
लगता है यह आपकी पहले की रचना है. इसका अंत और सुगढ़ हो सकता था. इसी कारण कह रहा हूँ.
सधन्यवाद
सत्य वचन मित्रवर........
मानव जिंदगी का सच कौरा ही है | प्रभु के गुण ही सच है जो लिख पाने को कागज भी अधुरा (कम है)तभी कबीर जी ने खा है
'सात समंदर की श्याही करों,लेखनी सब बन राइ
संदीप जी नमस्कार,
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना..........
फूल सिंह
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