For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - बचा है अब यही इक रास्ता क्या

दोस्तों, ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं ..

बचा है अब यही इक रास्ता क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या


तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या


अचानक क्यों हुए हैं पानी पानी
हवा ने बादलों से कुछ कहा क्या

 

ग़ज़ल में रंग भरना है जरूरी
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या

 

यहाँ पत्थर भी शीशा हो गया है 
यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या


उदू से दफ्अतन मैं पूछ बैठा
हमारे दरमियाँ है मस्अला क्या


ग़ज़ल कह कर हुआ दीवाना मैं तो
ग़ज़ल सुन कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या


ए 'वीनस' काश मैं यह जान पाता
है रखना याद क्या, है भूलना क्या

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Raj Tomar on October 17, 2012 at 11:20pm

बहुत ही ज़बरदस्त , वीनस भाई :)

"तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या"

एक शेर में पुरी कहानी और हकीकत भी. बहुत ही उम्दा :)

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on October 16, 2012 at 10:31am

ग़ज़ल कह कर हुआ दीवाना मैं तो 
ग़ज़ल सुन कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या..............वीनस भाई ऐसे कैसे हो सकता है आप दीवाने हो और पढ़ने वाला बच जाये। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ॥मशाल्लाह हर शेर कमाल के है ॥ दाद कुबूल करें !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 12:57pm

वाह वा वीनस जी वाह ... क्या कहने ! बहुत खूब.... बहुत खूब….

ग़ज़ल कहना भी आसां हो गया है 

है कहने को खुदाया अब रहा क्या. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 10, 2012 at 3:02pm

//ग़ज़ल में रंग भरना है जरूरी
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या//

वाह !!!!!! इस ख्याल पर हजारों शेअर न्योछावर वीनस भाई. 

Comment by Arun Sri on October 5, 2012 at 1:19pm

वाह ! उस्ताद की कलम से उस्तादों वाली गज़ल ! नगीने जड़ दिए हैं आपने गज़ल में !

तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या ........ मज़ा आ गया पढकर !

Comment by नादिर ख़ान on October 4, 2012 at 11:28pm

ग़ज़ल कह कर मैं दीवाना हुआ हूँ 
ग़ज़ल पढ़ कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या

बहुत कुछ हुआ सर जी लाजवाब |

सब कुछ आपने तो कह दिया
हमारे लिखने को अब बचा क्या

Comment by seema agrawal on October 4, 2012 at 9:29pm

तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या...........वाह क्या प्रश्न है 
हुए हैं शर्म से क्यों पानी पानी 
हवा ने बादलों से कुछ कहा क्या.......बहुत प्यारा सा शेर 
ग़ज़ल में रंग भरना भी जरूरी 
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या......बहुत ही खूब बात कही 

ग़ज़ल कह कर मैं दीवाना हुआ हूँ 
ग़ज़ल पढ़ कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या.........जी जी इतनी ज़बरदस्त  ग़ज़ल पढ़ कर   inferiority complex  हो रहा है 
दुआ है आप इसी तरह ग़ज़ल कहें और दीवाने होते रहें .......दिली मुबारकबाद वीनस जी 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2012 at 1:20pm

बेहतर.....

Comment by Tilak Raj Kapoor on September 11, 2012 at 5:32pm

उम्‍दा ग़ज़ल। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 11, 2012 at 5:28pm

ग़ज़ल कह कर मैं दीवाना हुआ हूँ
ग़ज़ल पढ़ कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या

जब ’कहा’ तो हमने ’सुन’ लिया..  ’लिखा’ होता तो ’पढ़’ भी लेते.. .  :-)))

मुबारकबाद इस ग़ज़ल के लिये.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service