हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित ये रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ
ये गंगा सी निर्मल पावन ये स्वर रुपी कालिंदी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
ये सुन्दर सरल सजीली है,
भाषा ये बहुत सुरीली है
ये नव रस और छंदों से युक्त
मन भावन मधुर पतीली है
ये भारत माँ के माथें में सूरज सी दमके बिंदी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
ये प्रेम की मीठी भाषा है
भारत की प्राण पिपासा है
ये संस्कार मर्यादा की
जीवंत रूप परिभाषा है
ये ग्रंथों का मेधा प्रवाह, वेदों मन्त्रों की कुंजी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
हिंदी पर सर्व समर्पण है
नित इसका पूजा अर्चन है
भारत की आत्मा है हिंदी
हिंदी संस्कृति का दर्पण है
इस अंग्रेजी के दौर में पर जाने क्यूँ चिंदी चिंदी है
इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है
संदीप पटेल "दीप"
सादर आभार सहित
Comment
एक रचना पृष्ठ पर एक रचना टिप्पणी कॉलम में, कुछ समझ में नहीं आया, संदीपजी.
वैसे टिप्पणी कॉलम वाली रचना अधिक संयत बन पड़ी है. बधाई
परन्तु, हिंदी ही सत्य की भाषा है बाकी तो केवल झांसा है इस पंक्ति पर मेरी सहमति नहीं है.
आप सभी का ह्रदय की गहराई से धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह आशीष और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
सादर
आप सभी का ह्रदय की गहराई से धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह आशीष और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
सादर
बहुत ही सुन्दर रचना संदीप पटेल जी, हिंदी दिवस की बधाई स्वीकार करें |
हिंदी पर सर्व समर्पण है
नित इसका पूजा अर्चन है
भारत की आत्मा है हिंदी
हिंदी संस्कृति का दर्पण है,अति सुंदर भाव संदीप जी ,हिंदी दिवस पर हार्दिक बधाई
अंग्रेजों के भक्तों सुन्लों हिंदी नहीं तमाशा है
सौन्दर्य की भाषा हिंदी है
ये अलोकिक इक बिंदी है
इसका कलरव है कोयल सा
ये गंगा स्वर कालिंदी है
सरपट प्रवाह ले सहज सरल ये हिन्दुस्तान की भाषा है
अंग्रेजी के भक्तो सुन लो हिंदी ये नहीं तमाशा है
जब ये संतान बड़ी होकर
तुमको ही आँख दिखाएगी
अंग्रेजी में खिटपिट करते
जब इसको लाज न आएगी
तब जाकर तुम ये जानोगे मर्यादा की परिभाषा है
अंग्रेजी के भक्तो सुन लो हिंदी ये नहीं तमाशा है
जब होंगी ज्ञान की बातें तब
हिंदी ये रंग दिखलाएगी
और नयी तुम्हारी अंग्रेजी
बस खड़ी खड़ी पछताएगी
विज्ञान समझने हेतु भी हिंदी ही मात्र इक आशा है
अंग्रेजी के भक्तो सुन लो हिंदी ये नहीं तमाशा है
जब गीत भजन ग़ज़लें सुनकर
मतलब सब गलत निकालेंगे
तब अर्थ अनर्थ हो जाएगा
भजनों में वासना पालेंगे
फिर शान्ति कहाँ ढूंढोगे जाकर जो खुद बड़ी पिपासा है
अंग्रेजी के भक्तो सुन लो हिंदी ये नहीं तमाशा है
दिल से दिल को जो जोड़ेंगे
भावों के स्वर हैं हिंदी में
संस्कार और मर्यादा का
बहता निर्झर है हिंदी में
हिंदी ही सत्य की भाषा है बाकी तो केवल झांसा है
अंग्रेजी के भक्तो सुन लो हिंदी ये नहीं तमाशा है
संदीप पटेल "दीप"
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