तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं
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Comment
राजेश कुमार झा जी हार्दिक आभार मेरे शब्दों की थाह में झाँकने के लिए
बड़ी सुंदर रचना है लगता है जिसे संबोधित किया है वो पास बैठा सब सुन कर मुस्कुरा रहा है, सादर
हार्दिक धन्यवाद फूल सिंह जी
राजेश कुमारी जी प्रणाम..
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना.....बधाई स्वीकारे
फूल सिंह
बहुत बहुत शुक्रिया राज नवद्वी जी आपको रचना पसंद आई
बहुत ही सुन्दर रचना है, बहुत ही तपाक और सहजता से कविता शुरू होती है, चल पडती है, और खत्म हो जाती है. .
तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
बधाई हो आदरणीया राजेश जी!
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