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तू एक ऐसा ख़्वाब है
जिस्म में ढलता ही नहीं
मेरा ही हमसाया
जो मेरे साथ चलता ही नहीं !
किस मोम से बना
मेरे ताप से पिघलता ही नहीं
कितना बे असर हो गया
ये दिल जो संभलता ही नहीं !
नम हो गया अंश वक़्त का
हाथ से फिसलता ही नहीं
जम गए नासूर वफ़ा के
अब मरहम फलता ही नहीं
************************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 12:32pm

राजेश कुमार झा जी हार्दिक आभार मेरे शब्दों की थाह में झाँकने के लिए 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:24pm

बड़ी सुंदर रचना है लगता है जिसे संबोधित किया है वो पास बैठा सब सुन कर मुस्‍कुरा रहा है, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 12:21pm

हार्दिक धन्यवाद फूल सिंह जी 

Comment by PHOOL SINGH on September 26, 2012 at 12:10pm

राजेश कुमारी जी प्रणाम..

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना.....बधाई स्वीकारे

फूल सिंह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 11:10am

बहुत बहुत शुक्रिया राज नवद्वी जी आपको रचना पसंद आई 

Comment by राज़ नवादवी on September 26, 2012 at 11:08am

बहुत ही सुन्दर रचना है, बहुत ही तपाक और सहजता से कविता शुरू होती है, चल पडती है, और खत्म हो जाती है. . 

तू एक ऐसा ख़्वाब है 
जिस्म में ढलता ही नहीं 
मेरा ही हमसाया 
जो मेरे साथ चलता ही नहीं ! 

बधाई हो आदरणीया राजेश जी!

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