दर पे हमारे शाम इक इठला के रह गई
हमको तुम्हारी दास्ताँ याद आके रह गई
बहरोवज़न के खेल भी हमने समझ लिए
बन्दिश में आके शाइरी कुम्हलाके रह गई
होना था दिल के टूटने के बाद और क्या
ज़िदमें ही ज़ीस्त ख्वाबको झुठलाके रह गई
बेबस हुए कुछ इस तरह किस्मतके हाथ हम
तेरी निगाहेनाज़ भी समझा के रह गई
मुझको तिरी बेजारियों का कुछ गिला नहीं
मेरी भी ज़िंदगी अना दिखला के रह गई
गुंचे शगुफ्ता हो गए खिल के बिखर गए
दो दिन जवानी आप ही इतरा के रह गई
आई सहर तो मिट गई रातों की कशमकश
शब भी सियाह ज़ुल्फ़को बिखरा के रह गई
मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद
तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई
तर्केवफ़ा की बातको सच था समझ लिया
तेरी नज़र की इल्तिजा उलझा के रह गई
आँखें मिलीं ख्यालमें तुझसे जो आज फिर
तेरी जवानी फिर वही शरमा के रह गई
खोलेंगे राज़ अब नया चर्चा का बाब क्या
उल्फत अधूरी बात ही बतला के रह गई
© राज़ नवादवी
अहमदाबाद, रात्रिकाल ०९.५०,
शनिवार, २९/०९/२०१२
बन्दिश- बंधन; ज़ीस्त- ज़िंदगी; निगाहेनाज़- प्यार से भरी नज़र, प्रेयसी की दृष्टि; अना- स्वयं का भाव; गुंचे- कलियाँ; शगुफ्ता- पुष्पित; सहर- सुबह; शब- रात; तर्केवफ़ा- प्रेम विच्छेद; इल्तिजा- गुजारिश, प्रार्थना; बाब- अध्याय
Comment
मुह्तरम भाई नादिर साहेब, आपका तहेदिल से शुक्रिया!
behatareen gazal raj bhai
आदरणीया राजेश जी,
//ज़मानेकी तन्कीदें मिलने लगीं
ऐबेकलम की नीवें हिलने लगीं.//
आपकी ख़ास दाद को हमने बहुत ही ख़ास समझ के कुबूल किया है,
सादर!
आदरणीय प्रमेन्द्र जी, आपकी टिप्पणियों और प्रशंसा का हृदय से आभार!
राज़ साहब, लाजवाब हैं आप. इस ग़ज़ल के लिए बधाई.
मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद
तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई
राज नवद्वी जी बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है सभी शेर एक से बढ़कर हैं पर ये शेर बार बार पढने को मन करता है दाद कबूल कीजिये
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online