For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३७ (बन्दिश में आके शाइरी कुम्हलाके रह गई )

 

दर पे हमारे शाम इक इठला के रह गई

हमको तुम्हारी दास्ताँ याद आके रह गई

 

बहरोवज़न के खेल भी हमने समझ लिए

बन्दिश में आके शाइरी कुम्हलाके रह गई

 

होना था दिल के टूटने के बाद और क्या

ज़िदमें ही ज़ीस्त ख्वाबको झुठलाके रह गई

 

बेबस हुए कुछ इस तरह किस्मतके हाथ हम

तेरी निगाहेनाज़ भी समझा के रह गई

 

मुझको तिरी बेजारियों का कुछ गिला नहीं

मेरी भी ज़िंदगी अना दिखला के रह गई  

 

गुंचे शगुफ्ता हो गए खिल के बिखर गए

दो दिन जवानी आप ही इतरा के रह गई

 

आई सहर तो मिट गई रातों की कशमकश

शब भी सियाह ज़ुल्फ़को बिखरा के रह गई

 

मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद

तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई

 

तर्केवफ़ा की बातको सच था समझ लिया

तेरी नज़र की इल्तिजा उलझा के रह गई

 

आँखें मिलीं ख्यालमें तुझसे जो आज फिर

तेरी जवानी फिर वही शरमा के रह गई

 

खोलेंगे राज़ अब नया चर्चा का बाब क्या

उल्फत अधूरी बात ही बतला के रह गई

 

© राज़ नवादवी

अहमदाबाद, रात्रिकाल ०९.५०,

शनिवार, २९/०९/२०१२

 

बन्दिश- बंधन; ज़ीस्त- ज़िंदगी; निगाहेनाज़- प्यार से भरी नज़र, प्रेयसी की दृष्टि; अना- स्वयं का भाव; गुंचे- कलियाँ; शगुफ्ता- पुष्पित; सहर- सुबह; शब- रात; तर्केवफ़ा- प्रेम विच्छेद; इल्तिजा- गुजारिश, प्रार्थना; बाब- अध्याय

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:46am

मुह्तरम भाई नादिर साहेब, आपका तहेदिल से शुक्रिया!

Comment by नादिर ख़ान on October 6, 2012 at 11:35pm

behatareen gazal raj bhai 

Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2012 at 9:40am

आदरणीया राजेश जी,

//ज़मानेकी तन्कीदें मिलने लगीं

ऐबेकलम की नीवें हिलने लगीं.//

आपकी ख़ास दाद को हमने बहुत ही ख़ास समझ के कुबूल किया है,

सादर!

Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2012 at 9:36am

आदरणीय प्रमेन्द्र जी, आपकी टिप्पणियों और प्रशंसा का हृदय से आभार! 

Comment by प्रमेन्द्र डाबरे on September 30, 2012 at 6:35pm

राज़ साहब, लाजवाब हैं आप. इस ग़ज़ल के लिए बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 30, 2012 at 5:21pm

मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद

तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई

 राज नवद्वी जी बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है सभी शेर एक से बढ़कर हैं पर ये शेर बार बार पढने को मन करता है दाद कबूल कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
11 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ज़िन्दगी जी के कुछ मिला तो नहीं मौत आगे का रास्ता तो नहीं. . मेरे अन्दर ही वो बसा तो नहीं मैंने…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी आयोजन का उद्घाटन करने बधाई.ग़ज़ल बस हो भर पाई है. मिसरे अधपके से हैं…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
13 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service