For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३९ (हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं )

कैद कब तक रहोगे अपनी ही तन्हाइयों में

ढूंढें मिलते नहीं ज़िंदा बशर परछाइयों में

 

हक़का रिश्ता ज़मींसे है, ये खंडहर कहते हैं

सब्ज़े होते नहीं अफ्लाक की बालाइयों में  

 

खुशबूएं जम गईं गुलनार के पैकर में ढलके

कल की बादे सबा क्यूँ खोजते पुरवाइयों में

 

हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं

ज़र्द पड़ जाते हैं गुलदस्ते की रानाइयों में

 

फूल वा होते हैं, निकहत बिखर ही जाती है

फर्क कुछ भी नहीं है प्यार और रुसवाइयों में

 

कैसी ज़ेबाई से निकला वो कल रकीबके घर

कोई तिनका सा चुभ गया मिरी बीनाइयों में

 

राज़ साहिल पे बैठने से कुछ नहीं होगा

मोती मिलते नहीं उतरे बिना गहराईयों में

 

© राज़ नवादवी, अहमदाबाद,

शनिवार २९/०९/२०१२ अपराहन्न ०३.२१

 

बशर- व्यक्ति; हक़का रिश्ता- सच का रिश्ता; सब्ज़े- हरियाली, हरे भरे बाग़; अफ्लाक- फलक (आसमान) का बहुवचन; बालाइयों में- ऊंचाइयों में; गुलनार- अनार का फूल; पैकर- शरीर; बादे सबा- सुबह की हवा; तख़लिएमें- एकांत में; रानाइयों में- सौन्दर्य; वा होते हैं- खिलते है; निकहत- खुशबू; ज़ेबाई से- सज-धज के;  बीनाइयों में- दृष्टि में; साहिल- किनारा

 

 

 

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:43am

भाई निमिष जी, आपका तहेदिल से शुक्रिया!

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:40am

भाई सुजान साहेब, आपके ग़ज़ल पढ़ने और पसंद करने का तहेदिल से शुक्रिया. बड़ी हौसलाअफजाई हुई! 

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:38am

आदरणीय वीनस जी, आपकी दाद बहुत ख़ास है हमारे लिए, शुक्रिया भी कैसे करूँ, मगर फिर भी शक्रिया!

Comment by nimish pandya on October 7, 2012 at 5:05pm

bahut khub

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 7, 2012 at 2:38pm

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है।

Comment by वीनस केसरी on October 7, 2012 at 12:12am

बहुत खूब राज साहिब

ढेरो दाद

Comment by राज़ नवादवी on October 5, 2012 at 5:26pm

आदरणीया सीमा जी, आपकी तारीफ़ और दाद हमारा हौसला बढाती है. अशआर पढ़ने और पसंद करने का तहेदिल से शुक्रिया.

Comment by राज़ नवादवी on October 5, 2012 at 5:23pm

आदरणीया राजेश जी, आपको हमारा कलाम पसंद आया, इसके हम शुक्रगुज़ार हैं. आपकी हौसल अफजाई का बहुत शुक्रिया! 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 4:12pm

हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं

ज़र्द पड़ जाते हैं गुलदस्ते की रानाइयों में

कैसी ज़ेबाई से निकला वो कल रकीबके घर

कोई तिनका सा चुभ गया मिरी बीनाइयों में....वाह क्या बात हा राज़ जी 

राज़ साहिल पे बैठने से कुछ नहीं होगा

मोती मिलते नहीं उतरे बिना गहराईयों में...बहुत खूबसूरत बात .......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2012 at 12:36pm

बहुत बढ़िया ,उम्दा ग़ज़ल सभी शेर शानदार हैं 

कैसी ज़ेबाई से निकला वो कल रकीबके घर

कोई तिनका सा चुभ गया मिरी बीनाइयों में

 

राज़ साहिल पे बैठने से कुछ नहीं होगा

मोती मिलते नहीं उतरे बिना गहराईयों में

 ये दोनों बहुत ही ज्यादा पसंद आये 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service