अपने नाम को सार्थक करती हुई कजरारे नयनों वाली सुनयना अपनी प्यारी बहन आरती से बहुत प्यार करती थी |किसी हादसे में आरती के नयनों की ज्योति चली गई थी लेकिन सुनयना ने जिंदगी में उसको कभी भी आँखों की कमी महसूस नही होने दी | हर वक्त वह साये की तरह उसके साथ रहती,उसकी हर जरूरत को वह अपनी समझ कर पूरा करने की कोशिश में लगी रहती |एक दिन सुनयना को बुखार आ गया जो उतरने का नाम ही नही ले रहा था ,उसके खून की जांच करवाने पर पता चला कि उसे कैंसर है ,उसके मम्मी पापा के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई ,लेकिन सुनयना के मन में तो कुछ और ही चल रहा था ,इससे पहले कि मौत उसे अपने आगोश में ले कर सदा के लिए सुला दे ,उसने अपने माँ बाप से अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर दी थी |आज सुनयना अपने माता पिता के साथ नही है ,लेकिन वह आरती के नयनों से इस दुनिया को देख रही है ,उसने अपने नेत्रदान कर दिए थे |
Comment
आदरणीय अशोक जी ,उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार
रेखा जी
सादर, नेत्र दान महादान को सार्थक करती सुन्दर लघुकथा पर बधाई स्वीकारें.
वसुधा जी ,प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार
कम शब्दो में गूढ़ अर्थो के साथ एक सार्थक कथा के लिए बधाई॥
आदरणीय सौरभ जी ,आप को लघु कथा पसंद आई ,मेरा प्रयास सफल हुआ ,आपका हार्दिक धन्यवाद
आ सीमा जी ,आ राजेश जी ,आ डा प्राची जी आपको लघु कथा पसंद आई धन्यवाद ,आप सब के कमेंट्स से मुझे प्रेरणा मिलती है ,उत्साहवर्धन हेतु अप सब का हार्दिक आभार
सुनयना की सार्थकता उसके कर्म से ज़ाहिर हुई. भाव-प्रवण लघुकथा के इये बधाई.
बहनों के निस्वार्थ स्नेह पर सुन्दर लघुकथा.
अच्छी कहानी लिखी है रेखा जी बहन के प्रति स्नेह की अद्दभुत मिसाल है यही तो सच्चा ,निस्वार्थ प्रेम होता है
बहुत सुन्दर सन्देश ...और प्रेम की मिसाल प्रस्तुत करती कथा
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