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प्रश्नवाची मन हुआ है

प्रश्नवाची 
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन 
क्या मुझे अधिकार है ये 
मैं दशानन को जलाऊँ ??

खींच कर 
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??

झूठ, माया-मोह 
ईर्ष्या के असुर नित रास करते 
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते 
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज उड़ा 
क्या मुझे अधिकार है
'पातक' दशानन को जताऊँ ??

अपहरित 
अंतःकरण की मुक्ति हित बलदेव बन के 
बालने हैं अब दशानन सम सभी दुर्दैव मन के 
बिन स्वयं हो मुक्त दुर्गुण के असित प्रतिबन्ध से 
क्या मुझे अधिकार है 
दुर्नय दशानन के दिखाऊँ ??

--सीमा अग्रवाल

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2012 at 10:15pm

सीमाजी, कैसे धन्यवाद कहूँ ! आपकी पंक्तियों में अंतर-गेयता और सन्निहित गंभीरता ने विस्मित कर दिया है. आत्मावलोकन को प्रस्तुत करती इतनी सुगढ़ पंक्तियाँ यदा-कदा ही दीखती हैं. ओबीओ के पटल पर इस उन्नत रचना के प्रस्तुतिकरण हेतु आपको हृदय से आभार कह रहा हूँ.

सादर

Comment by राज़ नवादवी on October 22, 2012 at 9:35pm

खींच कर 
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??

अत्यंत समीचीन प्रश्न. स्वान्तरावलोकन की आवयश्कता एवं अपरिहार्यता को इंगित करती सुन्दर रचना. बधाई हो आदरणीया सीमा जी!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 8:21pm

मन मेरा भी  हुआ क्षणिक प्रश्नवाची 

सार्थक हुई रचना, बधाई सीमा जी |
पर प्रतीक है दशानन का जलना-
झूंठे दंभ भरने वाले का, यही हश्र होता- 
माया मोह में फंसे व्यक्ति का |
दशानन का जलना प्रतीक है -
पाप का घड़ा भर जाने पर फूट जाने का,
जलाना होगा दुर्दैव मन के,
मुक्त होना होगा दुर्गुण का असित प्रतिबंधो से, 
यही सन्देश देती आपकी रचना सीमा जी 
बहुत बधाई जो मन में आये प्रश्नवाची, और 
मंथन को हुआ मन में,
समझाने, चली परम्परा को |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 22, 2012 at 7:14pm

बहुत गूढ़ उत्कृष्ट भाव से समुन्नत रचना बहुत बहुत बधाई ये सच है जब हम किसी की और एक ऊँगली उठाते हैं तो तीन उंगलियाँ हमारी और मुडती हैं और खुद से यही प्रश्न करती हैं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 22, 2012 at 5:54pm

बहुत सुन्दर भाव इस रचना के, सुन्दर शब्द संयोजन, प्रवाह ...बहुत सुन्दर रचना.हार्दिक बधाई आदरणीया सीमा जी 

खींच कर 
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??

दशानन को जलाने का अधिकार क्या मुझे है?......रामलीला मैदान दिल्ली में जब रावण को जलाया जाएगा, काश वहां बैठे सत्तासीन नेताजन यह प्रश्न स्वयं से पूछ जवाब ढूँढ पायें...

 

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