For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:
समाधित रहो ....
संजीव 'सलिल'
+
चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।

जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते। 
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।

दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता अजित।।

जोड़ता जो रहा, रीतता वह रहा,
भोगता सुर-असुर, छीजता ही रहा।
बाँट-पाता मनुज, ज़िन्दगी की ख़ुशी-
प्यास ले तृप्ति दे, नर्मदा सा बहा।।

कौन क्या कह रहा?, कौन क्या गह रहा?
किसकी चादर मलिन, कौन स्वच्छ तह रहा?
तुम न देखो इसे, तुम न लेखो इसे-
नित नया बन रहा, नित पुरा ढह रहा।।

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।।

***

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on November 3, 2012 at 8:42pm

लक्ष्मण प्रसाद जी,
 आपकी गुणग्राहकता को नमन।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2012 at 10:47am

सादर आभार सलिल जी :):)

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2012 at 10:44am

गीत -"समाधित रहो" सर्व श्रेष्ठ कार्य रचनाओं में से एक, जिसमे समपर्ण लय, बढ़िया भवभ्व्यक्ति और एक उत्कृष्ट गीत 

पढने को मिला इस के लिए हार्दिक बधाई भी और आभार भी आदरणीय श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी 
Comment by sanjiv verma 'salil' on November 3, 2012 at 10:40am

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सहित समर्पित -

गीत प्राची लिखे, मीत सीमा बने
रीत राजेश सी, सौरभी सच बुने।
अंकुरित पल्लवित किसलयित हो सकें-
प्रीत-कर नीत-हल्दी से रखिये सने।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 2, 2012 at 9:01pm

कौन क्या कह रहा?, कौन क्या गह रहा?
किसकी चादर मलिन, कौन स्वच्छ तह रहा?
तुम न देखो इसे, तुम न लेखो इसे- 
नित नया बन रहा, नित पुरा ढह रहा।।----आदरणीय सलिल जी वैसे तो पूरा गीत ही अचंभित करता है परन्तु ये पंक्तियाँ  तो बहुत प्रभावित करती हैं बस इंसान अपने लक्ष्य की और बढ़ता रहे अपने कर्म को करता रहे बहुत सुन्दर भाव बहुत बधाई आपको इस उत्कृष्ट गीत के लिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 2, 2012 at 6:25pm

आदरणीय संजीव 'सलिल' जी, 

सादर नमन!

इस रचना में निहित भावों को बार बार नमन, आपकी रचनाएं इतनी उच्च होती है, कि मै शब्द्विहीन हो जाती हूँ. सादर आभार इस प्रस्तुति के लिए. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2012 at 11:24am

आदरणीय आचार्यवर, अरसे बाद आपकी अति विशिष्ट रचना से मन मुग्ध है. क्या शिल्प, क्या भाव और क्या ही प्रस्तुति ! वाह-वाह !

२१२ २१२ २१२ २१२  की आवृति पर जिस तरह से शब्द नृत्य कर रहे हैं और सटीक भाव संप्रेषित हो रहे हैं, यह सार्थक अभ्यास की सहज परिणति है. सादर बधाइयाँ स्वीकारें आचार्यवर .. .

 

एक बात : राहु-केतु ग्रसें,  को   हमने राहु-केतू ग्रसें, की तरह पढ़ा है.  ग्रसे  के ग्र  से केतु  क्यों प्रभावित हो ..  :-))))

Comment by seema agrawal on November 2, 2012 at 10:34am

आदरणीय सलिल जी गीत की प्रशंसा करूँ या  गीत में समाहित भाव की  ...एक एक शब्द सरलता से अंतर को स्पंदित कर रहा है भाव शुभ और अनुकरणीय सन्देश की पावन सरिता सामान प्रवाहित हो रहे हैं ...इतने सुन्दर गीत के लिए ह्रदय से धन्यवाद 

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
23 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service