'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !
इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के डॉर्चेस्टर में एक प्रयोग किया गया। डॉ. डंकन मैक डॉगल ने चार अन्य साथी डॉक्टर्स के साथ प्रयोग किया था।
इनमें 5 पुरुष और एक महिला मरीज ऐसे थे जिनकी मौत हो रही थी। इनको खासतौर पर डिजाइन किये गये फेयरबैंक्स वेट स्केल पर रखा गया था। मरीजों की मौत से पहले बेहद सावधानी से उनका वजन लिया गया था। जैसे ही मरीज की जान गई वेइंग स्केल की बीम नीचे गिर गई। इससे पता चला कि उसका वजन करीब तीन चौथाई आउंस कम हो गया है।
ऐसा ही तजुर्बा तीन अन्य मरीजों के मामले में भी हुआ। फिर मशीन खराब हो जाने के कारण बाकी दो को टेस्ट नहीं किया जा सका। साबित ये हुआ कि हमारी आत्मा का वजन 21 ग्राम है। इसके बाद डॉ. डंकन ने ऐसा ही प्रयोग 15 कुत्तों पर भी किया। उनका वजन नहीं घटा, इससे निष्कर्ष निकाला कि जानवरों की आत्मा नहीं होती।
फिर भी इस पर और रिसर्च होना बाकी थी लेकिन 1920 में डंकन की मौत हो जाने से रिसर्च वहीं खत्म हो गई। कई लोगों ने इसे गलत और अनैतिक भी माना। इस पर 2003 में फिल्म भी बनी थी। फिर भी सच क्या है ये एक राज है।
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Comment
और ये राज़ ही रहेगा .
आत्मा दरअसल एक ही है. विभिन्न जीवों अजीवों में जो पृथक महसूस होती है वही अज्ञान है अर्थात अस्तित्व के एक निश्चित/भौतिक आयाम में साधारणतः मौलिक ऐक्य का अनुभव नहीं होता जब तक कि इसके लिए विशिष्ट प्रयास न किए जाएँ. आत्मा के बिना किसी का भी अस्तित्व नहीं है, यही मोटी बात है. फ़र्ज़ करें कि एक दरिया है और उसमें कई पीपे डूबे हैं. दरिया परमात्मा है, पानी आत्मा है, और दरिया के पानी से भरा पीपा जीव. पीपा टूटता है तो अंदर का पानी वापस दरिया के पानी में मिल जाता है. ये मोक्ष है. पर साधारण मृत्यु पीपे का टूटना नहीं है. मोक्ष से पहले ये पीपा नहीं टूटता, एक बुनियादी सुपर स्ट्रक्चर पे एक जन्म से दूसरे जन्म तक अलग अलग पीपे बनते रहते हैं. सदगुरू के शरण के अलावा और उसकी कृपा के बगैर सारी बातें बेकार हैं.
बहुत रोचक जानकारी
पर आत्मा के वजन की बात पर थोड़ी सी बुद्धी बिना वजह अपनी भी घुसा रही हूँ ..क्या ये वजन उस वायु का नहीं होगा जो एक जीवित शरीर inhale किया हुआ होता है या रक्त के प्रवाह से बनने वाला भार का ,जो मरते ही शरीर से समाप्त हो जाता है
वैसे ये मेरी जिज्ञासा ही है कोई प्रयोग मैंने नहीं किया इस तरह का ...बात चली तो सोचा चलो पूछने में क्या जाता है
रोचक जानकारी...कुत्तों में आत्मा नहीं होता पढ़कर हँसी भी आई |
आदरणीय संजीव वर्मा जी, आपका लेख पढ़ा. दरअसल आत्मा तो बहुत बाद की चीज़ है जहाँ तक पहुँचना एक सार्वभौम और आत्यंतिक लक्ष्य है.. भौतिक स्थूल शरीर के नीचे या यूँ कहें कि अंदर कई अन्य शरीर हैं जैसे कि सूक्ष्म (astral), कारण (causal), महाकारण (super causal), इत्यादि. मृत्यु के तत्पश्चात हम जिस शरीर में होते है वो सूक्ष्म शरीर ही है जो प्रकाश बे बना है और सही अर्थ में में स्थूल है क्यूंकि प्रकाश भी वस्तुतः स्थूल है. मरे हुए लोग अक्सरहा सफ़ेद दिखते हैं क्यूँकि प्रकाश सफ़ेद होता है. सूक्ष्म शरीर का कुछ वज़न हो, ये बात एक स्तर पे तो फिर भी स्वीकार्य हो सकती है, आत्मा के वजन की बात दो भिन्न आयामों के अस्तित्वों के एक आयामी चिंतन का परिणाम है. काव्य तक तो सही है जैसे 'खुशबूओं के घरौंदे, या आशाओं की वीथिका, या फिर अहसासों का भंवर. मगर वस्तुनिष्ठ सनदअंदेशी चिन्तना के लिए यह आवश्यक है कि अभिप्रेय आयामों की परिधि पहले तय कर ली जाए और उनमें परिचालित नियमों की अन्वेषणा और पहले भी. और फिर ये भी कि इस विशिष्ट चिंतना की अपनी परिधि क्या है.
नींद में हम मीलों सफर कर लेते हैं, मगर सुबह बिस्तर पे ही पड़े होते हैं. जीवन में आत्मा, परमात्मा, परलोक, ईश्वर इत्यादि बोधों के सृजन और निर्माण में अक्सरहा हमारे समाजीकरण की प्रक्रियाओं का बड़ा हाथ होता है. विज्ञान से आगे का विज्ञान योग है और तर्कानुगत युक्तिसंगत ज्ञान से आगे का ज्ञान आत्मसाक्षात्कार जन्य आत्मानुभव है. फकीरों, संतों, एवं सदगुरुओं ने हमेशा दिखनेवाले बहु आयामी जीवनों के अयथार्थ और यथार्थ के न दिखने वाले आयाम विहीन जीवनों के सत्व की ओर इशारा किया है.
सादर!
बहुत रोचक जानकारी
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