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चाँद-सितारे ,बादल ,सूरज

आँख मिचौली खेल रहें हैं ।

धरती खुश है ,

झूम रही है ।

झूम रहा है प्रहरी कवि-मन ।

समय आ गया नए सृजन का ।

 

खून सनी सड़कों पर-

काँटे उग आएं हैं ।

जीवन भाग रहा है नंगेपांव –

मगर बचना मुश्किल है ।

सन्नाटों का गठबंधन-

अब चीखों से है ।

 

हृदयों के श्रृंगारिक पल में

छत पर चाँद उतर आता है ।

कवि के कन्धे पर सर रखकर

मुस्काता है ।

नीम द्वार का गा उठता है

गीत प्यार के ।

 

कविताएँ नाखून बढाकर

घूम रहीं हैं ।

नुचे हुए भावों के चेहरे

नया मुखौटा ओढ़ चुके हैं ।

अट्टहास करती है नफरत

प्यार भरी कुछ मुस्कानों पर ।

 

अलग-अलग से दो मंजर हैं ,

किसको देखूं ?

 

जुदा-जुदा सी दो राहें हैं ,

क्या होगा-

मेयार सफर का ?

 

तय करना है !

 

 

 

.............................. अरुन श्री !

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on November 8, 2012 at 12:29am

खून सनी सड़कों पर-

काँटे उग आएं हैं ।

जीवन भाग रहा है नंगेपांव –

मगर बचना मुश्किल है ।

सन्नाटों का गठबंधन-

अब चीखों से है ।

उम्दा भाव लिए लाजवाब रचना ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2012 at 8:54pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण स्तुति हर शब्द कुछ कहता सा दिल पर दस्तक देता सा बस एक बात कहूँगी वाह !!!हाँ आपको ओ  बी ओ पर पुनः सक्रीय देख कर प्रसन्नता हुई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 7:04pm

सकार और नकार के द्वंद्व को संवेदनशील हृदय नहीं चाहता हुआ भी जीने और तौलने को विवश होता है. किसे समझें और किसे समझते हुए छोड़ दें का व्यावहारिक द्वंद्व. संवेदना को मिला यही श्राप किसी कवि के हो जाने की शर्त है. बहुत ही सुन्दर और संयत प्रयास हुआ है, अरुणभाई. ..

आपकी पुनर्सक्रियता के लिये विशेष बधाई और शुभकामनाएँ.

Comment by राजेश 'मृदु' on November 7, 2012 at 2:24pm

सुंदर भाव पक्ष के लिए बधाई । एक बात समझ में नहीं आई कि इसे छंदमुक्‍त कविता मानूं (जिसे मानने को को जी नहीं करता) गीत यह है नहीं और नवगीत तो बिल्‍कुल नहीं । किंतु इसका प्रवाह इसे सुंदर नवगीत जैसा दिखाता है, इसे किसी गीत या नवगीत की तरह लिखा जाए तो बहुत सुंदर बनेगा ऐसा मेरा मानना है, सादर

Comment by akhilesh mishra on November 7, 2012 at 12:18pm

बहुत बढ़िया श्रीमान. बधाई स्वीकारे, सुंदर कृती के लिए ।

Comment by रविकर on November 7, 2012 at 12:01pm

बहुत खुबसूरत ।

बधाई आदरणीय ।।

चित्र विरोधाभास के, हालत करे विचित्र ।

शत्रु करे तारीफ़ पर, चुप रहते क्यूँ मित्र ?

कृपया ध्यान दे...

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