चाँद-सितारे ,बादल ,सूरज
आँख मिचौली खेल रहें हैं ।
धरती खुश है ,
झूम रही है ।
झूम रहा है प्रहरी कवि-मन ।
समय आ गया नए सृजन का ।
खून सनी सड़कों पर-
काँटे उग आएं हैं ।
जीवन भाग रहा है नंगेपांव –
मगर बचना मुश्किल है ।
सन्नाटों का गठबंधन-
अब चीखों से है ।
हृदयों के श्रृंगारिक पल में
छत पर चाँद उतर आता है ।
कवि के कन्धे पर सर रखकर
मुस्काता है ।
नीम द्वार का गा उठता है
गीत प्यार के ।
कविताएँ नाखून बढाकर
घूम रहीं हैं ।
नुचे हुए भावों के चेहरे
नया मुखौटा ओढ़ चुके हैं ।
अट्टहास करती है नफरत
प्यार भरी कुछ मुस्कानों पर ।
अलग-अलग से दो मंजर हैं ,
किसको देखूं ?
जुदा-जुदा सी दो राहें हैं ,
क्या होगा-
मेयार सफर का ?
तय करना है !
.............................. अरुन श्री !
Comment
खून सनी सड़कों पर-
काँटे उग आएं हैं ।
जीवन भाग रहा है नंगेपांव –
मगर बचना मुश्किल है ।
सन्नाटों का गठबंधन-
अब चीखों से है ।
उम्दा भाव लिए लाजवाब रचना ...
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण स्तुति हर शब्द कुछ कहता सा दिल पर दस्तक देता सा बस एक बात कहूँगी वाह !!!हाँ आपको ओ बी ओ पर पुनः सक्रीय देख कर प्रसन्नता हुई
सकार और नकार के द्वंद्व को संवेदनशील हृदय नहीं चाहता हुआ भी जीने और तौलने को विवश होता है. किसे समझें और किसे समझते हुए छोड़ दें का व्यावहारिक द्वंद्व. संवेदना को मिला यही श्राप किसी कवि के हो जाने की शर्त है. बहुत ही सुन्दर और संयत प्रयास हुआ है, अरुणभाई. ..
आपकी पुनर्सक्रियता के लिये विशेष बधाई और शुभकामनाएँ.
सुंदर भाव पक्ष के लिए बधाई । एक बात समझ में नहीं आई कि इसे छंदमुक्त कविता मानूं (जिसे मानने को को जी नहीं करता) गीत यह है नहीं और नवगीत तो बिल्कुल नहीं । किंतु इसका प्रवाह इसे सुंदर नवगीत जैसा दिखाता है, इसे किसी गीत या नवगीत की तरह लिखा जाए तो बहुत सुंदर बनेगा ऐसा मेरा मानना है, सादर
बहुत बढ़िया श्रीमान. बधाई स्वीकारे, सुंदर कृती के लिए ।
बहुत खुबसूरत ।
बधाई आदरणीय ।।
चित्र विरोधाभास के, हालत करे विचित्र ।
शत्रु करे तारीफ़ पर, चुप रहते क्यूँ मित्र ?
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