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(1) घर की छत के दो बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं देखो छोटे स्तंभों पर कब तक टिकती है छत !! 

(2)सबने कहा और तुमने मान लिया एक बार तो कुरेद कर देखते मेरी राख शायद मैं तुमसे कुछ कहती !!

(3)जिंदगी में बहुत दूर तक तैरने पर कोई नाव  मिली ,कुछ गर्म धूप  कुछ नर्म  छाँव  मिली !!

(4)अपनों के हस्ताक्षर के साथ जब कोई कविता आँगन से बाहर जायेगी ,तो जरूर नया कोई गुल खिलाएगी!!

(5)चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे हैं अपनी औकात  भूल रहे हैं!!

(6)कदम दर कदम सूरत बदल रही है लगता है अब  मैं आगे बढ़ रही हूँ!!

(7)रंग मंच का अंतिम द्रश्य  शुरू हो चुका  है कुछ ही वक़्त  बाकी हैं देखना है पटाक्षेप सुखान्त होगा या दुखांत!!  

(8)उन ईंटों ने अब दीवार का साथ छोड़ दिया शायद उसकी जर्जरता उन्हें रास  नहीं आई 

***************************************************************************** 

    

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2012 at 8:23pm

आठ ख़याल !

आठों बवाल !!

पद्य में आते तो होता और कमाल !!!  

वैसे बहुत उम्दा ख़याल हैं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2012 at 8:20pm

संदीप द्विवेदी जी बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका कहना भी सही है परन्तु कुछ भाव दिल में कभी कभी ऐसे उमड़ते हैं जो किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं चाहते इसी लिए जैसे के तैसे ही लिख दिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2012 at 8:17pm

फूल सिंह जी बहुत बहुत हार्दिक आभार

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 16, 2012 at 7:38pm

आदरणीया,

बड़े ही उम्दः ख़याल पेश किये आपने! यदि ये छंदों में बंध कर सामने आते तो और भी शानदार होते! बह्रहाल, मेरी तरफ़ से दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें! सादर,

Comment by PHOOL SINGH on November 16, 2012 at 5:51pm

राजेश  जी नमस्कार.....

बहुत ही सुंदर  क्यालो को सलाम....बधाई....

फूल सिंह

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