कसाब की फाँसी
पूरा देश खुशी मनाया,
कसाब की फाँसी पर,
ऐसा लगा मानो कोई बड़ा काम हुआ,
अधर्म पर धर्म की जीत हुयी,
किसी कमजोर ने बहादुरी का काम किया,
कंजूस ने महँगा आयोजन किया ।
खुशी की यह बात नहीं,शहीदों को याद करो,
यह बहुत पहले होना था,
खुशी तो तब मनाना,
जब अफ़ज़ल ,सईद फाँसी पर लटके,
हिंदुस्तान ताकत दिखाये,
मजबूती से,दुष्टों को उल्टा लटकाये ।
मारो चुनकर आतंकियों को,
मानवता के हैं ये दुश्मन,
आज हमें तो कल अपनों को मारेंगे,
मरना,मारना ही इनका कर्म और लक्ष्य है,
खोजो इसके मूल कारण को,
जड़ से इसे समाप्त करो ।
बंद करो राजनीति ,
मनुष्य की कीमत पहचानों,
कीड़े मकोड़ों की तरह,मत मरने दो,
ख़त्म करो आतंकवाद,
मत बनने दो बच्चों को आतंकवादी,
जिससे न लटके दूसरा कसाब,फाँसी में ।
Comment
धन्यवाद गणेश जी ।
धन्यवाद सारस्वत जी ।
धन्यवाद लक्ष्मण जी ।
धन्यवाद रक्तले जी. आपके विचार काफी महत्वपूर्ण होते हैं ।
मत बनने दो बच्चों को आतंकवादी,
जिससे न लटके दूसरा कसाब,फाँसी में ।
सुन्दर भाव प्रस्तुत करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें आद. अखिलेश जी, यह कोई खुशी गम कि बात नहीं मगर संतुष्टि जरूर देती है.
सुन्दर भाव निहित है इस रचना में, खुलेआम जिसने निर्दोषों को मारा , उसे चुपके से मार दिया गया, क्या कही जाय !! बधाई इस प्रस्तुति पर |
मारो चुनकर आतंकियों को,
मानवता के हैं ये दुश्मन,
आज हमें तो कल अपनों को मारेंगे,
मरना,मारना ही इनका कर्म और लक्ष्य है,
खोजो इसके मूल कारण को,
जड़ से इसे समाप्त करो ।
निस्चित रूप से बुरा लगता है श्री अखिलेश मिश्रा जी , जब न्याय मिलने में देरी होती है और ऐसे दुर्दांत आतंकवादियों को पाला जाता है ! लेकिन कानून की अपनी रफ्तार होती है ! अब तो आतंकवादियों का पनाहगार खुद आतंक का शिकार हो रहा है ! वो कहते हैं ना की जेया के पांव न फटी बिवाई , वो क्या जाने पीर पराई ! बहुत सामयिक और सटीक शब्द लिखे हैं आपने
भाव के लिए बधाई अखिलेश जी
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