For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं यमुना ही बोल रही हूं

तेरे वादे कूट-पीस कर
अपने रग में घोल रही हूं
खबर सही है ठीक सुना है
मैं यमुना ही बोल रही हूं

पथ खोया पहचान भुलाई
बार-बार आवाज लगाई
महल गगन से ऊंचे चढ़कर
तुमने हरपल गाज गिराई

मेरे दर्द से तेरे ठहाके
जाने कब से तोल रही हूं
लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्‍मों को खोल रही हूं

ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी

बड़े यत्‍न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत
मैं तो यूं ही बोल रही हूं ।

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2012 at 6:18pm

मै यमुना ही बोल रही हूँ सुन्दर भावो को अभिव्यक्त करती रचना हार्दिक बधाई स्वीकारे भाई राजेश कुमार झा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 6, 2012 at 5:35pm

नदी की आत्मा की आवाज बहुत को सुन्दर शब्द मिले हैं..

लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्‍मों को खोल रही हूं...वाह! यमुना एक्शन प्लान की विफलता के पीछे सियासती कारणों कर बढ़िया कटाक्ष हुआ है. 

हार्दिक बधाई इस कविता पर 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 6, 2012 at 5:16pm

कविता का संज्ञान लेने और अपनी उपस्थिति से प्रेरित करने हेतु आप सबका हार्दिक आभार

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 4:33pm

राजेश जी लाजवाब कविता है सर मन को झकझोरती हुई सीधे ह्रदय में बस गई बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 4:18pm

ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी

बड़े यत्‍न से तेरी अमानत
गाद-गाद में घोल रही हूं
रहना रहबर सदा सलामत

वाह वाह !! बहुत ही सुंदर अभिवयक्ति . राजेश जी .बहुत -2 बधाई आपको


मैं तो यूं ही बोल रही हूं....

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2012 at 3:59pm


क्या बात है बेहद खूबसूरत लिखा है आपने सादर बधाई आपको और बाकी का गुरुदेव ने कह ही दिया है ग़जब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 2:41pm

इस कविता ने वस्तुतः आज ज़िन्दा लेकिन रोज़ मरती हुई नदी के दर्द को उभारा है.

लिखना जनपथ रोज कहानी
मैं जख्‍मों को खोल रही हूं ...  .   बहुत खूब ! सही है, सरकारिया लापरवाही आज अक्षम्य अपराध की सीमाएँ पार कर गयी है.

ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे
और फिरा दो मेरा पानी
या फिर बैठ मजे से लिखना
एक थी यमुना खूब था पानी... .  भरोसे की टूटन को क्या सुन्दर शब्द मिले हैं !

इस कविता के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ, राजेशभाईजी.

मुझे अपनी एक ग़ज़ल का मतला याद आ गया, आपकी प्रस्तुत कविता के स्वर में दुहरा रहा हूँ -

दर्द दे, ज़ख़्म दे.. सता कर दे -
इस नदी को मग़र समन्दर दे ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब हुई है ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजए गुणीजनों की टिप्पणियों से काफी कुछ…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से सीखने…"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी  संज्ञान लेने के लिए आभार आपका सुधार कर लेती हूँ सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"‌आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  कोई तो पूछता ख़ुदा…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ.संजय शुक्ल तल्ख़,  आदाब,  अलग अंदाज है, का ग़ज़ल कहने का,और सराहनीय ग़ज़ल हुई आपकी! आ.…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service