छू दो तुम.. . / फिर
सुनो अनश्वर !
थिर निश्चल
निरुपाय शिथिल सी
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .
अँकुरा दो
प्रति विन्दु देह का
लिये तरंगें
अधर पटल पर.. . !
विन्दु-विन्दु जड़, विन्दु-विन्दु हिम
रिसूँ अबाधित
आशा अप्रतिम.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !
विह्वल ताप लिए
तुम ही / अब
रेशा-रेशा
खींचो तन पर.. . !!
***************
--सौरभ
***************
Comment
महिमाश्री, आपको रचना पसंद आयी, यह हमें भी अच्छा लगा है. ओबीओ अपने उद्येश्य के प्रति जिम्मेदार है इसकी सही परख सुधी पाठक और जागरुक सदस्य ही दे सकते हैं, जो इसके उद्येश्य के कारण उचित रूप से लाभान्वित हो पा रहे हैं. अन्यथा, बड़ी-बड़ी बातें करते हुए तथाकथित मंच क्या कुछ कर रहे है, यह कहने की नहीं बस चुपचाप देखने की बात है. क्यों कि उनके प्रयास की प्रक्रिया पर अधिक पूछ दिया जाय तो वो आपसे पिण्ड छुड़ाने की कार्यवाही तेज़ करते देर नहीं करते. इस मठाधीशी से आपका मंच बचा हुआ है यह स्तुत्य तथ्य है.
आदरणीय सौरभ जी,
आपके नवगीत में एक से एक बढ़ कर बिम्ब हैं।
आपकी इस प्रस्तुति के लिए मैं आभारी हूँ।
साधुवाद!
विजय निकोर
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !
आदरणीय सौरभ सर , सादर नमस्कार
ओबिओ मंच और आप गुरुजनों की बहुत -2 आभारी हूँ / वयस्त जीवन चर्या में जब स्वाध्याय का समय नहीं मिल पता , पर ओबिओ पे आप गुरुजनों से नयी विधाओ की जानकारियाँ मिल रही है/ 5 मिनट को भी ओबिओ पे आओ तो नया सिखने और जानने को मिल जाता है /
आदरणीया सीमा जी ने नवगीत से परिचय कराया तो आपने अपनी खुबसूरत कृति साझा कर और बारीकी से समझाकर अनुग्रहित किया /
बहुत ही सुंदर . कई बार पढ़ गयी / बहुत-2 बधाई आपको
आदरणीय प्रदीपजी, इस मंच पर सभी एकमत हैं कि आप अत्यंत संवेदनशील हृदय के स्वामी हैं. आपकी वैचारिकता से हर रचनाकार अनुमोदित होना चाहता है. आपने मेरे भावों को मान दिया, इस हेतु आपका सादर अभिनन्दन.. .
भाई वीनसजी, रचना पर जब प्रतिक्रिया दिमाग़ से नहीं बल्कि हृदय से आये तो भाव-संसार झंकृत तो हो ही उठता है. हा हा हा.. .
आपका अनुमोदन वस्तुतः तोषकारी है. हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीया अन्वेषा अन्जुश्री, आपने इन तथ्यों को तदनुरूप स्वीकारा इस हेतु सादर अभिनन्दन.
सहयोग बना रहे.
भाई राजेश झाजी, आपने जिस उदारता से प्रस्तुति को मान दिया है कि अभिभूत हूँ. आप नवगीत के समृद्ध साहित्य से साबका रखें, एक से एक गीत प्रस्तुत हैं. हमसब भी प्रयासरत हैं. आपका सहयोग बना रहे.
//इसके बिंब विधान, तकनीकी पक्ष यथा मात्रा/तुक इत्यादि पर आपका आलेख मिल जाए तो जो ज्ञान अबतक प्राप्त किया है उसको एक नई दृष्टि मिल जाएगी//
भाईजी, नवगीत विधा वस्तुतः गेय कवितायें ही होती हैं, जिसमें रचनाकार शास्त्रीय मात्रिक छंदों से अलग अपनी समझ और सुविधानुसार मात्राओं का निर्वहन करता है. यह अवश्य है कि कविताओं में गेयता हेतु शब्दों के संयोजन और उनकी मात्राओं के निर्वहन में सनातन परिपाटी ही अपनायी जाती है. कोई चारा भी नहीं है. लेकिन गीतों में प्रयुक्त बिम्ब आधुनिक किन्तु कस्बाई/भदेस संदर्भों को पोषित करते हुए होते हैं.
एक बात इन नवगीतों के लिए अवश्य ही सही है कि इन रचनाओं का रचनाकार शहरी/कस्बाई परिवेश में जीता हुआ अक्सर वह व्यक्ति होता है जो गाँव और ग्रामीण परिवेश से विलग होता हुआ भी उस परिवेश से भावनात्मक जुड़ाव जीता रहता है. तदनुरूप रचनाओं के बिम्ब/प्रतीक और इंगित ऐसे ही संदर्भों से आते हैं. और यह भी कि आंचलिक शब्द और इंगित इस तरह के गीतों की शोभा तो होते ही हैं, यही संस्कार भी होते हैं.
विश्वास है, आपकी जिज्ञासा के अनुरूप कुछ साझा कर पाया. आप भारतीय छंद विधान समूह में इस विधा पर एक रुचिकर लेख देख ही चुके हैं.
धर्मेन्द्र भाईजी, आपको नवगीत पसंद आया, मेरा भी मन संयत हुआ. सहयोग बना रहे
हार्दिक धन्यवाद
आपको प्रस्तुत रचना के निहितार्थ का दृष्टिकोण रुचिकर लगा, इस हेतु सादर धन्यवाद, डॉ.प्राची.
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी,
सादर अभिवादन
मैं तो पढता ही रह जाता हूँ
बधाई.
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