For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छू दो तुम.. . / फिर
सुनो अनश्वर ! 

थिर निश्चल
निरुपाय शिथिल सी
बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .

अँकुरा दो
प्रति विन्दु देह का   
लिये तरंगें
अधर पटल पर.. . !

विन्दु-विन्दु जड़, विन्दु-विन्दु हिम
रिसूँ अबाधित 
आशा अप्रतिम.. .
झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !

विह्वल ताप लिए
तुम ही / अब
रेशा-रेशा 
खींचो तन पर.. . !!

***************
--सौरभ
***************

Views: 1020

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2012 at 12:07am

महिमाश्री, आपको रचना पसंद आयी, यह हमें भी अच्छा लगा है. ओबीओ अपने उद्येश्य के प्रति जिम्मेदार है इसकी सही परख सुधी पाठक और जागरुक सदस्य ही दे सकते हैं, जो इसके उद्येश्य के कारण उचित रूप से लाभान्वित हो पा रहे हैं. अन्यथा, बड़ी-बड़ी बातें करते हुए तथाकथित मंच क्या कुछ कर रहे है, यह कहने की नहीं बस चुपचाप देखने की बात है. क्यों कि उनके प्रयास की प्रक्रिया पर अधिक पूछ दिया जाय तो वो आपसे पिण्ड छुड़ाने की कार्यवाही तेज़ करते देर नहीं करते. इस मठाधीशी से आपका मंच बचा हुआ है यह स्तुत्य तथ्य है.

Comment by vijay nikore on December 22, 2012 at 7:02pm

आदरणीय सौरभ जी,

आपके नवगीत में एक से एक बढ़ कर बिम्ब हैं।

आपकी इस प्रस्तुति के लिए मैं आभारी हूँ।

साधुवाद!

विजय निकोर

Comment by MAHIMA SHREE on December 22, 2012 at 5:34pm

बिना कर्मचारी की मिल सी
गति-आवृति से
अभिसिंचित कर
कोलाहल भर
हलचल हल्की.. .

 

झल्लाये-से चौराहे पर
किन्तु चाहना की गति
मद्धिम !

आदरणीय सौरभ सर , सादर नमस्कार

ओबिओ मंच और आप गुरुजनों की बहुत -2 आभारी हूँ  / वयस्त जीवन चर्या में जब स्वाध्याय का समय नहीं मिल पता   ,  पर ओबिओ पे आप गुरुजनों से  नयी विधाओ की जानकारियाँ मिल रही है/ 5 मिनट को भी ओबिओ पे आओ तो नया सिखने और जानने  को मिल जाता है /

आदरणीया सीमा जी ने नवगीत से परिचय कराया तो आपने अपनी खुबसूरत कृति साझा कर  और बारीकी से समझाकर अनुग्रहित किया /

बहुत ही सुंदर . कई बार पढ़ गयी /  बहुत-2 बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 2:26pm

आदरणीय प्रदीपजी, इस मंच पर सभी एकमत हैं कि आप अत्यंत संवेदनशील हृदय के स्वामी हैं. आपकी वैचारिकता से हर रचनाकार अनुमोदित होना चाहता है. आपने मेरे भावों को मान दिया, इस हेतु आपका सादर अभिनन्दन.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 2:18pm

भाई वीनसजी, रचना पर जब प्रतिक्रिया दिमाग़ से नहीं बल्कि हृदय से आये तो भाव-संसार झंकृत तो हो ही उठता है. हा हा हा.. .

आपका अनुमोदन वस्तुतः तोषकारी है. हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 2:14pm

आदरणीया अन्वेषा अन्जुश्री, आपने इन तथ्यों को तदनुरूप स्वीकारा इस हेतु सादर अभिनन्दन.

सहयोग बना रहे.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 2:10pm

भाई राजेश झाजी, आपने जिस उदारता से प्रस्तुति को मान दिया है कि अभिभूत हूँ. आप नवगीत के समृद्ध साहित्य से साबका रखें, एक से एक गीत प्रस्तुत हैं. हमसब भी प्रयासरत हैं. आपका सहयोग बना रहे.

//इसके बिंब विधान, तकनीकी पक्ष यथा मात्रा/तुक इत्‍यादि पर आपका आलेख मिल जाए तो जो ज्ञान अबतक प्राप्‍त किया है उसको एक नई दृष्टि मिल जाएगी//

भाईजी, नवगीत विधा वस्तुतः गेय कवितायें ही होती हैं, जिसमें रचनाकार शास्त्रीय मात्रिक छंदों से अलग अपनी समझ और सुविधानुसार मात्राओं का निर्वहन करता है. यह अवश्य है कि कविताओं में गेयता हेतु शब्दों के संयोजन और उनकी मात्राओं के निर्वहन में सनातन परिपाटी ही अपनायी जाती है. कोई चारा भी नहीं है. लेकिन गीतों में प्रयुक्त बिम्ब आधुनिक किन्तु कस्बाई/भदेस संदर्भों को पोषित करते हुए होते हैं.

एक बात इन नवगीतों के लिए अवश्य ही सही है कि इन रचनाओं का रचनाकार शहरी/कस्बाई परिवेश में जीता हुआ अक्सर वह व्यक्ति होता है जो गाँव और ग्रामीण परिवेश से विलग होता हुआ भी उस परिवेश से भावनात्मक जुड़ाव जीता रहता है. तदनुरूप रचनाओं के बिम्ब/प्रतीक और इंगित ऐसे ही संदर्भों से आते हैं. और यह भी कि आंचलिक शब्द और इंगित इस तरह के गीतों की शोभा तो होते ही हैं, यही संस्कार भी होते हैं. 

विश्वास है, आपकी जिज्ञासा के अनुरूप कुछ साझा कर पाया. आप भारतीय छंद विधान समूह में इस विधा पर एक रुचिकर लेख देख ही चुके हैं. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 1:44pm

धर्मेन्द्र भाईजी, आपको नवगीत पसंद आया, मेरा भी मन संयत हुआ. सहयोग बना रहे

हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 1:43pm

आपको प्रस्तुत रचना के निहितार्थ का दृष्टिकोण रुचिकर लगा, इस हेतु सादर धन्यवाद, डॉ.प्राची.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 20, 2012 at 3:58pm

झल्लाये-से चौराहे पर 
किन्तु चाहना की गति 
मद्धिम

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, 

सादर अभिवादन 

मैं तो पढता ही रह जाता हूँ 

बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service