हास्य कहाँ कहाँ से निकलता है मुझे स्वयं यकीन नहीं होता
अब देखिये
सेठ जी ने सड़क पे पन्नी बीनते बच्चे से संवेदना भरे स्वर में पूछा
क्यूँ सड़क पर बीनते हो पन्नियाँ
मिल नहीं पाती है जब चवन्नियाँ
काम कर लो घर पे मेरे तुम अगर
रोज मिल जाएँगी कुछ अठन्नियां
लड़का बोला
जेब से सबकी चुरा चवन्नियां
हमको दोगे आप कुछ अठन्नियां
चोर के घर काम करना पाप है
उससे बेहतर है उठाना पन्नियाँ
आप भी मेहनत करो अब सेठ जी
कुछ तो जाएगा पिचक ये पेट भी
लूटने के काम कुछ तो कम करो
रेट के अब साथ चिपका वेट भी
जिन्दगी जीने की ये ही रीत है
सोच लो के डर के आगे जीत है
मतलबी दुनिया हुई है अब यहाँ
पैसा ही माँ बाप सबका मीत है
इतनी जिल्लत झेल
तिलमिला कर सेठ घर को चल दिए
बच्चे ने तो होंठ उनके सिल दिए
सेठ सोचे इसको कैसे ये पता
गाँव के लोगों को इंग्लिश बिल दिए
Comment
आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर प्रयास सेठ जी कि बोलती बंद करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय लक्ष्मण सर जी , आदरणीया सीमा जी , आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीया सुमन जी , आदरणीया अन्वेषा जी , सादर प्रणाम सभी आप सभी का ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद और आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीया सीमा जी , आदरणीया प्राची जी मैं पूर्ण प्रयास करूँगा अगली रचना में कम से कम त्रुटियाँ रहें और उनका स्तर भी ठीक रहे
हास्य पर बहुत सुन्दर प्रयास संदीप जी, हार्दिक बधाई , सिर्फ अन्तिम बंद थोडा कमज़ोर पड़ रहा है... मैं आदरणीय सीमा जी से सहमत हूँ .
संदीप जी एक अच्छे विचार से कार्य शुरू हुआ पर जब ख़त्म हुआ तो अस्पष्टता रह गयी अब आप से तो इतना कह ही सकती हूँ न की रचना पोस्ट करने में जल्दबाजी मत करिये जो स्तर आप अपने लिए निश्चित कर चुके हैं उसकी ही अपेक्षा आपसे हमेशा रहेगी अब
शुभकामनाएं
achchha hai :)
दर्शन ब्यंग्य,.....सुंदर कविता पटेल जी
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