इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों
उड़ गयी चिड़िया सुनहरी क्या बसेरा हो गया
देखते ही देखते बाजों का डेरा हो गया
कुर्बतों में मिट गयी तहजीब की दीवार यूँ
आपका कहते थे जो अब तू औ तेरा हो गया
कागजी टुकड़े खुदा हैं और उनके नूर से
बंद हैं आँखें सभी हरसू अँधेरा हो गया
जुर्म भी होते न दिखता बेसदा है चीख भी
क्या सड़क में इस कदर कोहरा घनेरा हो गया
पंछियों का शोर सुनके "दीप" अक्सर सोचता
शाम अब ढलने लगी है या सबेरा हो गया
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय अरुण अनंत भाई जी सादर प्रणाम
आपकी दाद पा कर मन प्रसन्नं हो उठा है ये स्नेह मुझे पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय वीनस सर जी सादर प्रणाम
मेरे लिए आपकी दाद मिलना अर्थात ग़ज़ल मुकम्मल हो जाना है
सच कहूँ तो आपकी दाद के बाद मेरी ग़ज़ल अपने आप को सम्पूर्ण महसूस करने लगती है
ये स्नेह मुझ पर यों ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
गुरुवर आपने मेरी इस अदना सी ग़ज़ल पर जो कृपा दृष्टि डाली है उससे ग़ज़ल कहना सफल सा लग रहा है
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही मुझ पर बनाये रखिये
और दादा आप निवेदन नहीं आज्ञा दिया कीजिये
ऐसा कह कर मुझे जमीनी आदमी को आप और गर्क में भेज देते हैं लगता है जरुर मुझ से कोई अपराध हुआ है
यदि गलती से भी कुछ ऐसा हुआ हो तो मुझे क्षमा कर दें गुरुवर
आदरणीया सीमा जी सादर प्रणाम
मेरी ग़ज़ल को आपकी दाद मिली सच कहूँ तो मन प्रसन्न हो गया और एक ऊर्जा भी आई और अच्छा करने की
आपका ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार
स्नेह अनुज पर यों ही बनाए रखिये
आदरणीया महिमा जी सादर प्रणाम
आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा और उत्साहवर्धन किया इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
स्नेह अनुज पर यों ही बनाए रखिये
जुर्म भी होते न दिखता बेसदा है चीख भी
क्या सड़क में इस कदर कोहरा घनेरा हो गया
पंछियों का शोर सुनके "दीप" अक्सर सोचता
शाम अब ढलने लगी है या सबेरा हो गया
भाई संदीप जी जवाब नही
बधाई सादर
वाह मित्रवर लाजवाब ग़ज़ल कही है,मतला ही मन में घर कर गया, दिली दाद कुबूल करें.
उड़ गयी चिड़िया सुनहरी क्या बसेरा हो गया
देखते ही देखते बाजों का डेरा हो गया
कुर्बतों में मिट गयी तहजीब की दीवार यूँ
आपका कहते थे जो अब तू औ तेरा हो गया
वह भाई पूरी ग़ज़ल अच्छी बन पडी है
यह दो शेर विशेष रूप से पसंद आए
ग़ज़ल के लिए विशेष बधाई स्वीकारें
भाई संदीपजी,
आपने ग़ज़ल क्या कही बस दिल रख लिया ! मतला ऐसे मंजर को सामने रखता हुआ है जिसका आज के हालात से सीधा जुड़ाव दिखता है. इस ग़ज़ल के लिए दिल से शुक़्रिया. बस ऐसे ही अपने कहे को साझा करते रहें.
एक निवेदन : कोहरा को कुहरा कर लें भाई. भ्रम भी न रहे और शब्द भी ठीक है. यों, कुहरा और कोहरा दोनों चलता है.
कुर्बतों में मिट गयी तहजीब की दीवार यूँ
आपका कहते थे जो अब तू औ तेरा हो गया...वाह बहुत बढ़िया संदीप जी
ग़ज़लों में आपकी कहन हमेशा एक ताज़गी लिए हुए रहती है
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