लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां
खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई
उड़ती चिड़िया ने नभ से न आने की कसमें खाई
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे, झट उर से चिपकाई
सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
देख सामाजिक ढांचा आज हर मादा शर्मिंदा है
एक सवाल अपने अस्तित्व से, री तू क्यूँ जिन्दा है ??
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Comment
प्रिय अरुण हार्दिक आभार यदि यह पीड़ा आपने दिल से महसूस की
आदरणीय सौरभ जी अपने भावों में आपके अनुमोदन को पाकर रचना सार्थक हुई हार्दिक आभार आपका ,आज के माहौल में नारी, बालिकाएं इतना असुरक्षित महसूस कर रही हैं की और शब्द नहीं हैं मेरे पास उस मनोस्थिति को बयाँ करने के लिए ,आज कल में ही छोटी छोटी बच्चियों के द्वारा लिखी गई कवितायें उनके दिल की गहराइयों से निकले भाव जिसमे आक्रोश से भी ज्यादा डर ,सकुचाहट ,असुरक्षा ज्यादा महसूस की,पढने को मिली क्या होगा आगे चलकर यही चिंता का विषय बन गया है कुछ कहते भी नहीं बनता सहते भी नहीं बनता लगता है जिस्म है जान नजर नहीं आ रही है।
आदरणीया नारी पीड़ा को व्यक्त करती बेहद मार्मिक प्रस्तुति सादर
आदरणीय राजेश कुमारीजी, हृदय व्यथित है. मस्तिष्क सन्न है. भाव दुखी हैं. गला रुँधा है. आँखें नम हैं. मन क्रुद्ध है. व्यवहार अबूझ हैं. .. आपके हृदयोद्गार की एक-एक पंक्ति मानों हूल मारती हुई बेसाख़्ता अश्रुधार सी लगातार बहती जा रही है. आपका संवेदनशील हृदय आज करोड़ो जागरुक चेतनाओं की असीम पीड़ा को स्वर दे रहा है.
मन की पीड़ा के ज्वार को आपने जिस संयत ढंग से शब्द दिये हैं वह आपके दिनानुदिन सधती जा रही काव्य-प्रौढ़ता का परिचायक है, राजेशकुमारीजी. ऐसी पंक्तियों से निस्सृत भाव-पीड़ा में शिल्प, कथ्य, प्रवाह आदि के व्यवहार नहीं, कर्कश तथ्यों की आह स्थान पाती है जो संवेदनशील हृदयों के विश्वास के आकाश को हिंडोल-हिंडोल डालती है. आगे कुछ न कह सकूँगा. सादर..
प्रिय सुमन जी आपको रचना पसंद आई उसके लिए हार्दिक आभार
बहुत सुंदर,,हर पंक्ति में सागर है , शब्दों में सार है राजेश दी,,,बहुत अच्छी कविता,,,
आदरणीय प्रदीप कुमार जी दिल से आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए ।आप सही कह रहे हैं अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए हमे अपने आज को सुधारना होगा ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
सादर अभिवादन
निश्चित तौर पे हम शर्मसार हैं .
काव्यात्मक अभियक्ति में व्यक्त व्यथा
हम सब गुनाहगार हैं
आइये नया भारत बनायें.
रचना पर बधाई.
आदरणीय लक्ष्मण जी मर्म को दिल से महसूस करने हेतु हार्दिक आभार काश इस बात को दुनिया में सभी समझें
शर्म से झुकी है आँखे मानवता का ढोंग पीटते
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