वो हडबडा कर उठ बैठी , तेज़ गति से चलतीं साँसें ,पसीने से भीगा माथा,थर-थर कांपता शरीर उसकी मनोदशा बयान कर रहे थे I वो बार-बार बचैनी से अपना हाथ देख रही थी I अकबका कर तेज़ी से उठी और बाथरूम की तरफ भागी I कई बार साबुन से हाथ धोया, उसकी धड़कने अभी भी तीव्र गति से चल रहीं थीं, शरीर अभी भी काँप रहा था I बेडरूम में वापस न जाकर ड्राइंग रूम में बिना उजाला किये सोफे पर निढाल हो कर गिर पड़ी I आँख बंद करते ही फिर वही सपना सजीव हो उसकी मनोभूमि पर अवतरित हो गया..उसके हाथों में खून से सने माँस के लोथड़े I मानव शरीर के क्षत -विक्षत अंग हाथ, पैर, नाक कान पेट उफ़ !!! और साथ ही नेपथ्य से गूंजत एक मार्मिक आवाज़............
"माँ मुझे बचाओ, मत मारो मुझे, मै तुम्हारे पास आना चाहती हूँ, खेलना चाहती हूँ, तुम्हारी गोद में, सोना चाहती हूँ तुम्हारी लोरी सुन कर... माँ बस एक बार मौका दो, मैं तुम्हे बिलकुल परेशान नहीं करूँगी तुम्हारी सब बात मानूँगी, पहले भी तुमने मुझे अपने पास आने से रोक दिया था..... उस दिन मैंने बार-बार तुम्हारा हाथ अपने सर पर महसूस किया था... पेट में लेटी मैं कई बार जोर जोर से हिली थी शायद तुम उस दिन बहुत रोई थी...और फिर एक तेज़ रोशनी मेरे ऊपर पडी... कुछ ही क्षणों बाद एक तेज़ धार वाली छुरी आई... मैं डर गयी.. तुम्हें पुकारा भी, रोई भी, पर तुम तो बेहोश थी... उस छुरी ने मेरा अंग-अंग धीरे-धीरे काटना शुरू कर दिया... मै दर्द से चीखती रही "बचाओ माँ, बचाओ माँ".......पर तुम कैसे सुनती..... एक-एक कर उस छुरी ने मुझे पूरा काट डाला और फिर सब ख़त्म....माँ पता है? उस ईश्वर ने मुझे तुम्हारे पास आने का एक और मौका दिया है, एक और शरीर दिया है मुझे.... माँ मुझे इस बार अपने पास आने देना इस बार तुम चुप मत रहना"
एक बार फिर वो हडबडा कर उठ बैठी... अचानक ही उसकी मुट्ठी कस गयी, जबड़े भिंच गए, कनपटी की नसें बेतरह तपकने लगीं, लगा की जैसे फट जायेंगी आँखे ज्वाला सी लाल I वो उठकर तेज़ी से बेटे के कमरे के दरवाज़े तक पहुँच उसे जोर-जोर से खटखटाने लगी….
"शलभ शलभ"
बेटे ने दरवाज़ा खोला, हैरान परेशान सा माँ को देखता हुआ बोला,....
'क्या हुआ माँ ?'
बेटे के पीछे-पीछे बहु भी सहमी सी आकर खड़ी हो गयी, कुछ ही पलों में पति और सास भी शोर सुनकर वहाँ उपस्थित हो गए I सब उसे अजीब निगाहों से देख रहे थे I पति ने उसे शांत करने के लिए कंधे पर हाथ रखा और हाथ पकड़ बेटे के बेड पर बिठाने की कोशिश की, पर उसने बिजली की तेज़ी से उनका हाथ झटक दिया और लगभग गरजते हुए आदेश देते हुए बोली,.....
'लतिका की मेडिकल फाइल लेकर आओ अभी और तुरंत''
क्या हुआ माँ इतनी रात में !!!! क्या करोगी उसका ?
बेटे ने जानना चाहा पर वो तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी I उसने उसी भंगिमा के साथ अपनी बात दोहराई .....
'मुझे लतिका की मेडिकल फाइल चाहिए...बिलकुल अभी'
पति ने बात संभालने के लिए फिर से उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले .......
'शायद कोई बुरा सपना देखा है, चलो पानी पियो और सो जाओ सुबह बात करेंगे'
पति की बात खत्म होने से पहले ही वो चीख पड़ी .........
'नहीं बात अभी ही होगी, शलभ तुमने सुना नहीं मुझे लतिका की मेडिकल फाइल चाहिए'
बहु ने सास का ये रूप पहली बार देखा था I वो भी चिंतित हो गयी फाइल उसके हाथ में देती हुयी बोली..........
लीजिये मम्मी और शांत हो जाइए'
फाइल हाथ में आते ही उसने उसे खोला और डॉक्टर कोठारी से लिए गए कल सुबह ७ बजे के अपोइन्टमेंट के कागज़ निकाल लिए I कोई कुछ पूछता या रोकता उसके पहले ही उसने उन कागजों की चिंदी-चिंदी कर फर्श पर बिखेर दी I उसकी सास जो अब तक मूक हो सब कुछ देख रही थी जोर से बोली…...........
ये क्या बहु ???? कितनी मुश्किल से अपोइन्टमेंट मिला था १५००० रुपये भी जमा किये जा चुके हैं... कल नहीं गए तो इतनी जल्दी दूसरी तारीख भी नहीं मिल सकेगी... चलो अब सो जाओ सब लोग, कल सुबह जल्दी उठ कर जाना भी है'
कह कर वो सोने के लिए चल दीं.... उसने जलती हुयी आँखों से सास की तरफ देखा और बोली.........
'कोई कहीं नहीं जायेगा... और कितनी हत्याएँ करोगे तुम लोग ???? आज से २३ साल पहले मेरी कोख पर भी छुरी सिर्फ इसलिए चली थी क्योंकि मै एक बेटी को जन्म देने वाली थी, बेटे को नहीं I उस समय मै डर से कुछ नहीं बोल सकी पर अन्दर ही अन्दर कितना तड़पी हूँ अपनी बच्ची के लिए... उसके एक-एक अंग को कटते हुए महसूस किया है मैंने, पिछले २३ सालों से अपनी ही बच्ची की हत्या की साजिश में शामिल होने का गुनाह अपनी आत्मा पर लिए जी रही हूँ, अपनी चुप्पी के लिए हर घडी अपने को कोसती रही... पर आज मै चुप नहीं रहूँगी…सुन लिया आप सबने आज मै चुप नहीं रहूंगी'
वो अनवरत बोलती जा रही थी... ........
'मेरी बेटी इस आँगन में आएगी ....मैं लतिका के साथ भी वही सब कुछ नहीं होने दूँगी जो मेरी चुप्पी ने मेरे साथ किया था'
बात के आगे बढ़ने के साथ-साथ उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास और सत्य का पक्षधर होने का गर्व दोनों ही झलकने लगा था I बहते हुए आँसुओं में आज वो अपनी आत्मा का सारा कलुष धो देना चाहती थी... उसने प्यार से लतिका का हाथ पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींच लिया लतिका तो मानो जी उठी आने वाला सूरज जो अब तक बादलों में ढँका था उस पर से चिंता और दुःख की बदली छँट चुकी थी I मम्मी के एक निर्णय ने उसकी रुकी हुयी साँसों में जीवन का संचार कर दिया था I एक मजबूत संबल पा वो भी दृढ़ता से बोली…
'आप तीनो सुन लीजिये कल मै डॉक्टर कोठारी के पास नहीं जा रही हूँ और यदि आप लोगो ने कोई भी जबरदस्ती की तो मैं पुलिस के पास जाने से भी पीछे नहीं हटूँगी I बहुत रात हो चुकी है अब सब लोग सो जाइए'
वो बेहद संतुष्ट भाव से लतिका की तरफ देख रही थी और सोंच रही थी काश !! उस दिन उसकी सास ने भी उसका साथ दिया होता तो शायद वो भी हिम्मत दिखा पाती और आज उसकी बेटी भी जिंदा होती फिर भी वो खुश थी, पिछले २३ सालों के अवसाद और तनाव के बोझ से वो आज मुक्त थी एक लम्बी साँस लेते हुए बोली,.........
"देख बेटी आज मै चुप नहीं रही अब तो तू आ रही है ना मेरे पास" |
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आज बहुत दिनों बाद उपस्थित हुयी हूँ ..कहानी पसंद करने के लिए आप सभी का शुक्रिया
किशन जी आपने लिखा //आज से २३ साल पहले मेरी कोख पर भी छुरी सिर्फ ................... यहा कथा थोड़ी बनावटी लगती हे क्योकि उस वक्त जाचने की सुविधा सायद नही थी // मेरा बेटा आज २५ साल का हो चुका है और आज से २५ साल पहले भी इस प्रकार की जांच सफलता पूर्वक की जाती थीं बल्कि चरम पर थीं l भारत में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 1994 में पहली बार कानून दी प्री नेशनल डायग्नोस्टिक टेकनीक्स (रेगूलेशन एंड प्रीवेशन आफॅ मिसयूज) एक्ट, 1994 बनाया गया तथा 1996 में इस के अंतर्गत नियम तथा सलाहकार समिति के नियम बनाए गए। और अब आप स्वयं ही समझ सकते हैं की उससे पहले ये सब बिना रोक टोक धड़ल्ले से किया जा रहा होगा l कानून आने से पहले लड़कियों की तेजी से गिरती संख्या ने ही सरकार को यह कदम उठाने के लिए विवश किया l यह भी बताना चाहूंगी की उस समय सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण हेतु किये जा रहे प्रयासों की सफलता का एक कारण कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती वारदातों को ही माना गया था l
कहाने पसंद करने के लिए शुक्रिया
आदरेया सीमा जी सादर, बहुत सुन्दर कहानी सच है हर बहु को यदि सास का संबल मिले तो यह समस्या हल होते देर नहीं लगेगी. सुन्दर कहानी पर बधाई स्वीकारें.
एक सास ने अपनी सास की तरह न बन कर अपनी सास की मंशाओं पर पानी फ़ेरते हुये एक बहु बन कर अपनी बहु् का साथ दिया. .....बधाई
सादर
बहुत संवेदनशील ताना बाना बुना गया है इस कहानी का, ह्रदय अन्दर तक झंझोर दिया , रुला दिया इस संवेदनशील अभिव्यक्ति नें.
उस छुरी ने मेरा अंग-अंग धीरे-धीरे काटना शुरू कर दिया... मै दर्द से चीखती रही "बचाओ माँ, बचाओ माँ".......पर तुम कैसे सुनती..... एक-एक कर उस छुरी ने मुझे पूरा काट डाला और फिर सब ख़त्म..
कितना दर्दनाक रहा होगा यह भ्रूण के लिए और माँ के लिए भी, इसको महसूस कर पाना आसान नहीं, निःशब्द हूँ आत्मिक क्रंदन के साथ. अपने अंश को मांस के रक्तसने लोथड़ो में तब्दील होते देखना, महसूस करना, फिर एक सूना पन शून्य, स्वयं को माफ़ न कर पाने के दर्द का आजीवन स्वप्नों में भी पीछा नहीं छोड़ना, यह सब बहुत संवेदना के साथ व्यक्त किया है आपने.
फिर अचानक सालों बाद एक हिम्मत का आ जाना और अपनी सास के विरुद्ध अपनी बहू को उस यातना के दौर से बचाना..सामाजिक परिपेक्ष्य में आज औरत को औरत का संबल बनने की आवश्यकता को स्वर दे रहा है.
पर दुःख तो तब होता है जब समाज में औरतों को पुत्र प्राप्ति के लिए ज्यादा लालायित देखते हैं, शर्म आती है, उन औरतों पर जो स्वेच्छा से स्वयं अपने कन्या भ्रूण की हत्या करवाती हैं एक बार, दो बार, बार बार, क्योंकि उन्हें पुत्र चाहिए..
तरस आता है उन माताओं पर जो कन्या के जन्म पर रोती हैं.
क्या कहा जाए इस पर...कैसे रुकेगा यह पाप का तांडव. सिर्फ प्रश्न हैं?
इस कहानी के संवेदनशील लेखन लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीया सीमा जी.
गणेश जी ,
आपने जो उलझन महसूस की उसके लिए इसमे कुछ बदलाव करूंगी ....आपकी उपस्थिति से हार्दिक प्रसन्नता हुयी
सौरभ जी ,
आप एक अति संवेदनशील इंसान और रचनाकार हैं | आपका कहना बिलकुल ठीक है ..... पर पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि हर रचनाकार के मन में एक आशा की भावना हमेशा रहनी बहुत ज़रूरी है | बस यही बताना चाहा है कि यदि समाज में वैसे लोग हैं और वैसा हो रहा है तो कहीं ऐसा भी हो रहा है या हो सकता है |
मैंने इस कहानी को सिर्फ समस्या के एक समाधान के रूप में प्रस्तुत करना चाहा है | शायद यह एक "काश " का निरूपण है
//अलबत्ता अजन्मी बेटी का मोनोलॉग थोड़ा लम्बा खिंच गया है// आपने ठीक कहा ...
इसका कारण मेरी एक ऐसी मानसिक स्थिति रही जिसने चाह कर भी कुछ भी हटाने के अनुमति नहीं दी | जब भी कुछ कम करना चाहा एक आवाज़ 'क्या मेरा दुःख इससे भी कम है'... ( मेरी डॉक्टर मित्र ने एक वीडियो दिखाया था जिसमे एबॉर्शन की पूरी प्रकिया को देखा ....वो कष्ट की इंतिहा थी जिसका १% भी शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता )...बस इसी आत्मग्लानि ने शब्द कम नहीं करने दिए जो एक प्रवाह में महसूस करके लिखा गया वही प्रस्तुत कर दिया | व्यक्तिगत रूप से मुझे भी वो हिस्सा पढ़ना नहीं पसंद |
आपने मेरे इस प्रयास को पुनः पढ़ा और उचित सुझाव दिया हार्दिक धन्यवाद
प्रिय महिमा ,
बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ स्वागत है आपका ....प्रस्तुति से आप जुड़ सकीं ये मेरे लिए खुशी की बात है हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय लक्ष्मण जी आपने सच ही कहा पर ये सपना नहीं कुछ प्रत्यक्ष था जिसने इस व्याकुलता को जन्म दिया ..........हार्दिक धन्यवाद आपका
///बहु ने सास का ये रूप पहली बार देखा था I वो भी चिंतित हो गयी फाइल उसके हाथ में देती हुयी बोली..........
लीजिये मम्मी और शांत हो जाइए'
फाइल हाथ में आते ही उसने उसे खोला और डॉक्टर कोठारी से लिए गए कल सुबह ७ बजे के अपोइन्टमेंट के कागज़ निकाल लिए I कोई कुछ पूछता या रोकता उसके पहले ही उसने उन कागजों की चिंदी-चिंदी कर फर्श पर बिखेर दी I उसकी सास जो अब तक मूक हो सब कुछ देख रही थी जोर से बोली…...........
ये क्या बहु ???? कितनी मुश्किल से अपोइन्टमेंट मिला था १५००० रुपये भी जमा किये जा चुके हैं.//
इस पैरा में आकर कहानी उलझ सी गई , कई बार पढ़ना पड़ा तब जाकर लगा की कहानी में दो सास, दो बहूँ , एक बेटा सहित ४ पात्र प्रत्यक्ष हैं और एक अप्रत्यक्ष पात्र | कहानी का प्लाट बढ़िया है, विस्तार को कम और सरल होना चाहिए था ताकि आराम से कथ्य क्लियर हो सके |
बहन महिमाश्री, मेरे विचारों को मिला आपका अनुमोदन मुझे आश्वस्त कर रहा है. धन्यवाद.
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