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ग़ज़ल :-आग नहीं कुछ पानी भी दो


ग़ज़ल

आग नहीं कुछ पानी भी दो
परियों की कहानी भी दो |

छोटे होते रिश्ते नाते
मुझको आजी नानी भी दो |

दूह रहे हो सांझ-सवेरे
गाय को भूसा सानी भी दो |

कंकड पत्थर से जलती है
धरा को चूनर धानी भी दो |

रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो |

हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो |

जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी भी दो |

बहुत हो गए लीडर अफसर
ग़ालिब मोमिन फानी भी दो |

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on November 29, 2010 at 4:02pm
shesh jee thanks i was out for few days but after returning i have seen your posts they are excellent congrats!!
Comment by Abhinav Arun on November 8, 2010 at 2:09pm
श्री जोगेश्वर जी ,बागी जी ,आदरणीय अनुपमा जी ,Anjana Dayal de प्रेवित्त जी ,आशीष जी आप सब ने ग़ज़ल सराही आभार ! आपके अलफ़ाज़ हौसला और ऊर्जा देंगे !!
Comment by Abhinav Arun on November 8, 2010 at 2:04pm
बागी जी चौथे शेर में कृपया धारा को "धरा" कर दें आभारी रहूँगा ! जानता था इस बार आपने बात अपने मन में रख ली !
Comment by jogeshwar garg on November 6, 2010 at 12:06pm
समझदार इंसानों को
थोड़ी-सी नादानी भी दो

सुन्दर ग़ज़ल !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 6, 2010 at 10:14am
जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी भी दो |

बेहतरी ग़ज़ल, सभी के सभी शे'र अच्छे है, कोट किया हुआ शे'र मेरे दिल को छुआ, बहुत बढ़िया, बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु बधाई |
Comment by Anupama on November 5, 2010 at 7:50pm
रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो |

हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो |
bahut sundar!!!
Comment by Anjana Dayal de Prewitt on November 5, 2010 at 6:47pm
waah! bahut khoobsurat!
Comment by आशीष यादव on November 4, 2010 at 6:07am
Waah, kya baat hai. Aaj ke sikudte rishto ko purjor failane ki koshish.

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