ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
बारूद के ज्वाला मुखी को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम
भाई कहकर छल से पीठ पर करते वार हो
तुम कायर तुम नपुंसक बुद्धि से लाचार हो
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं
मूषक स्वयं शिकारी समझे सिंघों के शीर्ष चुराके
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
देश के बच्चे बच्चे को तुमने अब उकसाया है
राम अर्जुन भगत सिंह ने अब गांडीव उठाया है
मत लो परीक्षा बार बार तुम देश के रखवालो की
बांच लो किताब फिर से आजादी के मतवालों की
वही लहू है वही युवा हैं वही वतन की है माटी
वही जिगर है वही हवा है वही जंग की परिपाटी
ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के ।
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Comment
बहुत सही लिखा आपने राजेश कुमारी जी .......ऐसे नृशंश लोगो को जानवर कहना भी जानवर का अपमान है ....सीमा पर जोश भरती आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ....
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर समसामयिक अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
राजेश कुमार झा जी बहुत पसंद आई आपकी पंक्तियाँ सराहना पाकर मन प्रसन्न हुआ हार्दिक रूप से आभारी हूँ
आदरणीय प्रदीप कुशवाह जी आपने मेरे उद्द्गारों में अपने शब्द मिलाये हार्दिक रूप से आभारी हूँ
बिल्कुल सामयिक प्रस्तुति है । मुझे अपनी एक कविता की कुछ पंक्तियां याद हो आई
'वीर भाल पर तिलक शोभता, गलियों का गर्द गुबार नहीं
हो जाता वह प्रेम तिरष्कृत जिसका पौरूष आधार नहीं
शक्तिपुत्र हे अब निर्भय हो शस्त्रों का संधान करो
एक प्रहार से कोटि दनुज का आज अभी अवसान करो'
बहुत सही लिखा है आपने , सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी
सादर
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं
जवानों ने भारी हुंकार
सारा भारत है तैयार
बधाई
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