शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
हमने जिसको अपना समझा, पीठ मे खंजर उसने घोपा है।
आज बता दो उनको की, अब ये आखिरी धोखा है।
अब फूल नही हाथो मे तलवार हमे उठाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
कभी सुर से कभी ताल से, रिश्ते बेहतर हमने निभाये है ।
उन ने छेडा राग घृणा का, हमने गीत प्यार के गाये है
बहुत गा चुके राग अमन का, अब रणभेरी हमे बजाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
टूट गया है सब्र बाँध का, अब सहन नही कर पायेंगे ।
दो शीश कटे है हमारे, वहाँ से नरमुंड हार पहन के आयेंगे ।
त्रिशक्ति को अब जालिम पे, कोहराम तो बरपाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
भुल गया है वो शायद इतिहास अपनी हार का ।
कैसे मुँह तोड दिया था, जबाब तेरे हर वार का ।
पहले हमने छोड दिया था, अबकी तिरंगा वहाँ लहराने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
जंग न लगने पाये हमारे, फौलादी जज्जबातो को ।
हुंकार भरो और जगा दो, देश के हुक्ममरानो को ।
बातो का अब काम नही, सीमा पे फैसले होने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ. प्राची जी आ. राजेश कुमारी जी .. आप के सहयोग और आशिर्वाद के लिये धन्यवाद ... ये प्रशंसा हमे आंगे बढने के लिये प्रेरणा देगा
सुन्दर सामयिक सशक्त गीत के लिए बधाई बसंत जी
बेहतरीन भाव वीर रस से ओतप्रोत प्रस्तुति हेतु बधाई
श्री गणेश जी,श्री अरुन जी , श्री राम शिरोमणी जी आप का बहुत बहुत साधुवाद ...... आप की बधाई शिरोधार ....धन्यवाद
वीर रस से ओतप्रोत बेहद शानदार प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें
वीर रस से पगी एक अच्छी रचना, बधाई स्वीकार करें आदरणीय नेमा जी ।
उत्तम अति उत्तम महोदय ,कुछ ऐसा ही करने की आवस्यकता है !
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