गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!
क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!
ईश्वर !
गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !
हटाओ ये गरीब की ओट,
तू भी बेईमानी में लोट !
इश्वर ने फिर मुझको डाटा,
क्यूँ तूने अपना गम बाटा!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
गरीबी के रोने पर व्यंग करती सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें राम शिरोमणि जी.
मैंने यह मंच इसी लिए ज्वाइन किया है की आप जैसे गुरुजनों का सानिध्य मिले और मै अपनी गलतियों का सुधार कर सकू !! आप लोगो का स्नेह मिल रहा है हार्दिक आभार आप सब का !!सौरभ सर आपका मै हार्दिक आभार मानता हूँ !जबसे रचनाये मै पोस्ट कर रहा हु आपका बराबर सुझाव मिल रहा है !!
वाह !!! सामयिक परिदृश्यों को शब्दों में सुंदरता से पिरोया है, बधाई...............
गरीबी के मुद्दे पर अच्छा कटाक्ष किया है अंतिम पंक्तिया बहुत अच्छी लगी जो गम देता है वो किसी से बांटने भी नहीं देता ,वाह सही सोच बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कह दिया टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें
भाई राम शिरोमणिजी, मंच पर आपकी सदस्यता आपके रचनाकर्म के विकास में उत्प्रेरक का काम करे. आप अन्य रचनाकारों की रचनाएँ अवश्य पढ़ते होंगे, उन पर आपनी समझ के अनुसार कमसे कम एक औसत पराग्राफ की टिप्पणियाँ दिया करें. इस आदत से देखियेगा, बहुत कुछ सधने लगेगा. अक्षरी/हिज्जे दोष देखियेगा, वह भी दूर होगा.
अपनी प्रस्तुत रचना के निम्नलिखित वाक्यांश को देखिये =
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,ब्याग्र ,ब्याकुल मन से ,
देखिये, रेखांकित शब्दों की अक्षरियाँ/हिज्जे अशुद्ध हैं. और, कब दूर होगी गरीबी इस तन से ... इसका क्या मायना भाई ? तन से गरीबी ?
भाई इस तरह के बिम्ब को किसी और रूप में प्रयोग किया जाता है.
शुभेच्छाएँ
मुनव्वर राणा जी का शेर याद आ रहा है ....
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते ।
सच ये है की मेहनत और ईमाननदारी की रोटी में ही आफ़ियत है .
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