इन दिनों वो अपने आस पास रेशम बुनने लगी थी | बहुत ही महीन मगर चमकीली, हर समय बस एक ही धुन सवार हो गयी थी उस को रेशम बुनने कि | जहाँ भी वो रहती बस रेशम के धागों में उलझी हुई रहती |
कई कई बार वो घायल हो जाती, मगर वो रेशम बुनने में ही तल्लीन रहती उसके घायल मन से बना रेशम बहुत ही खूबसूरत होता |
वो पहले ऐसी नहीं थी | कितना तो काम होता था उसके पास, उसकी होड थी सब से आगे निकलने कि तो उस सूरज के निकलने से पहले उसको जागना होता था कहीं वो सूरज, न जीत जाए उससे, सूरज अपनी लालिमा से सुबह को सराबोर करे उससे पहले ही वो उठ के सारे आंगन को बुहार देती थी | कच्ची मिटटी कि सुगंध से सुबह भी अलसाई सी उठ जाती थी |
पंक्षियों के प्रथम सुर के छिड़ने से पहले ही वो अपना मधम सुर में राग छेड़ देती थी पंक्षी भी जाग जाते थे उसको सुन कर और साथ देने के लिए कोरस में तान छेड़ देते थे | पगडंडियाँ दिन भर कि चहल कदमी से थकी हारी सी उठ भी नहीं पाती थी कि वो पनघट से लाते हुए गागर को छलका के उसको जगा देती थी |
दिन दौड़ता रहता उसको हराने के लिए और वो तेज दौड़ती रहती जीत जाने के लिए रूकती थी तो बस .... चाँद से उसके किस्से सुनने के लिए
एक दिन चाँद ने उसको इश्क कि दास्ताँ सुनाई, चाँद नहीं चाहता था उसको इश्क के बारे में कुछ कहे मगर लड़की कि जिद्द थी कि कोई ऐसी दास्ताँ सुनाओ आज कि लम्हा भी ठहर जाए और शब गुजर जाए | चाँद हंसा उसकी नादानी पर.... चाँद ने कहा ऐसे किस्से सुन के मन बोझल हो जाया करते है | क्या करोगी बोझ दिल में लेकर कहीं रोग लग गया तो देखो कल का सूरज तुम से जीत जाएगा मगर लड़की ने ठान लिया था आज कुछ ऐसा सुनेगी कि दिल कि धडकनों को वो रगों में महसूस करेगी, अल्हड सी वो अपने में मस्त ..... चाँद नहीं चाहता था वो इश्क में उलझे, मगर लड़की के आगे चाँद कि एक न चली ....
चाँद ने किस्सा गढना शुरू किया .............. इश्क का किस्सा कि इश्क दिखने में भोलाभाला था मासूम बिलकुल नादान जो भी देखे उसको चाहने लगे मगर इश्क जितना भोला था उतना ही वो सरफिरा भी था | वो वहाँ होना चाहता था जहाँ कोई उसको पूछे न मगर जहाँ भी वो जाता लोगो के दिलो में चाहतें पैदा हो जाती, कुछ पल वो खुश होता इत्ती सारी चाहतो को देख के मगर फिर वो अनमना सा हो के रूठ जाता और चला जाता वहाँ से दूर किसी देश, मगर चाहतें उसी का जैसे इन्तजार कर रही होती ।
एक दिन इश्क ने चाहत से पूछ लिया कि क्यूँ तुम मेरा पीछा करती हो ?
चाहत हंसी और बोली जो जीने कि वजह हो उनसे दूर कैसे रहा जा सकता है, इश्क हैरान था .....हैरान इश्क को देख के चाहत मुस्कुरा पड़ी लम्हों कि बात थी कुछ हलचल सा हुआ दिल में और इश्क के दिल में चाहत कि मुस्कान उतर गयी, इश्क चुप सा हो गया ।
चाहत इश्क कि चुप्पी देख के उदास हो गयी, इश्क को अच्छा नहीं लगा चाहत का उदास चेहरा दोनों को एक दूसरे कि उदासी खलने लगी थी
इश्क और चाहत अब गहरे दोस्त हो गए थे इश्क चाहत के ही इन्तजार में रहने लगा था और चाहत खुश रहने लगी थी |
चाँद ने देखा, लड़की खोयी हुई है उसकी कहानी में और उधर सुबह ने पहली दस्तक दे दी थी ।
आज लड़की हार गयी सूरज से सुना नहीं पंक्षियों ने भी कोई सुर नया और पगडंडी भी बाट जोहती रही उस पगली का और वो लड़की रात से रेशमी ख्वाब बुनने जो बैठी अब तक उन्ही रेशमी ख्यालो में उलझी हुई थी |
चाँद को इन्तजार रहता है उस लड़की का, अपनी गलती का शिद्दत से एहसास है चाँद को, वो मायूस है मगर लड़की घायल है इश्क के इन्तजार में फिर भी बुन रही है वो रेशमी ख्वाब |
Comment
इश्क की दास्ताँ पहले ऐसी कभी नहीं सुनी,दिव्या जी, ऐसी दास्ताँ जिसमे पक्षी,पगडंडी,बाँट जोहते रहे, इश्क और चाहत की दोस्ती को सलाम, सूरज और चाँद के सहारे एक स्तरीय कहानी इन पंकियों के लिए विशेष बधाई -
"आज लड़की हार गयी सूरज से सुना नहीं पंक्षियों ने भी कोई सुर नया और पगडंडी भी बाट जोहती रही उस पगली का और वो लड़की रात से रेशमी ख्वाब बुनने जो बैठी अब तक उन्ही रेशमी ख्यालो में उलझी हुई थी |"
सामर्थ नहीं कुछ लिखूं
बधाई.
स्नेही दिव्या जी.
सादर
divya ji aapne badi hi marmik dil ko choo lene bali dasdan ka ullekh kiya he badhai sweekaren
आदरणीया दिव्या जी:
याद भी नहीं कर सकता कि पिछ्ली बार कब
इतनी अच्छी कहानी पढ़ी थी।
बधाई
विजय निकोर
प्रिय दिव्या जी,
आपकी इस कहानी की तारीफ को शब्दों में बाँध पाऊँ , वो शब्द ही नही हैं मेरे पास.....
एक पूरी ज़िंदगी की तरह, जैसे जी लिया है इस रचना को, बहुत बहुत सुन्दर.
आप ऐसा ही सुन्दर लिखती रहें, बहुत बहुत आगे बढ़ें और सूरज सी रौशन हो आपकी लेखनी सबके हृदयों को भी अपनी किरणों के आवरण में समेटती रहे.....
बहुत बहुत शुभकामनाएं.
आपकी और रचनाओं का भी इंतज़ार रहेगा.
रेशमी शब्दों से बुना गया
रेशमी अहसास में ढाला गया
रेशमी ख्वाब ....
क्या कहने बहुत ख़ूब...
दिव्य जी ।
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