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दुबारा पढ़ रही हूँ जितनी तारीफ करूँ कम होगी आपकी रचनई चमत्क्रत करती हैं शुभ कामनाये
sandeep ji bada hi sunder riton ka bakhan kiya hai badhai keep it up.
भाई संदीप जी, आपका रचना-कर्म मुग्धकारी है और मैं मुग्ध हूँ. पाठक के भाव-तंतुओं को तरंगित करती पंक्तियाँ सुन्दर और सार्थक शब्दों के संचयन से कालजयी हुई हैं.
दोहा के साथ रोला का संबंध यहाँ कुण्डलिया छंद से इतर प्रस्तुत गीत में इतने मनोहारी और अन्योन्याश्रय ढंग से निभता हुआ है कि आपके रचनाकर्म को ही एक नई ऊँचाई नहीं दे रहा है, बल्कि सनातनी काव्य-विधा को भी गणीतीय गणनाओं के सापेक्ष किंतु उनसे परे झांकने का सुयोग बना रहा है. भाई संदीपजी, जब छंद विधा भाव और लालित्य से सिंचित हो कर प्रस्तुत होती है तो प्रसंग ऐसे ही अद्वितीय हुआ करते हैं.
हृदय से बधाई.. . बार-बार बधाई.. .
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