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खोल दो सारे बंद लो निर्मल आनंद
चेतना हो जाग्रत शरण तेरी सचिदानंद
बधाई सर जी
सादर
बात जरा सी किन्तु सभी की आँखें खोल देने वाली एक सम्वेदनशील मन की सुंदर सोच बहुत बढ़िया लघु कथा कई बार हमे बच्चे ही बेहतर सीख दे जाते हैं कई बार हमे बच्चे ही बेहतर सीख दे जाते हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी इस लघु कथा हेतु
अच्छी प्रेरणास्प्रद लघु कहानी, जिसमे बगैर आगे कुछ कहे, अन्य को भी स्वतः सन्देश मिल रहा है । हार्दिक बधाई श्री गणेशजी बागीजी
आपके संवेदनशील ह्रदय नें क्या क्या नहीं महसूस किया है, और किस खूबसूरती से आप लघुकथा में संवेदना को पिरो कर सबके साथ सांझा करते हैं...यह लघुकथा भी बहुत छोटे सी घटना से प्रेरित पर बहुत उच्च कर्म को प्रेरित करता कथ्य सांझा करती है... इस सार्थक रचना के लिए बधाई आदरणीय गणेश जी
संवेदना बस द्वार चाहती है. द्वार मिला नहीं कि बह निकली. बढिया और संदेशपरक लघुकथा के लिए बहुत-बहुत बधाई, गणेशभाई.
बहुत सुन्दर विचारों से भरी लघु कथा सर जी
बहुत सुन्दर विचारों से भरी लघु कथा सर जी
वाह कमाल श्री बागी जी ! आज के संक्रमण काल में ऐसी ही सन्देश परक सकारात्मक कृतियों के सृजन की आवश्यकता है । समाज से कटाव और छीजन के इस दौर में ऐसी रचनाएँ उम्मीद जगाती है हार्दिक साधुवाद !!
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