For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : उत्प्रेरण / गणेश जी बागी

"माँ टिफिन बैग में रख दी हो ना",  पूछते हुए राहुल बैग लेकर स्कूल निकल गया। कालोनी के आठ-दस लड़के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। साथ ही स्कूल जाते थे।
इधर राहुल में एक बदलाव मैंने नोट किया था । टिफिन ले जाने में आनाकानी करने वाला राहुल जो मुश्किल से दो पराठे लेकर जाता, अब तीन पराठे लेकर जाने लगा था । दोपहर में पडोसी मिसेज गुप्ता मिल गई थी बताने लगी कि राहुल और उसका ग्रुप आज कल समाज सेवा में लगा है । 
मैं पूछ बैठी, "कैसी समाज सेवा ?" 
मिसेज गुप्ता ने जो कुछ कहा उससे मैं थोड़ी आश्चर्य चकित हुई। राहुल ने यह कुछ मझे नहीं बताया था । 

दूसरे दिन राहुल के स्कूल जाने के तुरंत बाद मैं भी उसके पीछे चुपके से निकल गई। राहुल और उसका ग्रुप रास्ते में पड़ने वाली बस्ती के नजदीक टिन शेड में एक समाज सेवी संस्था द्वारा गरीब बच्चो के लिये चलाये जा रहे स्कूल के पास रुका था। ग्रुप के सभी लड़के अपने-अपने टिफिन से कुछ खाना निकाल कर एक प्लास्टिक के थैले में रख उस स्कूल में दे दिया। मैं वापस घर लौट आयी। 
अगले दिन राहुल की टिफिन में चार पराठे थे।
***

Views: 841

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on February 17, 2013 at 5:51pm

खोल दो सारे बंद लो निर्मल आनंद 

चेतना हो जाग्रत शरण तेरी सचिदानंद

बधाई सर जी 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 16, 2013 at 7:05pm

बात जरा सी किन्तु सभी की आँखें खोल देने वाली एक सम्वेदनशील मन की सुंदर सोच बहुत बढ़िया लघु कथा कई बार हमे बच्चे ही बेहतर सीख  दे जाते हैं कई बार हमे बच्चे ही बेहतर सीख  दे जाते हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी इस लघु कथा हेतु

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 16, 2013 at 5:52pm

अच्छी प्रेरणास्प्रद लघु कहानी, जिसमे बगैर आगे कुछ कहे, अन्य को भी स्वतः सन्देश मिल रहा है । हार्दिक बधाई श्री गणेशजी बागीजी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 16, 2013 at 4:41pm

आपके संवेदनशील ह्रदय नें क्या क्या नहीं महसूस किया है, और किस खूबसूरती से आप लघुकथा में संवेदना को पिरो कर सबके साथ सांझा करते हैं...यह लघुकथा भी बहुत छोटे सी घटना से प्रेरित पर बहुत उच्च कर्म को प्रेरित करता कथ्य सांझा  करती  है... इस सार्थक रचना के लिए बधाई आदरणीय गणेश जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2013 at 3:40pm

संवेदना बस द्वार चाहती है.  द्वार मिला नहीं कि बह निकली.  बढिया और संदेशपरक लघुकथा के लिए बहुत-बहुत बधाई, गणेशभाई.

Comment by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 2:50pm

बहुत सुन्दर विचारों से भरी लघु कथा सर जी 

प्रणाम सहित बधाई स्वीकार कीजिये!!!!!!!!!!!!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 11:30am

बहुत सुन्दर विचारों से भरी लघु कथा सर जी 

प्रणाम सहित बधाई स्वीकार कीजिये 
Comment by Abhinav Arun on February 16, 2013 at 8:08am

वाह कमाल श्री बागी जी ! आज के संक्रमण काल में ऐसी ही सन्देश परक सकारात्मक कृतियों के सृजन की आवश्यकता है । समाज से कटाव और छीजन के इस दौर में ऐसी रचनाएँ उम्मीद जगाती है हार्दिक साधुवाद !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service