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नेता जन नायक बने, उत्तम हो पहचान,      

अभिनेता नेता बने, रखे हास्य का मान ।

************************************** 
खलनायक नेता बने,रखे विरोधी शान,     
नेता अभनेता बने, माइक पर ही ध्यान। 
***************************************
संसद में गर कवि रहे,छंदों में हो बात,       
सरोबार संसद रहेरस की हो बरसात।       
 ****************************************   
मन्त्र मुग्ध हो सब सुने,धीरज धर सब बात,      
पहुँचे न आघात जरा, जनहित की हो बात ।            
******************************************     
मापदंड हो योग्यता, जनता करे चुनाव,            
भ्रष्टाचार तभी मिटे, जन जन में सदभाव ।
*****************************************
नहि चुने धृतराष्ट्र को, धर्मराज का राज,
मंत्रीपद  पर जो रहे, करे विदुर सा काज । 
***************************************** 
अर्थशास्त्र कोटिल्य से, भारत में हो काज,
 काज करेचाणक्य ही, चन्द्र गुप्त  का राज।     
***************************************** 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2013 at 11:01am

रचना की प्रष्ठभूमि पसंद आई और उत्तम दोहे लेगे यह संतोष की बात है, सुधार के बारे में जानकारी करावे तो उचित हो।

दिल से हार्दिक आभार स्वीकारे भाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2013 at 10:52am

दोहे रुचिकर लगे, यह जानकार ख़ुशी हुई भाई श्री संदीप कुमार पटेल जी, हार्दिक आभार स्वीकारे 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2013 at 10:50am

मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार डॉ प्राची जी

Comment by Abhinav Arun on February 26, 2013 at 10:49am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी,

मापदंड हो योग्यता, जनता करे चुनाव,            
भ्रष्टाचार तभी मिटे, जन जन में सदभाव ।
सभी दोहे .बहुत सुन्दर है।  बधाई स्वीकारें !!
   
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2013 at 10:48am

हार्दिक आभार श्री ब्रिजेश कुमार सिंह नीरज जी 

Comment by ram shiromani pathak on February 25, 2013 at 8:59pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी .....बहुत सुन्दर रचना!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 8:42pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी!आपने बहुत ही बढ़िया पृष्टभूमि का चयन किया है।कुछेक स्थानों पर मात्रा व कथ्य पुनरावृत्ति के दोष को छोड़कर सभी दोहे उत्तम बन पड़े हैं।सादर बधाई।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 25, 2013 at 8:08pm

सुन्दर दोहे रचे हैं आदरणीय लक्ष्मण सर जी ..............सादर बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2013 at 6:24pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी,

आप मात्रा गणना एक बार पुनः जांच लें,

कथ्य की कसावट पर ध्यान दें 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 5:59pm

बहुत सुन्दर रचना!

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