मेरे सामने की सीट पर एक युवती और एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे हुए थे तथा मेरी सीट पर भी मेरे इलावा एक सहयात्री बैठा था । ऊपर की सीट पर भी दो लोग सोये थे । युवती अपने बगल के यात्री से बोली, "अंकल आप किनारे होकर बैठें तो मैं जरा लेट लूँ ।" और वो कम्बल शरीर पर डाल कर लेट गयी । ऊपर की सीट से एक यात्री के उतरते ही मैं भी ऊपर की सीट पर जाकर लेट गया। मेरा गंतव्य सुबह सात से पहले नहीं आने वाला था अतः मैं आँख बंद सोने का प्रयास करने लगा । कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ।
Comment
बृजेश जी , मेरा प्रयास आपको अच्छा लगा, इस निमित बहुत बहुत आभार ।
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय नादिर खान जी ।
राम वाण सा है असर, कसर अगर रह जाय |
डबल डोज करते चलें, रोगी दौड़ लगाय |
रोगी दौड़ लगाय, मिला ले अगर कराटे |
होवे काम तमाम, थूक कर रोगी चाटे |
बड़ी मानसिक व्याधि, नपुंसक परेशान सा |
चखे कसैला स्वाद, असर हो राम वाण सा ||
सार्थक लघुकथा आदरणीय गणेश जी...
"चटाक" की तेज आवाज के साथ मेरी नींद खुल गई!
आदरणीय बाग़ी सर सादर
समाज में फैली गंदगियों को आप अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से उजागर कर रहें हैं.सराहनीय है.
बधाई.
आदरणीय बाग़ी जी सादर
समाज में फैली गंदगियों को आप अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से उजागर कर रहें हैं.सराहनीय है.
बधाई.
आदरणीय बागी जी आप की कहानी पढ़ के मुझे भी अपनी एक यात्रा याद आ गई, अगर कलमबद्ध कर पायी तो आप सब के सामने रखूँगी ..... ऐसे लोगों की यही दवा है .. बढ़ियां लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें
कुण्ठा और कुत्सित विचारों से भरे तथाकथित प्रौढ़ जन सिर्फ़ अपने माहौल को ही नहीं, अपनी घृणित कारगुजारियों से समूचे समाज का अकथ्य अहित कर रहे हैं, समाज को दिशा, राह या व्यवहार क्या खाक बतायेंगे. एक तो उम्र की ओट, दूसरे समझदार होने का ओढ़ा हुआ मुखौटा उनके प्रति सभी के मन में प्रथम दृष्ट्या आदर का भाव पैदा होता ही है. लेकिन उनके ढोंग की चादर ज्यादा देर उनके मनावरण पर तनी नहीं रह पाती, या वे ताने भी नहीं रख पाते, समय पाते अपनी औकात में आ जाते हैं.
समाज को आज ऐसे ही प्रबुद्ध युवाओं और युवतियों की घोर आवश्यकता है जो मौका पाते ही घटिया और वितंडना पैदा करने वाले तथाकथित बुजुर्गों को उनकी औकात बताये. कहना नहीं होगा कि आज के प्रबुद्ध युवा-युवतियों की शैक्षिक योग्यता और मानसिक समझ थोथे कुतर्कों और भेंड़चाली मान्यताओं पर नहीं, बल्कि दृढ़ आत्मविश्वास और खुली जानकारी पर आधारित होती है.
ऐसी स्पष्ट, सहज और प्रवहमान लघुकथा पर आपको हृदय से साधुवाद देता हूँ, भाई गणेशजी.
शुभकामनाएँ और बधाइयाँ
adarniy bagi ji this is very common incident but u represent nicely the way u share with us is very intellual badhai
आज के समय में दवा जरुरी है । बढ़िया और संदेशप्रद कहानी |
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