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लघुकथा : ईलाज / गणेश जी बागी

लघुकथा : ईलाज
                  न दिनों मेरी नियुक्ति सुदूर जिले में थी । घर पर छुट्टियाँ बिता कर वापस ड्यूटी पर जा रहा था । आने जाने हेतु एकमात्र साधन ट्रेन ही थी । छोटी लाइन की पैसेंजर ट्रेन से यात्रा करनी पड़ती थी । जाड़े का मौसम था । रात 11 वाली पैसेंजर ट्रेन मिली थी । भीड़ बहुत थी लेकिन बैठने का स्थान मिल गया था । ट्रेन सभी स्टेशनों पर रूकती हुई चल रही थी । चढ़ने वालों की अपेक्षा उतरने वाले स्थानीय यात्रियों की संख्या अधिक थी । रात एक बजते - बजते अधिकतर स्थानीय यात्री उतर चुके थे । जिन यात्रियों को जगह मिल जाती । वो कम्बल ओढ़ कर सो जाते । 


                 मेरे सामने की सीट पर एक युवती और एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे हुए थे तथा मेरी सीट पर भी मेरे इलावा एक सहयात्री बैठा था । ऊपर की सीट पर भी दो लोग सोये थे । युवती अपने बगल के यात्री से बोली, "अंकल आप किनारे होकर बैठें तो मैं जरा लेट लूँ ।"  और वो कम्बल शरीर पर डाल कर लेट गयी । ऊपर की सीट से एक यात्री के उतरते ही मैं भी ऊपर की सीट पर जाकर लेट गया। मेरा गंतव्य सुबह सात से पहले नहीं आने वाला था अतः मैं आँख बंद सोने का प्रयास करने लगा । कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ।

                "चटाक" की तेज आवाज के साथ मेरी नींद खुल गई । हड़बड़ा कर उठा तो देखा युवती के बगल में बैठा यात्री दूसरी तरफ तेजी से भागा जा रहा था.. और युवती तमतमायी हुई खड़ी थी । मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या। 
मैं पूछ बैठा, "बहन जी क्या हुआ ?" 
"कुछ नहीं भाई साहब, आप सोइये, अंकल के पेट में दर्द हो रहा था, मैंने दवा दे दी है ।"
 

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2013 at 11:50am

बृजेश जी , मेरा प्रयास आपको अच्छा लगा, इस निमित बहुत बहुत आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2013 at 11:20am

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय नादिर खान जी ।

Comment by रविकर on March 3, 2013 at 11:14am

राम वाण सा है असर, कसर अगर रह जाय |
डबल डोज करते चलें, रोगी दौड़ लगाय |


रोगी दौड़ लगाय, मिला ले अगर कराटे |
होवे काम तमाम, थूक कर रोगी चाटे |


बड़ी मानसिक व्याधि, नपुंसक परेशान सा |
चखे कसैला स्वाद, असर हो राम वाण सा ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 2, 2013 at 7:20pm

सार्थक लघुकथा आदरणीय गणेश जी...

Comment by ram shiromani pathak on March 2, 2013 at 2:37pm

  "चटाक" की तेज आवाज के साथ मेरी नींद खुल गई!

मैं पूछ बैठा, "बहन जी क्या हुआ ?" 
"कुछ नहीं भाई साहब, आप सोइये, अंकल के पेट में दर्द हो रहा था, मैंने दवा दे दी है ।"

आदरणीय बाग़ी सर  सादर 

समाज में फैली गंदगियों को आप अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से उजागर कर रहें हैं.सराहनीय है. 

बधाई. 

 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 2, 2013 at 12:44pm

आदरणीय बाग़ी जी सादर 

समाज में फैली गंदगियों को आप अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से उजागर कर रहें हैं.सराहनीय है. 

बधाई. 

Comment by Meena Pathak on March 2, 2013 at 12:26pm

आदरणीय बागी जी आप की कहानी पढ़ के मुझे भी अपनी एक यात्रा याद आ गई, अगर कलमबद्ध कर पायी तो आप सब के सामने रखूँगी ..... ऐसे लोगों की यही दवा है .. बढ़ियां लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 11:23am

कुण्ठा और कुत्सित विचारों से भरे तथाकथित प्रौढ़ जन सिर्फ़ अपने माहौल को ही नहीं, अपनी घृणित कारगुजारियों से समूचे समाज का अकथ्य अहित कर रहे हैं, समाज को दिशा, राह या व्यवहार क्या खाक बतायेंगे. एक तो उम्र की ओट, दूसरे समझदार होने का ओढ़ा हुआ मुखौटा उनके प्रति सभी के मन में प्रथम दृष्ट्या आदर का भाव पैदा होता ही है. लेकिन उनके ढोंग की चादर ज्यादा देर उनके मनावरण पर तनी नहीं रह पाती,  या वे ताने भी नहीं रख पाते, समय पाते अपनी औकात में आ जाते हैं.

समाज को आज ऐसे ही प्रबुद्ध युवाओं और युवतियों की घोर आवश्यकता है जो मौका पाते ही घटिया और वितंडना पैदा करने वाले तथाकथित बुजुर्गों को उनकी औकात बताये.  कहना नहीं होगा कि आज के प्रबुद्ध युवा-युवतियों की शैक्षिक योग्यता और मानसिक समझ थोथे कुतर्कों और भेंड़चाली मान्यताओं पर नहीं, बल्कि दृढ़ आत्मविश्वास और खुली जानकारी पर आधारित होती है.

ऐसी स्पष्ट, सहज और प्रवहमान लघुकथा पर आपको हृदय से साधुवाद देता हूँ, भाई गणेशजी.

शुभकामनाएँ और बधाइयाँ

Comment by Dr.Ajay Khare on March 2, 2013 at 11:10am

adarniy bagi ji this is  very common incident but u represent nicely  the way u share with us is very intellual badhai

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 2, 2013 at 10:19am

आज के समय में दवा जरुरी है । बढ़िया और संदेशप्रद कहानी |

कृपया ध्यान दे...

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