घण्टियों की
खनखनाती खिलखिलाहट
से गूँज उठी
हर पूजास्थली..
मन्नत की
लाल चूनर और रंगीन धागों के
ग्रंथिबंधन में आबद्ध हुए सारे स्तम्भ
और बरगद पीपल की हर शाख..
माँ के दर फैलाये झोली,
जोड़े कर, झुकाए सर,
नवदम्पत्ति मांग रहे हैं भिक्षा-
पुत्र रत्न की...
और हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं !!!
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उड़ान भरने को व्याकुल
पर फड़फड़ाते घायल परिंदे सा बेबस
सहमा सिसका
संघर्षरत
अपने वजूद को तलाशता
शोषण दोषण मोषण से आक्रान्त
कुकृत्यों के कुहासों में
नित दफ़न होता
नारी अस्तित्व.....
क्या आज फिर महिला दिवस है ?
Comment
रचना पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया विनीता शुक्ला जी..
रचना के मर्म को छूने के लिए हार्दिक आभार प्रिय संदीप जी
नारी- जीवन की विडम्बना का मार्मिक और प्रभावी चित्रण. बधाई डॉ. प्राची जी.
ऐसे दिवस मनाये क्यूँ जाते हैं ये तो आचरण में लाने की चीज़ है
बहुत अच्छी रचना सुन्दर भाव से भरी
रचना पर आपकी सराहना और अनुमोदन के लिए आभार प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
सादर आभार आ. विजय जी
आदरणीय राजेश झा जी,
महिला दिवस का इतिहास १५० वर्ष से भी ज्यादा पुराना है... पर महिलाओं की स्थिति पूरे विश्व में आज भी बहुत बहुत दयनीय ही है..
कोइ एक भी राष्ट्र ऐसा नहीं जहां महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए जाते हों...
और कितना वक़्त चाहिए इस एक दिवस को विश्व में महिलाओं के लिए व्यापक बदलाव लाने हेतु.
बस एक दिन की जागृति, आन्दोलन, रैली, चर्चा से क्या नज़रिया बदल जाएगा..... यदि बदल सकता तो मेरे द्वारा लिखी गयी क्षणिकाएं सत्य न होतीं.
मैंने नकारात्मकता को नहीं, अपितु यथार्थ को शब्द रूप में प्रस्तुत करने की चेष्टा की है.
फिर भी आपकी बधाई इस रचना पर प्राप्त हुई, जिस हेतु आपकी हृदय से आभारी हूँ.
उड़ान भरने को व्याकुल
पर फड़फड़ाते घायल परिंदे सा बेबस
सहमा सिसका
संघर्षरत
अपने वजूद को तलाशता
शोषण दोषण मोषण से आक्रान्त
कुकृत्यों के कुहासों में
नित दफ़न होता
नारी अस्तित्व.............कैसा महिला दिवस ?
समाज की मानसिकता को सही पहचाना आपने आदरणीया प्राची मैम..............भाव पूर्ण रचना...हार्दिक बधाई!
Thanks Dr. Ajay Khare for you wishes on this expression of thoughts.
आदरणीया अरुणा कपूर जी,
क्या एक दिन महिला दिवस घोषित कर दिये जाने से कुछ होगा.. बाकी ३६४ दिन का क्या?
महिलाओं को नहीं चाहिए सिर्फ ये एक दिन...जबकि हर वक़्त उनको भी उतने ही सम्मान का आधिकार है जितना किसी भी नागरिक का होना चाहिए.
रचना के भाव आपको पसंद आये इसके लिए आपकी आभारी हूँ .सादर.
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