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ग़ज़ल "उड़ा न देना कहीं आँख से ये तू पानी"

====== ग़ज़ल========

वो दौर और था जिसमे था आबरू पानी
नहीं उबाल रहा अब के है लहू पानी

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर
दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी

नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर
उड़ा न देना कहीं आँख से ये तू पानी

क्या बंजरों में कहीं ढूँढना है हरियाली
यहाँ तो जूस्तजू है आब आरजू पानी

क्या "दीप" जा रहे हो फिर नदी किनारे तुम
सँभल के बैठना करता है गुफ्तगू पानी


संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 7:43am

विलम्ब से आपकी ग़ज़ल पर आ रहा हूँ. सो अधिक कुछ क्या कहना.  फिर भी यह अवश्य कहूँगा कि पानी में कंकर फेंकने वाला बिम्ब बहुत ही सुखकर लगा है.

यह अवश्य है कि हरियाली स्त्रीलिंग की तरह प्रयुक्त होती है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 15, 2013 at 8:18am

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर 
दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी....

संदीप ये शेर दिल की गहराइयों तक पहुंचा....एक शेर पूरी ग़ज़ल पर भरी पद रहा है....मकता भी लाजवाब है....दाद कुबूल हो...

Comment by Dr.Ajay Khare on March 14, 2013 at 3:18pm

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर 
दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी pani mai aks dikh raha to raam teri ganga maili kese ho gai badhai sunder gajal ke liye

 

Comment by Yogi Saraswat on March 14, 2013 at 12:08pm

नया है दौर हुई रस्में यहाँ भाप मगर
उड़ा न देना कहीं आँख से ये तू पानी

क्या बंजरों में कहीं ढूँढना है हरियाली
यहाँ तो जूस्तजू है आब आरजू पानी

बहुत खूब संदीप जी

Comment by वीनस केसरी on March 14, 2013 at 12:08am

बहुत खूब भाई
यह दो अशआर खास तौर पर अच्छे लगे
ढेरों दाद ....

नदी में फेंक दिए हमने आज कुछ कंकर

दिखा रहा था मेरा अक्स हू-ब-हू पानी


क्या "दीप" जा रहे हो फिर नदी किनारे तुम

सँभल के बैठना करता है गुफ्तगू पानी

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:48pm

वाह क्या बात है! बहुत खूब!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 9:34pm

आदरणीय श्री संदीप कुमार पटेल जी, "यहाँ तो जूस्तजू है आब आरजू पानी" आपके गजल ने मुझे मंत्र मुग्ध कर दिया! बहुत बहुत बधाई!

 

Comment by ram shiromani pathak on March 13, 2013 at 9:26pm

क्या "दीप" जा रहे हो फिर नदी किनारे तुम 
सँभल के बैठना करता है गुफ्तगू पानी!!!!!!!!बहोत खूब आदरणीय !हार्दिक  बधाई 

 

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