झूठ की गलियों में सच तक का सफ़र मेरा भी है
है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है
बेबफा तुझसे बिछड़कर हाले दिल अब क्या कहें
जो उधर है हाल तेरा वो इधर मेरा भी है
मुंतज़िर होना नहीं खलता है हमको अब सनम
वक़्त का पाबंद तुझ सा मुंतजर मेरा भी है
दूध पीने की खबर पर यूँ पुजारी कह पड़े
संग में रब है मगर कुछ तो हुनर मेरा भी है
टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा
शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी है
ज़ुल्म से झुकना नहीं अच्छा मगर सच है यही
इन झुके सारे सरों में एक सर मेरा भी है
मौत से डरता नही हूँ क्यूंकी मुझको है पता
उस परिस्ताँ मे कहीं तो एक घर मेरा भी है
मैं हूँ साया पर कहीं मिट जाऊं न तूफान में
"दीप" जो है दिल मे तेरे वो ही डर मेरा भी है
संदीप पटेल "दीप"
मौलिक, अप्रकाशित
Comment
अच्छी गज़ल के लिए बधाई, संदीप जी
विजय निकोर
टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा
शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी है
ज़ुल्म से झुकना नहीं अच्छा मगर सच है यही
इन झुके सारे सरों में एक सर मेरा भी है..
इन शेरों पर विशेष बधाई.. वैसे कोशिश अच्छी हुई है. लेकिन कई अश’आर और निखर सकते थे.
संदीप जी, एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुति !
झूठ की गलियों में सच तक का सफ़र मेरा भी है
है ज़रा मुश्किल मगर रब राहबर मेरा भी है
बधाई स्वीकारें।
मुंतज़िर होना नहीं खलता है हमको अब सनम
वक़्त का पाबंद तुझ सा मुंतजर मेरा भी है
दूध पीने की खबर पर यूँ पुजारी कह पड़े
संग में रब है मगर कुछ तो हुनर मेरा भी है
टूट कर बिखरा हुआ इक आइना इतरा रहा
शहरे बुत में हो रही हलचल असर मेरा भी है
बढ़िया ग़ज़ल है संदीप जी ! एक एक अश'आर अपने आपमें पूर्ण ! बहुत बेहतरीन
" ज़ुल्म से झुकना नहीं अच्छा मगर सच है यही
इन झुके सारे सरों में एक सर मेरा भी है | " ............. बहुत प्यारी सी बात और बहुत ही प्यारे लहजे में . रब की रहबरी का क्या कहना . बधाई .
ज़ुल्म से झुकना नहीं अच्छा मगर सच है यही
इन झुके सारे सरों में एक सर मेरा भी है sandeep ji aapki in lines mai bahut bada sach chupa hai sir aap mahan hai
ham aapki santaan hai badhai
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