For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाम सी जिंदगी गुजरती है

रात कितनी करीब लगती है

 

याद नित पैरहन बदलती है

ये शमा बूंद बन पिघलती है

 

आंत महसूस अब नहीं करती

भूख पर आंख से झलकती है

 

हम जहां पर खड़े अभी तक थे

वो जमीं देखिए दरकती है

 

होम करने करीब आए तो

इस लपट से ये देह जलती है

                - बृजेश नीरज

 

 

 

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 31, 2013 at 10:12am

आदरणीय संदीप भाई आपका बहुत आभार!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 31, 2013 at 10:04am

वाह वाह क्या अंदाज है बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है

दाद क़ुबूल फरमाइए जनाब

जय हो

Comment by बृजेश नीरज on March 31, 2013 at 10:01am

आदरणीया राजेश जी आपका आभार! आपको रचना पसन्द आयी मैं परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:33am

बहुत-बहुत सुंदर लिखा है आपने रदीफ काफिया वजन सब संपूर्ण है दिली दाद कबूले

 

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 5:31pm

भाई राम शिरोमणि जी आपका आभार!

Comment by ram shiromani pathak on March 30, 2013 at 5:10pm

वाह बृजेश भाई बेहद सुन्दर ग़ज़ल कही है ढेरों दाद कुबूल करें..

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 8:22am

आदरणीय सलीम जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 8:21am

आदरणीय सौरभ जी आपका आभार! आपको रचना पसन्द आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
सादर!

Comment by SALIM RAZA REWA on March 30, 2013 at 7:45am

ACHCHI GAZAL HAI NIRAJ BHAI ...UMDA KHYAL


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 11:56pm

होम करने करीब आए तो
इस लपट से ये देह जलती है...   वाह ! 

ग़ज़ल को बावज़्न अच्छा निभाया आपने. दाद कुबूल करें..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
7 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
9 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service