For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाम सी जिंदगी गुजरती है

रात कितनी करीब लगती है

 

याद नित पैरहन बदलती है

ये शमा बूंद बन पिघलती है

 

आंत महसूस अब नहीं करती

भूख पर आंख से झलकती है

 

हम जहां पर खड़े अभी तक थे

वो जमीं देखिए दरकती है

 

होम करने करीब आए तो

इस लपट से ये देह जलती है

                - बृजेश नीरज

 

 

 

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 31, 2013 at 10:12am

आदरणीय संदीप भाई आपका बहुत आभार!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 31, 2013 at 10:04am

वाह वाह क्या अंदाज है बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है

दाद क़ुबूल फरमाइए जनाब

जय हो

Comment by बृजेश नीरज on March 31, 2013 at 10:01am

आदरणीया राजेश जी आपका आभार! आपको रचना पसन्द आयी मैं परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:33am

बहुत-बहुत सुंदर लिखा है आपने रदीफ काफिया वजन सब संपूर्ण है दिली दाद कबूले

 

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 5:31pm

भाई राम शिरोमणि जी आपका आभार!

Comment by ram shiromani pathak on March 30, 2013 at 5:10pm

वाह बृजेश भाई बेहद सुन्दर ग़ज़ल कही है ढेरों दाद कुबूल करें..

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 8:22am

आदरणीय सलीम जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 30, 2013 at 8:21am

आदरणीय सौरभ जी आपका आभार! आपको रचना पसन्द आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
सादर!

Comment by SALIM RAZA REWA on March 30, 2013 at 7:45am

ACHCHI GAZAL HAI NIRAJ BHAI ...UMDA KHYAL


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 11:56pm

होम करने करीब आए तो
इस लपट से ये देह जलती है...   वाह ! 

ग़ज़ल को बावज़्न अच्छा निभाया आपने. दाद कुबूल करें..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service