For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लब पे ये मुस्कान जैसे चंद्रमा हो,
तारक खचित अम्बर में तुम अनुपमा हो –
विश्व के सुकुमार पलकों पर सुभगे,
स्वप्नवत तुम मधुर कोई कल्पना हो.
*****
जागो जगाओ विश्व को दो निज आलोक,
कलुष भेद तम दूर हटें जागे त्रिलोक,
बाहु में शक्ति, हृदय में भक्ति लिए सुकुमारी,
निर्भीक बढ़ो जीवन पथ पर बेरोक-टोक.
****
माटी का कण तृण गंध तुम्हारे साथ है,
उन्मुक्त समीरण मंद तुम्हारे साथ है,
जीवन उपवन में खिली हुई ऐ नवल कलि,
रोम-रोम में रग-रग में भगवान तुम्हारे साथ है.

 

(ओ.बी.ओ. को जन्मदिन की हार्दिक बधाई)

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 1:38pm

मधुरम मधुरम

Comment by vijay nikore on April 3, 2013 at 9:20am

आदरणीय शरदिंदु जी:

 

//माटी का कण तृण गंध तुम्हारे साथ है,
उन्मुक्त समीरण मंद तुम्हारे साथ है,
जीवन उपवन में खिली हुई ऐ नवल कलि,
रोम-रोम में रग-रग में भगवान तुम्हारे साथ है.//

 

बहुत ही सुन्दर भाव हैं।

बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 7:02am

इतना ही कहूँगा नहुत ही सुन्दर -

माटी का कण तृण गंध तुम्हारे साथ है,
उन्मुक्त समीरण मंद तुम्हारे साथ है,
जीवन उपवन में खिली हुई ऐ नवल कलि,
रोम-रोम में रग-रग में भगवान तुम्हारे साथ है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 3, 2013 at 4:08am

आदरणीय बृजेश जी एवं केवल प्रसाद जी, आप दोनो ने मुझे प्रोत्साहित किया. हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 3, 2013 at 4:05am

प्रिय पाठकजी, सबसे पहले बधाई स्वीकार करें मार्च महीने के सबसे सक्रिय सदस्य निर्वाचित होने के लिये. मेरी पंक्तियाँ आपको पसंद आयी इसके लिये धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 3, 2013 at 3:57am

आदरणीय सौरभजी, मेरे इस छोटे से प्रयास को इतनी गम्भीरता से लेने के लिये मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. सच कहूँ तो कविता के व्याकरण के बारे में मेरा ज्ञान शून्य है. बस अपनी मस्ती में कभी - कभी लिखता रहता हूँ हिंदी और बांग्ला में. उसमें कहीं कोई छंद दिख जाये, कोई लय दिखाई दे तो वह विद्वतजनो की महान दृष्टि का परिचायक है, मेरी किसी प्रतिभा का इंगित नहीं. इस मंच से जुड़ने के बाद मुझे जो आत्मिक संतोश मिल रहा है उसका बखान कर मैं मंच की गरिमा को विज्ञापन का जामा नहीं पहनाना चाहता. बस आप लोगों का साथ साहित्य की सुरभि से सिंचित होकर मुझे ऐसे ही अनुप्राणित करता रहे, अपना अहो'भाग्य समझूंगा.  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 7:10pm

आदरणीय, शरदिन्दु मुखर्जी जी, अतिसुन्दर रचना ‘जीवन उपवन में खिली हुई ऐ नवल कलि‘ बस इसी की आश रहती है... बहुत बहुत बधाई।

Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 8:17pm

बहुत सुन्दर!

Comment by ram shiromani pathak on April 1, 2013 at 4:38pm

आदरणीय शरदिन्दुजी बहोत ही सुन्दर ...हार्दिक बधाई

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2013 at 2:00pm

ओ बी ओ को इसके वर्षगाँठ पर मेरी भी हार्दिक शुभकामनाएँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
25 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
26 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service