हास्य घनाक्षरी
आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली
धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए
आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा
दुबले गरीब हम रहम तो खाइए
माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना
टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए
संदीप पटेल “दीप”
Comment
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपने इस प्रयास को सराह के मनोबल बढ़ा दिया है गुरदेव
ये स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
सादर आभार आपका
प्रियतमा की इतनी मनोहारी दशा प्रस्तुत हुई है कि आपके सुख और धीरज से ईर्ष्या हो रही है, हा हा हा
बधाई हो भाई बधाई.. .
आदरणीया कुंती जी, आदरणीया सीमा दी, आदरणीय अशोक सर जी, आदरणीय अजय सर जी आप सभी का बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
sandeep ji sateek ghanchhari ban padi hai badhai
आदरणीय भाई संदीप जी सुन्दर हास्य घनाक्षरी प्रस्तुत की है. मगर यह व्यंग की तलवार खिंची कहाँ है......भाई जी. हा हा हा........ बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
ओह क्या बात है संदीप ..सारा दुःख बयान हो गया इस घनाक्षरी में ..फिर भी हास्य कह रहे हैं इसे ..महान हैं आप .......
संदीप जी ज़रा सम्भलके कहीं कद्दू भारी न पड़ जाए.बहुत सुंन्दर .
मत पूछिये हम खाते क्या हैं
डाइट कर के हुआ हाल है.
घर छोटा है तो क्या हुआ
अभी हमारा सोलवाँ साल है.
हहाहाहा बहुत ही सुन्दर खूबसूरत लाजवाब मित्रवर बात बन गई भाई पूरी पूरी बन गई , हास्य का रंग जमा है चकाचक खुद को लें हंसाय. बेहद सुन्दर प्रयास हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम
मेरी रचना ने आपको हंसाया लेखन सफल हुआ
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीय गणेश बागी सरजी सादर आभार आपका ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए अनुज पर
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