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हार न मानें लड़ें

जीवन में सभी के साथ कोई न कोई कठिनाई होती है। कठिनाईयां तो जीवन का एक हिस्सा हैं। उनसे हार नहीं मानना चाहिए। कठिनाईयों से लड़कर ही उनसे पार पाया जा सकता है न कि उनके सामने घुटने टेक कर। धैर्य, हिम्मत एवं थोड़ी सी सूझ बूझ से मुश्किलों का हराया जा सकता है। किन्तु अक्सर हम समस्याओं से इतने भयभीत हो जाते हैं कि अपना धैर्य खो बैठते हैं। समस्याओं के प्रति हमारा नकारात्मक रवैया हमें अधिक तकलीफ पहुंचाता है।

इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने भीतर सकारात्मक सोंच का विकास करें। सकारात्मक सोंच हमें बड़ी से बड़ी समस्या से लड़ने की प्रेरणा देती है। आवश्यकता है की हम समस्याओं से हार न मानकर उनसे लड़ने का इरादा बनाएं।

जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण हमारे जीवन में एक अहम् भूमिका निभाता है। सकारात्मक सोंच रखने वाला व्यक्ति सदैव स्तिथि के उजले पक्ष को देखता है। वह सदैव इस बात पर यकीन करता है कि समस्या के समाधान का कोई न कोई मार्ग ढूंढा जा सकता है। जबकि नकारात्मक सोंच वाला व्यक्ति समस्यायों से डर कर उनसे पीछा छुड़ाने का प्रयास करता है। हमारे पास दो विकल्प हैं या तो अपने दुखों का रोना रोयें या फिर समस्या का सामना करें। दूसरा विकल्प हमें आगे ले जाता है।

हमारे भीतर वह शक्ति है की हम अपनी कमज़ोरी को अपनी ताक़त बना सकें।

अगाथा क्रिस्टी, अल्बर्ट आइन्स्टीन, बीटओवन इन सब में एक वास्तु समान है। यह सभी समस्या से ग्रसित थे किन्तु इन्होंने समस्या से हार मानने की बजाय उसका सामना किया और अपनी कमजोरी कर काबू पाकर उसे अपनी ताक़त बना लिया। बधिर होने के बावजूद बीतओवन ने कर्णप्रिय धुनों की रचना की, अगथा क्रिस्टी जो की डिसलेक्सिया से पीड़ित थी, को लिखने पढ़ने में मुश्किल थी किन्तु अपनी सकारात्मक सोंच के कारण वह बजाय हार मानने के उसने अपनी समस्या को हरा कर एक प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन को स्मरणशक्ति से सम्बंधित समस्या थी किन्तु वे नोबेल पुरष्कार के विजेता बने।

इन सब के जीवन से हमें एक ही प्रेरणा मिलती है कि हम प्रयत्न करें तो अपनी कमजोरियों से ऊपर उठ सकते हैं।

जब एक द्वार बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है किन्तु हम बंद दरवाज़े को ही ताकते रहते है और दूसरे दरवाज़े को नहीं देखते हैं। जब परिस्तिथियाँ अनुकूल हों तब जीवन आसान होता है किन्तु प्रतिकूल परिस्तिथियों में ही हमारे धैर्य, विवेक एवं साहस की असल परीक्षा होती है।

कठिनाईयों से हार मान लेना आसान है किन्तु उनका सामना करने वाला ही विजय प्राप्त करता है।

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 21, 2016 at 8:34pm
सकारात्मक सोच के महत्व व करिश्मे पर प्रकाश डालते बेहतरीन प्रेरक आलेख के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 12:57am

सकारात्मक सोच का संप्रेषण आवश्यक है. एक सार्थक प्रयास हुआ है.

सादर

Comment by vijay nikore on April 9, 2013 at 10:58pm

आशीष जी, लेख अच्छा लगा।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 9, 2013 at 8:58pm

आशीष जी आपके सकारात्मकता पर प्रवचनात्मक आलेख के लिए शुभकामनाएँ 

आप अपने पाठकों के साथ टिप्पणियों में संवाद भी करें व उनकी रचनाओं पर अपनी भी राय दें...  सादर.

Comment by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 7:51pm

 आदरणीय आशीश जी आपकी प्रेरणा भरा लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा!हार्दिक बधाई।  सादर

Comment by coontee mukerji on April 9, 2013 at 10:51am

आशीश जी आपकी प्रेरणा भरा लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा . ग्यान की वृद्धि होती है .प्रेरणा का स्रोत मिलता है . आपको बहुत बहुत

धन्यवाद.

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 9, 2013 at 10:24am

धन्यवाद

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 8:54am

आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी  जी, सादर प्रणाम!  ’हार न मानें लड़ें’ बहुत सुन्दर बात लड़ना कोई बुरी बात नहीं है, बल्कि नकारात्मक सोच में पड़ कर स्वयं को बरबाद कर लेना घोर जघन्य अपराध होता है।  सामाजिक उत्थान के लिए आप यूं ही लिखते रहिये।  आपको हार्दिक बधाई।  सादर,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 12:20am

हम अपने भीतर सकारात्मक सोंच का विकास करें। सकारात्मक सोंच हमें बड़ी से बड़ी समस्या से लड़ने की प्रेरणा देती है। आवश्यकता है की हम समस्याओं से हार न मानकर उनसे लड़ने का इरादा बनाएं।

प्रिय त्रिवेदी जी जिन्दगी के अनूठे रंग से परिचित कराता ये उपयोगी लेख ..अच्छा लगा ..अच्छी सीख ...

सुन्दर 
भ्रमर ५ 

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