For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

 

अर्गला स्तोत्र को हिंदी में छंदबद्ध करने का प्रयास किया है

 

अथ अर्गला स्तोत्र

 

 

शिवा जयंती माता काली, भद्रकाली है नाम
क्षमा स्वधा कपालिनी स्वाहा, बारम्बार प्रणाम
दुर्गा धात्री माँ जगदम्बे,  जपता आठों याम
मात मंगला हे चामुंडे, हरो क्रोध अरु काम

सबकी पीड़ा हरने वाली, तुमको नमन हजार 
व्याप्त चराचर में तुम माता, तेरी जय जयकार
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम


ब्रम्हा को वर दे करती माँ, मधु कैटभ संहार
कालरात्रि हे माता रानी, जय हो बारम्बार
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम

महिषासुर खल नाशी मैया, तुम हो सुख की खान
रक्तबीज अरु चंड मुंड वध, करती आप महान 
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम


शुम्भ निशुम्भ दुष्ट अभिमानी, हरती उनका मान
मार धूम्र लोचन को मैया, देती तुम वरदान
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम

युगल चरण वन्दित हे माता, देती भाग्य सँवार
रूप अनूप चरित्र अचिन्त्य है , जय हो बारम्बार
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम

 

पाप हारिणी मात चण्डिके, हरती सबके रोग
श्रद्धा से मैया अब तेरी, शरण पड़े हैं लोग
जय दो यश दो रूप उन्हें दो , हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम 
 दो सौभाग्य परम सुख माता, शत्रु का कर नाश
मेरा अब कल्याण करो माँ, केवल तुमसे आश
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम


देव असुर कर चरण वंदना, पाते नित वरदान
अपने भक्तों को माँ करती, तुम ही लक्ष्मीवान
ध्याये तुमको जो भी माता, होता है विद्वान्
यश बढ़ता उसका ही मैया, जग में हो सम्मान

दैत्य दर्प हरने वाली माँ, करें त्रिदेव ध्यान
इंद्र पूजिता मैया हरती, दानव का अभिमान
जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम

 

सुन्दर पत्नी दो मैया जी, मन इच्छा अनुसार
उत्तम कुल वाली जो देवे, भव सागर से तार
इसके बाद पढ़े जो मैया, सप्तशती का पाठ
उत्तम फल मिलता है उसको, धन संपत्ति साथ

जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम

जय दो यश दो रूप मुझे दो, हरो क्रोध अरू काम
नाश करो शत्रु का तुमको, बारम्बार प्रणाम
 
इति देव्याः अर्गला स्तोत्रम संपूर्णम 


 

Views: 1212

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 9:18pm

भाई संदीपजी, आपका प्रयास आह्लादकारी है.शभ-शुभ-शुभ

आदरणीय सुरेंद्र वर्माजी के कहे पर मैं भी ध्यान दे रहा हूँ.

पत्नी से संबन्धित बात आप सही हैं,  भाई.. .

सुखद अनभूति से विह्वल हूँ. . ..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 4:05pm

आदरणीय सुरेंद्र जी सादर प्रणाम
आपके कहे को संज्ञान करते हुए सुधार करने का प्रयास आवशय करूँगा
भूल वश जो त्रुटि हुई है उसमे सुधार अपेक्षित सा जान पड़ता है
अवगत कराने और रचना कर्म को मान देने हेतु आपका सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 13, 2013 at 3:24pm

प्रिय संदीपजी,

अथक स्तुत्य प्रयास को विस्तार देने का इंगित किया था, कृपया अपने ज्ञान पर कोई आरोपण ना लें. गीताप्रेस गोरखपुर के अनुवाद में भी एक बार 'मुझे' शब्द का उल्लेख कर लिया गया पर बाद में नहीं किया गया, मूल में 'मुझे' के लिए शब्द नहीं है. शत्रु काम क्रोधादि भी होते हैं. असुरों को वरदान कई देवों ने दिए हैं, मुझे ध्यान नहीं पड़ता कभी देवी ने किसी असुर को वरदान दिया हो. सन्दर्भ मिला तो कभी चर्चा करेंगे, परन्तु आपकी सुन्दर रचना के लिए एक बार पुनः साधुवाद!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 11:07pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर

सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार  

मैंने दुर्गा सप्तशती में इस स्तोत्र में जो पढ़ा है वही लिखा है 

तुम मुझे रूप दो .........................और समस्त शत्रुओं का नाश करो 

अब यह पंक्ति लें \\समस्त शत्रुओं का नाश करो \\ यह पंक्ति ही अपने आप में स्वयं के लिए ही कही जा सकती है 

क्यूंकि आपका ही कोई शत्रु हो सकता है 

अब अपने शत्रु के लिए तो आप भी शत्रु ही हुए न 

फिर भी आपकी बात नकार नहीं सकता हूँ क्यूंकि मैं कोई संस्कृत का विद्वान् नहीं हूँ

वहाँ हिंदी अनुवाद करते समय गलत अनुवाद किया होगा आपके अनुसार 

 पत्नी मनोनुकूल चलने वाली अर्थात गृहस्थ विग्रह्मुक्त हो

बिलकुल सही कहा आपने किन्तु 

\\पत्निमनोरामाम देहि \\

वहीँ "मनोहर" मनोरम पत्नी देने की बात कही है तो मनोहर का क्या अर्थ निकालता मैं नादान भला 

\\'देव असुर कर चरण वंदना, पाते नित वरदान'\\

दुर्गा सप्तशती में ही कई स्थानों में लिखा हुआ देवी माँ सभी के लिए दयाद्र है 

माँ तो माँ होती है 

उसकी शरण में जो गया वो वरदान का अधिकारी हो गया 

मूल स्तोत्र से तुलना संभव नहीं है आदरणीय 

मैंने तो केवल हिंदी में छंद बद्ध करने का प्रयास भर किया है

सुना  है छंदों में बड़ी शक्ति होती है

सादर आभार आपका  

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 12, 2013 at 10:42pm

सुन्दर व्यंजना. मूल स्तोत्र में प्रार्थना 'जय दो यश दो रूप दो' मात्र स्वयं के लिए नहीं ('मुझे दो' नहीं) प्रत्युत सबके लिए  की गयी है. पत्नी मनोनुकूल चलने वाली अर्थात गृहस्थ विग्रह्मुक्त हो, ऐसा भाव है.. 'देव असुर कर चरण वंदना, पाते नित वरदान' विलोमार्थी होने से ग्राह्य नहीं है. कृपाकांक्षी सुर असुर दोनों हे हैं, पर असुरों पर कृपयाविष्ट माँ की करुणावृष्टि नित्य  वरदान रुप नहीं.होती. मूल स्तोत्र का भाव प्रवाह अतुलनीय है.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 8:50pm

आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम 

आपकी बात तो सही है किन्तु मैं क्या करूँ मैं तो ऐसा मांग चुका हूँ और मुझे मिल भी चुका है 

\\उत्तम कुल वाली जो देवे, भव सागर से तार\\

कृपया इस पंक्ति पर भी विचार करें 

आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह और आमोद प्रमोद यूँ ही बनाये रखिये 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 8:49pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना पा कर रचना कर्म को बल मिला है 

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 12, 2013 at 6:30pm

सुन्दर पत्नी दो मैया जी, मन इच्छा अनुसार 
उत्तम कुल वाली जो देवे, भव सागर से तार

आदरणीय संदीप जी 

सादर 

सुन्दर पत्नी की जगह मांगे गुणवंती पत्नी 

हो जाए बेडा पार 

सुन्दर पत्नी मिली भैया उसके खर्चे हजार 

नव वर्ष मंगलमय हो 

हो मैया की जय जय कार 

बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 11, 2013 at 6:12pm

प्रिय संदीप जी वासंतिक नवरात्र और नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनाएँ 

अर्गला स्तोत्र को हिन्दी में छंद बद्ध करने के लिए बहुत बहुत बधाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 4:00pm

आदरणीय राम भाई सादर आभार सहित आपको भी नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
1 hour ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
13 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service