For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ग़ज़ल" तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है

तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला
अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है

दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला

दीप

मौलिक एक अप्रकाशित

Views: 647

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 12, 2013 at 7:46pm

बेहद खूबसूरत गज़ल कही है प्रिय संदीप जी 

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर 
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला...वाह !

हर शेर लाजवाब 

हार्दिक दाद पेश है ...क़ुबूल करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 12, 2013 at 6:14pm

आदरणीय प्रिय मित्रवर वाह वाह मज़ा आ गया आनंद आ गया लाजवाब अशआरों से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल हेतु दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:13pm

आदरणीय आशीष भाई सादर
बहुत बहुत शुक्रिया इस जर्रा नवाज़ी के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:12pm

आदरणीय राम भाई सादर
बहुत बहुत आभार आपका इस हौसलाफजाई के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:11pm

आदरणीय वेदिका जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल को पसंद करने हेतु आभार आपका
मुझे ऐसा लग नहीं रहा है आदरणीया संभवतः मैं किसी एक की बात नहीं कर रहा हूँ
इसीलिए रोता है या तू नही लिखा है
सादर स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:09pm

आदरणीय विनय भाई साहब सादर प्रणाम
ग़ज़ल की पसंदगी और हौसलाफजाई के लिए आपका आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 11, 2013 at 10:54pm

वाह !!! भाई सन्दीप जी, हर शेर लाजवाब है और बेहतरीन गजल --

इन अशआर पर ढेरों दाद कुबूल कीजिये --

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 8:38pm

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

वाह वाह बड़े भाई बहोत खूब ....... हार्दिक बधाई 

Comment by वेदिका on April 11, 2013 at 7:45pm
सुंदर प्रयास 'दीप' जी!
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला// शायद इस पंक्ति के प्रति न्याय नही हो पाया।
रोते हो की जगह रोता है और तुम के स्थान पर तू होता तो कैसा रहता ....शुभकामनाये आदरणीय
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 11, 2013 at 6:45pm
भाई संदीप जी! अच्छी गजल कही है आपने बधाई।खास करके इन पंक्तियों के लिये-
क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service