For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ग़ज़ल" तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है

तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला
अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है

दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला

दीप

मौलिक एक अप्रकाशित

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 12, 2013 at 7:46pm

बेहद खूबसूरत गज़ल कही है प्रिय संदीप जी 

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर 
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला...वाह !

हर शेर लाजवाब 

हार्दिक दाद पेश है ...क़ुबूल करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 12, 2013 at 6:14pm

आदरणीय प्रिय मित्रवर वाह वाह मज़ा आ गया आनंद आ गया लाजवाब अशआरों से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल हेतु दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:13pm

आदरणीय आशीष भाई सादर
बहुत बहुत शुक्रिया इस जर्रा नवाज़ी के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:12pm

आदरणीय राम भाई सादर
बहुत बहुत आभार आपका इस हौसलाफजाई के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:11pm

आदरणीय वेदिका जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल को पसंद करने हेतु आभार आपका
मुझे ऐसा लग नहीं रहा है आदरणीया संभवतः मैं किसी एक की बात नहीं कर रहा हूँ
इसीलिए रोता है या तू नही लिखा है
सादर स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:09pm

आदरणीय विनय भाई साहब सादर प्रणाम
ग़ज़ल की पसंदगी और हौसलाफजाई के लिए आपका आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 11, 2013 at 10:54pm

वाह !!! भाई सन्दीप जी, हर शेर लाजवाब है और बेहतरीन गजल --

इन अशआर पर ढेरों दाद कुबूल कीजिये --

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 8:38pm

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

वाह वाह बड़े भाई बहोत खूब ....... हार्दिक बधाई 

Comment by वेदिका on April 11, 2013 at 7:45pm
सुंदर प्रयास 'दीप' जी!
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला// शायद इस पंक्ति के प्रति न्याय नही हो पाया।
रोते हो की जगह रोता है और तुम के स्थान पर तू होता तो कैसा रहता ....शुभकामनाये आदरणीय
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 11, 2013 at 6:45pm
भाई संदीप जी! अच्छी गजल कही है आपने बधाई।खास करके इन पंक्तियों के लिये-
क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service