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आदरणीय केवल जी सादर
आपकी इस सराहना हेतु सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति-
गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है- वाह वाह क्या बात है , बधाई श्री संदीप कुमार पटेल दीप जी
तुम न कहो कुछ पर इतना मै कह सकता हूँ,
दीप तुमको अपने तले अँधेरा रख, उजियाते देखा है
घिस घिस खुदको कुंदन सा कर डाला है जिसने
उसकी चप्पल को हमने घिस जाते देखा है
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...बधाई आपको
कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो
अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है
वास्तविकता हि तो है
सादर बधाई ,
आदरणीय संदीप जी
सस्नेह
आ0 संदीप कुमार पटेल जी, ’गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है।’ सुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,
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