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हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है
हमको लेकिन सबने बस मुस्काते देखा है

झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग
पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है

पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब
फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है

कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो
अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है

मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था
उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है

गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है

घिस घिस खुदको कुंदन सा कर डाला है जिसने
उसकी चप्पल को हमने घिस जाते देखा है

कितने प्यासे आते हैं उसके साहिल पे पर
सागर को क्या उनकी प्यास बुझाते देखा है

इतराए थे तुम चढ़ के जो पहली सीढ़ी यूँ
उसके बाद ही तुमको लौट के आते देखा है

बाप बने हो जबसे चिंता में डूबे हो क्यूँ
तुमने किसकी अस्मत को लुट जाते देखा है ???

तुमने पन्नी फेंकी उसने बीन लिया उसको
बचपन से जिसको बस सपने खाते देखा है

उनको भरमाओ लेकिन बस इतना बतला दो
हमको कब सूरज को दीप दिखाते देखा है

संदीप पटेल “दीप”

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 9:28pm

आदरणीय केवल जी सादर 

आपकी इस सराहना हेतु सादर आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 14, 2013 at 6:59pm

बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति-

गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है-  वाह वाह क्या बात है , बधाई श्री संदीप कुमार पटेल दीप जी

तुम न कहो कुछ पर इतना मै कह सकता हूँ,

दीप तुमको अपने तले अँधेरा रख, उजियाते देखा है 

Comment by कल्पना रामानी on April 14, 2013 at 5:34pm

घिस घिस खुदको कुंदन सा कर डाला है जिसने
उसकी चप्पल को हमने घिस जाते देखा है

बहुत सुंदर पंक्तियाँ...बधाई आपको

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:15pm

कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो
अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है

वास्तविकता हि तो है 

सादर बधाई ,

आदरणीय संदीप जी 

सस्नेह 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:44pm

आ0 संदीप कुमार पटेल जी, ’गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में
उसको ही अब अपना देश चलाते देखा है।’ सुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

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