गरमी आ गई भाईया
सूरज आंखे तरेर रहा ले, हाथो मे अग्नि बाण ।
बिना कवच जो निकले बाहर, ये हर लेगा उसके प्राण ।
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
गन्ना लस्सी और शिकंजी, नीबू पानी के लग गये ठेले ।
भुल गये सब चाय की चुस्की, पीके ठंडा हर कोई बोले ॥
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
कैसे गुजरे रात बिन, पंखा कूलर लगाये ।
खुले गगन के नीचे तो, मच्छर गीत सुनाये ।।
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
गमछा टोपी बांध के, घर से कदम बढाये।
लगे नजर जो सुरज की ,वो खाटिया से चिल्लाये ॥
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
पना मठ्ठा छाछ से, गरमी पास न आये ।
देख प्याज को पास मे, लू भी बौरा जाये ॥
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
भरे कटोरा नीर से, देख पशु पक्षी हर्षाये ।
दे आशीष आप को , और यही गीत दोहराये ॥
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
कहे बसंत आप से, कहना मेरा मान ।
पीये पानी खूब रखे, खानपान का ध्यान ॥
की गरमी आ गई भाईया । की ढुंढो ठंडी छाईँया ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बसंत नेमा जी सादर, सुन्दर शिक्षाप्रद रचना. ग्रीष्म में रहन सहन और खान पान के बदलाव पर जोर देती सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें.
आदरणीय कुंती जी, केवल जी , लक्षमणजी एव प्राची दीदी ... कविता को मान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ,,, आप लोगो की हौसला अफजाई आंगे बढ्ने की प्रेरणा देता रहेगा ........
ग्रीष्म ऋतु के आगमन का एहसास समेटी सुन्दर रचना के लिए बधाई आ० बसंत नेमा जी
आपके उपयोगी सुझाव मान्य, सभी सदस्यों को मान्य होना और अमल में लाना चाहिए
सब अपने स्वास्थ्य का ध्यानं रखे | बसंत नेमा जी ने ठंडक पहुचाई, बधाई
बहुत सुंदर प्रस्तुति है नेमा जी , इसमें ठंडक के साथ साथ कुछ उपाय भी है जो रचना को सजीवता प्रदान कर रहा है . आप को बहुत 2
बधाई . सादर कुंती
आ0 बसन्त नेमा जी, बहुत सुन्दर ज्ञानपरक। बधाई स्वीकारें। सादर,
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