जिन्दगी का जबाब
कल राह मे जिन्दगी से मुलाकात हो गयी ।
पूछा जो एक सवाल* तो जिन्दगी नाराज हो गयी।
बोली देता है मुझको दोष, बता तुने क्या अच्छा किया है ।
मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।
लोभ मोह लालच के भँवर मे तुने , खुद को फँसा लिया है ।
चादर से ज्यादा तुने खुद, उम्मीदो को फैला दिया है ।
मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।
कही स्वार्थ के झुले मे झूला, कही संस्कार मर्यादा भूला ।
भूल गया तू परम्परा सारी, आधुनिकता ने तेरी मति है मारी ।
जीयो और जीने दो का, मंत्र तुने भूला दिया है ।
मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।
रीति रिवाजो को तुने भुलाया, माया को अपना धरम बनाया ।
कही ईषा की आग मे जलता, कही अहँकार बस क्रोध मे मरता ।
खुद तूने ही अपना जीवन , पतन की खाई मे धकेल दिया है
मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
* जिन्दगी तू उतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ?
Comment
रचना के मूल भाव से पूरी तरह सहमत हूं, सादर
श्री गनेश सर , श्री प्रदीप जी , आ. प्राची दीदी , श्री योगी जी श्री राम शिरोमणी जी . रचना पसन्द आई उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद ...
कही स्वार्थ के झुले मे झूला, कही संस्कार मर्यादा भूला ।
भूल गया तू परम्परा सारी, आधुनिकता ने तेरी मति है मारी ।
जीयो और जीने दो का, मंत्र तुने भूला दिया है ।
मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।
जिंदगी को अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से परिभाषित हैं ! बहुत सार्थक और सुन्दर बात कही है आपने
ऐ जिन्दगी गले लगा ले ...रचना पर और समय चाहिए था आदरणीय बसंत नेमा जी । बधाई इस प्रस्तुति पर ।
ज़िंदगी से सार्थक वार्तालाप...
बधाई आ० बसंत नेमा जी
अपने ही जाल में घिरा मानव..वाह
बधाई.
आदरणीय बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online