For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुरदुरी हथेलियाँ 

कटी  फटी उंगलियाँ 
पच्चीस की उम्र में 
पचास के जैसी चेहरे पर
प्रौढ़ता की  लकीरें 
दस बीस इंटों से भरा तसला
सर पर ढोती 
बीच- बीच में दूर एक झाड़ी पर 
बंधे पुराने चिथड़ों से बने 
झूले पर नजर डालती ,
ना जाने उसका नन्हा 
कब भूख से बिलबिलाने लगे 
सोचकर अपने भीगे ब्लाउज को 
अपनी फटी धोती के पल्लू से छुपाती 
चढ़ी जा रही है  
हर सीढ़ी को  अपनी किस्मत 
की कहानियाँ सुनाती 
दूर कहीं से आवाज आ रही है 
मजदूर एकता जिंदाबाद 
मजदूर दिवस की बधाई हो !!!
******************************

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2013 at 9:10pm

आदरणीया आपकी बात से सहमत हूं और मुझे यह लग भी रहा था कि आपने लकीरें के लिए यह शब्द प्रयोग किया है। मैंने अपनी टिप्पणी में यह उल्लेख भी किया है। मेरा निवेदन यह था कि दूसरी पंक्ति अपने आप में पूर्ण है इसलिए पहली पंक्ति में चेहरे के पहले जैसी का प्रयोग अखर रहा है। मेरे विचार से वहां जैसे अधिक उपयुक्त होगा।
आप मुझसे अधिक जानकार हैं इसे बेहतर आप ही समझ सकती हैं इसलिए एक बार फिर से अपना शंका समाधान चाहूंगा। आपने मेरे कहे को महत्व दिया इसके लिए आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 9:09pm

केवल प्रसाद जी रचना के मर्म से प्रभावित होने के लिए हार्दिक आभार |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 9:05pm

आ0 राजेश कुमारी जी,   मजदूर जो मजदूरी करता है, उसका ध्यान केवल मेहनत पर होता है।  तभी तो वह अधिक से अधिक ईंटें कम समय में पहुंचाती है, ताकि वह अपने बच्चे पर भी नजर रख सके।  हां!  मां की ममता ही ...उसकी फटी धोती से ज्यादा अहम है। मर्म को छूती सजीव चित्रण।    हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 8:49pm

आदरणीय कुंती जी आपके अनुमोदन ने मेरी लेखनी को जो मान दिया उसके लिए दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 8:47pm

ब्रजेश कुमार जी बहुत ख़ुशी हुई देख कर कि आपने रचना को उसके मर्म तक पहुचने के लिए वक़्त दिया आपका सुझाव सही होता यदि मैंने चेहरे के लिए जैसी शब्द प्रयोग किया होता किन्तु जैसी शब्द यहाँ लकीरों (जो की स्त्री लिंग में है )के लिए प्रयोग किया है (पचास साल के चेहरे पर जो प्रौढ़ता की लकीरें होती हैं यहाँ बात उस सन्दर्भ में की है )एक बार फिर से लकीरों को ध्यान में रखते हुए पढ़िए आपका संशय दूर होगा । हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 8:41pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाह जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह वर्धन करती है हार्दिक आभार आपका । 

Comment by coontee mukerji on May 1, 2013 at 6:26pm

राजेश कुमारी जी , यह दृश्य हम आये दिन देखते हैं, लेकिन आपने शब्दों में चित्रण कर सोचने पर मजबूर कर दिया है . मज़दूर दीवस

की एक और विडम्बना ./सादर/ कुंती.

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2013 at 5:51pm

आपने बिलकुल सटीक चित्र खींचा! मजदूर दिवस की हकीकत इससे अधिक कुछ नहीं। आपको ढेरों बधाई इस सुन्दर चित्रण पर।

वैसे तो आप स्वयं ज्ञानी हैं मेरा यूं कहना उचित तो नहीं लेकिन मुझे एक छोटी सी बात अखरी तो आपसे साझा कर रहा हूं। आप इस मेरा मार्गदर्शन करें।

आपकी दो पंक्तियां हैं –

//पचास के जैसी चेहरे पर

प्रौढ़ता की लकीरें// 

मेरे विचार से ‘लकीरें’ के लिए ‘चेहरे’ से पहले ‘जैसी’ का प्रयोग उपयुक्त नहीं। इसे ‘जैसे’ रहना चाहिए। सादर!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 1, 2013 at 5:13pm
हर सीढ़ी को  अपनी किस्मत 
की कहानियाँ सुनाती 
aadarniya rajesh kumari ji 
saadr 
maarmik aur satya 
badhai 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 2:24pm

राजेश कुमार झा जी   मेरी रचना में  अपने स्वर मिलाकर जो मान दिया उसके लिए दिल से आभारी हूँ । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service