तब से मेरी भारत माँ, बदहाल बहूत हैं.
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है
Comment
गरूवर सौरभ जी और मित्रवर वीनस जी से मैंने पूर्व में भी बहूत कुछ सीखा है और ये प्रक्रिया निरंतर जारी रहेगी आप दोनों के अपार स्नेह के प्रति मन सदा ऋणी रहेगा
सौरभ भाई.....
वन्दन
मैंनें मात्र एक जगह सुधारा है
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है
सुधारी हुई पंक्ति ये है
"मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहुत है"
मैंने बहूत को बहुत लिखा है...बाकी ज्यों का त्यों है
सादर
आदरणीया यशोदा जी, ’तह संज्ञा का स्त्रीलिंग प्रारूप व्यवहृत होता है. अतः आपकी सुधारी गयी पंक्ति का वास्तविक रूप यों होगा -
मजबूर खामोशियों की तह में भूचाल बहुत हैं.
सादर
ज़नाब अंसारी भाई जान
बेहतरीन ग़ज़ल पेश की आपने
मैं इस काबिल तो नहीं कि कुछ कह सकूँ
फिर भी कहूँगी हिन्दी में मात्राओं का महत्व बड़ा होता है
उदाहरण प्रस्तुत है आप ही की रचना में
"बेबस,मजलूमों के आहों का सौदा करनेवालों,
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है"
दूसरी लाईन को सुधार कर लिख रही हूँ
"मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहुत है"
अक्सर रोमन अंग्रेजी में हिन्दी के शब्दों की मात्राओं में फेर-बदल हो जाया करती है
गलती आपकी कतई नहीं है......इसे मैं टंकण की गलती मानती हूँ
आलोचक नहीं हूँ मैं....पर हिन्दी से बहुत प्यार है मुझे
क्षमा याचना सहित
यशोदा
सियासतदारों के प्रति नाराजगी प्रदर्शित करती सुन्दर गजल आदरणीय अंसारी जी.वरिष्ठ जनो की सलाह पर अमल कर गजल के निखार को बढाने का प्रयास करें.सादर.सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें.
आदरणीय आपका प्रयास प्रशंसनीय है। आपने जो भाव पिरोया है वह बहुत सुन्दर है। बधाई!
गुरूजनों से जो मार्गदर्शन मिला है उसका लाभ उठाएं। हम सबके साथ आप भी सीखें।
सादर!
Noorain Ansari साहब , आखिरी दोनों अश'आर बहुत भावपूर्ण लगे ...पर गज़ल में शाब्दिक व व्याकरणिक अशुद्धियाँ दिखाई दीं. ... जैसे - मिशाल नहीं मिसाल , बहूत नहीं बहुत, सियासत तूने जबसे गोद ली बेईमानों कों.... नहीं ....सियासत तूने जबसे गोद लिया बेईमानों कों, हमारी वोट ....की जगह... हमारे वोट , हमारी सब्र नहीं हमारा सब्र ..... कृपया इन अशुद्धियों पर भी ध्यान दें| बाकी बहर वगैरह के बारे में तो मुझे भी नहीं पता|
नूरैन साहब,
ग़ज़ल पढ़ने के बाद देखा कि जो कहना है उसे पहले ही अन्य लोग कह चुके हैं
सौरभ जी और सीमा अग्रवाल जी के कहे पर ध्यान देने की जरूरत है ...
सादर शुभकामनाएं
प्रयास अच्छा लगा ...रचना पोस्ट करने से पूर्व टंकण को भी सुनिश्चित अवश्य करिए ...बार बार बहुत को बहूत पढ़ना खल रहा है
मजबूर खामोशियों के तह में भूचाल बहूत है
इससे सहमत परन्तु मलाल कुछ देश भक्तों को ही है. आगे देखिये फिर संख्या से पता चल जायेगा. हाँ इस बात का मलाल जरूर है की कैसे राष्ट्रिय चरित के लोगों को आगे ला पायेंगे.
सादर बधाई , सर जी .
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