कैसे बन जाता कोई नपुंसक
कैसे हो जाती खामोश जुबान
कैसे हज़ारों सिर झुक जाते
कैसे बढते क़दम रुक जाते
कुंद कर दिया गया दिमाग
पथरा गई हैं संवेदनाएं
किसी साज़िश के तहत
खत्म कर दी गई हैं संभावनाएं
मैंने कहा साथी!
क्या हुआ कि बंद हैं राहें
गूँज रही हर-सू आहें-कराहें
क्या हुआ कि खो गई दिशाएँ
क्या हुआ कि रुक गई हवाएं
याद करो,
हमने खाई थी शपथ
विपरीत परिस्थितियों में
हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं
और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ
जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें
और भगायेंगे दिलों से डर
और बनाएंगे पृथ्वी को
एक सुन्दर घर.......
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याद करो,
हमने खाई थी शपथ
विपरीत परिस्थितियों में
हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं
और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ
जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें
और भगायेंगे दिलों से डर
और बनाएंगे पृथ्वी को
एक सुन्दर घर.......
आत्मविश्वास जगाती हुई प्रस्तुति बहुत उम्दा हार्दिक बधाई आपको |
बहुत ही सुन्दर! आपको ढेरों बधाई!
याद करो,
हमने खाई थी शपथ
विपरीत परिस्थितियों में
हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं
और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ
जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें
और भगायेंगे दिलों से डर
और बनाएंगे पृथ्वी को
एक सुन्दर घर....................बहुत सुन्दर भाव.
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब इतनी सुन्दर रचना पर.
जिस गहनता से, गंभीर तथ्य के सहज दिखाई देती रचना में भाव आप पिरो जाते है, उसे समझने हेतु दो बार
पढने पर रचना बिंदु का महत्त्व समझ पाया | इस प्रथ्वी को सुन्दर घर बनाने के शपथ लेने वालों को अपने वादे
की याद दिलाते हुए एक रचना धर्मिता का सही अर्थो में आपने पालन किया है | यही इन्संनी जज्बे का तकाजा
भी है | मेरा प्रणाम भाई श्री अनवर सुहैल भाई हार्दिक बधाई
ने कहा साथी!
क्या हुआ कि बंद हैं राहें
गूँज रही हर-सू आहें-कराहें
क्या हुआ कि खो गई दिशाएँ
क्या हुआ कि रुक गई हवाएं
याद करो,
हमने खाई थी शपथ
विपरीत परिस्थितियों में
हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं
और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ
जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें
और भगायेंगे दिलों से डर
और बनाएंगे पृथ्वी को
एक सुन्दर घर..........भाईजान .....क्या याद करें और क्या भूलें....आज समय चीख चीख कर बहुत कुछ कह रहा है......सुनने को कान चाहिये.....बहुत सशक्त रचना . /सादर / कुंती
कैसे हज़ारों सिर झुक जाते
कैसे बढते क़दम रुक जाते.........पंक्तियों में छुपा तल्ख़ प्रभावकारी है .......
कुंद कर दिया गया दिमाग
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खत्म कर दी गई हैं संभावनाएं................यही तो हो रहा है
वादे टूटे कथनी करनी से इतर हुयी पर क्यों ? यही तो प्रस्तावना है कविता की .....सुन्दर सम्प्रेषण बधाई अनवर जी
आमीन
सादर बधाई
आदरणीय महोदय जी
आदरणीय अनवर सुहैल साहब, आपके मानवीय बिम्ब एक बारग़ी चकित कर दते हैं. समान विचारधर्मियों का सम्मिलन एक सहज प्रक्रिया है. परन्तु, विश्वास में हुई दरकन असहजता की उमस से वैचारिकता कितना कष्ट देते हैं इसका आपने सुन्दर वर्णन किया है. आपकी रचनाओं का बाह्य स्वरूप भले शांत दिखे, उसकी अंतर्धारा अत्यंत तीव्र होती है जिसका अहसास गोते लगा कर ही किया जा सकता है.
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
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