For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे बन जाता कोई नपुंसक

कैसे हो जाती खामोश जुबान

कैसे हज़ारों सिर झुक जाते

कैसे बढते क़दम रुक जाते

 

कुंद कर दिया गया दिमाग

पथरा गई हैं संवेदनाएं

किसी साज़िश के तहत

खत्म कर दी गई हैं संभावनाएं

 

मैंने कहा साथी!

क्या हुआ कि बंद हैं राहें

गूँज रही हर-सू आहें-कराहें

क्या हुआ कि खो गई दिशाएँ

क्या हुआ कि रुक गई हवाएं

याद करो,

हमने खाई थी शपथ

विपरीत परिस्थितियों में

हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं

और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ

जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें

और भगायेंगे दिलों से डर

और बनाएंगे पृथ्वी को

            एक सुन्दर घर.......

 

 

Views: 386

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 7, 2013 at 11:12am

याद करो,

हमने खाई थी शपथ

विपरीत परिस्थितियों में

हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं

और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ

जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें

और भगायेंगे दिलों से डर

और बनाएंगे पृथ्वी को

            एक सुन्दर घर.......

 आत्मविश्वास जगाती हुई प्रस्तुति बहुत उम्दा हार्दिक बधाई आपको |

Comment by बृजेश नीरज on May 5, 2013 at 10:54pm

बहुत ही सुन्दर! आपको ढेरों बधाई!

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 5, 2013 at 3:13pm

याद करो,

हमने खाई थी शपथ

विपरीत परिस्थितियों में

हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं

और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ

जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें

और भगायेंगे दिलों से डर

और बनाएंगे पृथ्वी को

            एक सुन्दर घर....................बहुत सुन्दर भाव.

 बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब इतनी सुन्दर रचना पर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 4, 2013 at 7:31pm

जिस गहनता से, गंभीर तथ्य के सहज दिखाई देती रचना में भाव आप पिरो जाते है, उसे समझने हेतु दो बार

पढने पर रचना बिंदु का महत्त्व समझ पाया | इस प्रथ्वी को सुन्दर घर बनाने के शपथ लेने वालों को अपने वादे

की याद दिलाते हुए एक रचना धर्मिता का सही अर्थो में आपने पालन किया है | यही इन्संनी जज्बे का तकाजा

भी है | मेरा प्रणाम भाई श्री अनवर सुहैल भाई हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on May 4, 2013 at 5:35pm

ने कहा साथी!

क्या हुआ कि बंद हैं राहें

गूँज रही हर-सू आहें-कराहें

क्या हुआ कि खो गई दिशाएँ

क्या हुआ कि रुक गई हवाएं

याद करो,

हमने खाई थी शपथ

विपरीत परिस्थितियों में

हम झुकेंगे नही, रुकेंगे नहीं

और मिलकर बनायेंगे इक कारवाँ

जलाएंगे दिलों में विरोध की मशालें

और भगायेंगे दिलों से डर

और बनाएंगे पृथ्वी को

            एक सुन्दर घर..........भाईजान .....क्या याद करें और  क्या भूलें....आज समय  चीख चीख कर बहुत कुछ कह रहा है......सुनने को कान चाहिये.....बहुत सशक्त  रचना . /सादर  / कुंती

Comment by seema agrawal on May 4, 2013 at 2:05pm

कैसे हज़ारों सिर झुक जाते

कैसे बढते क़दम रुक जाते.........पंक्तियों में छुपा तल्ख़  प्रभावकारी है .......

कुंद कर दिया गया दिमाग

xxxxxxxxxxxxxxxxx

xxxxxxxxxxxxxxxxx...

खत्म कर दी गई हैं संभावनाएं................यही तो हो रहा है 

वादे टूटे कथनी करनी से इतर हुयी पर क्यों ? यही तो प्रस्तावना है कविता की .....सुन्दर  सम्प्रेषण बधाई अनवर जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 4, 2013 at 2:04pm

आमीन 

सादर बधाई 

आदरणीय महोदय जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2013 at 12:00pm

आदरणीय अनवर सुहैल साहब, आपके मानवीय बिम्ब एक बारग़ी चकित कर दते हैं. समान विचारधर्मियों का सम्मिलन एक सहज प्रक्रिया है. परन्तु, विश्वास में हुई दरकन असहजता की उमस से वैचारिकता कितना कष्ट देते हैं इसका आपने सुन्दर वर्णन किया है. आपकी रचनाओं का बाह्य स्वरूप भले शांत दिखे, उसकी अंतर्धारा अत्यंत तीव्र होती है जिसका अहसास गोते लगा कर ही किया जा सकता है.

इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2013 at 11:43am
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service