बस पांच मिनट का पड़ाव
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प्रिय सखी शशि दिल से आभार आपका |
आदरणीय सौरभ जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया लेखनी में ऊर्जा प्रवाहित करती है आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका |
आदरणीय rajesh kumar जी,बहुत बढ़िया प्रस्तुति... के लिए बधाई.
यह सत्य ही है कि इंसान की शक्ति और सोच से ही मशीनों का प्रादुर्भाव हुआ. हथोड़ा भी एक मशीन है. जब तक इंसान मशीन को चलाता रहे तब तक ठीक है, मगर उल्टा कभी ना हो...
जीवन का एक कड़वा पहलू , क्या करे इंसान , ये मशीनी मानव उनका सत्य उन्हीं के साथ जीवंत है , लेकिन शिकायत का कोई शब्द नहीं
सादर / कुंती .
bahut sundar rchna rajesh kumari ji ardik badhai aapko
पेट की आग को हुनर की झींसियाँ किस तरीके बाँधती हैं को आपने अपनी रचना में सुन्दरता और पूरी गंभीरता से स्थान दिया है, आदरणीया राजेशकुमारीजी.
बहुत-बहुत बधाई इस सुगढ़ रचना के लिए जो वैचारिकतः संतुष्ट करती है.
सादर
आपको रचना पसंद आई हार्दिक आभार बसंत नेमा जी
बहुत सुन्दर हकीकत को बँया करती एक सुन्दर रचना .... बधाई ...
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