भिखारन की निष्ठा
मेरे घर के करीब भिखारियों का एक परिवार रहता था. चार बच्चे और पति – पत्नी. सुबह तड़के ही सभी घर से निकल जाते और गोधूली बेला तक सभी वापस आ जाते.
एक दिन क्या हुआ कि पति और बच्चे तो आ गये लेकिन भिखारन को आने में देर हो गयी . उसके आते आते रात के आठ बज गये. सभी भूखे थे. अतः भिखारन ने जल्दी से चावल की हांडी चूल्हे पर रख दी. चावल जब पक गया तो उसने अपने पति और बच्चों को पहले खिला दिया. बाद में जब वह खाने बैठी तो देखा हांडी में चावल के साथ एक छिपकली भी पक गयी है. भिखारन के होश उड़ गए.
‘’ हे भगवान! दया करो! मैंने अपने परिवार को मौत का भात खिला दिया. अब क्या होगा? ‘’
उसने कातर नज़रों से अपने बच्चों की ओर देखा जो खाना खाते ही सो गये थे .पास में पति भी खर्राटे भर रहा था. भिखारन ने मन ही मन कुछ फ़ैसला किया और छिपकली को एक तरफ कर बचे-खुचे भात को नमक मिर्च मिलाकर खा लिया यह सोच कर कि अगर मरना है तो सभी साथ मरेंगे. वह रात भर जागकर सभी की ओर ताकती रही .
सुबह के पाँच बजे उसकी आँख लग गयी. एक तो दिन भर की थकान, उसपर रात भर का जागरण. वह गहरी नींद में चली गयी. बच्चों ने जब उसे झकझोर कर जगाया तो वह हड़बड़ाकर उठ बैठी. पहले तो उसे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जब होश आया तो वह जोर जोर से रोने लगी. अपने परिवार को जिंदा देख कर खुशी से उसकी रुलाई थम नहीं रही थी. आस-पास के लोग वहाँ इकट्ठे हो गये. जब लोगों को किस्से का पता चला तो सभी भिखारन की निष्ठा देख कर दंग रह गये.
( लखनऊ की एक सच्ची घटना - मेरी सहायिका मीनू ने सुनायी थी. मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
भाई नीरज जी , आपका विश्लेषण मेरे लिये बहुत मायने रखती है . आप मेरी मार्गदर्शन करते रहें ऐसी मेरी आशा है . सादर / कुंती .
आदरणीय कुन्ती जी बहुत सुन्दर और मार्मिक कथा। इसे साझा करने के लिए आपका आभार!
भारतीय संस्कारों में पली बढ़ी कोई भी स्त्री ऐसा ही करेगी। वह भिखारिन तो बाद में थी पहले वह मां और पत्नी थी और हर भारतीय स्त्री अपने परिवार से अपार स्नेह रखती है और कष्ट सहकर उसे सींचती है। ऐसे में उसे नष्ट होता कैसे देख सकती है। भारतीय स्त्री को नमन! इस कथा का शीर्षक 'भिखारिन की निष्ठा' कुछ ऐसा इंगित कर रहा है कि भिखारिन होने के नाते उससे निष्ठा की अपेक्षा नहीं थी।
मार्मिक किन्तु पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करती कथा .......जिनकी आज हमारे समाज को बहुत ज़रुरत है।सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई कुंती जी।
मार्मिक कथा
सादर बधाई
पढ़ कर पारवारिक मूल्यों के प्रति आस्था से संस्कारित इस मिटटी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी ...यहाँ बात एक भिखारिन की निष्ठा की नहीं बल्कि एक पारिवारिक प्रेम की है ...हार्दिक धन्यवाद घटना को साझा करने के लिए
जाको राखे सांइया मार सके नहि कोय ! बहुत ही ह्रदय विदारक घटना.सुन्दर प्रस्तुति.
सच में पढ़ते पढ़ते तो एक बार मेरे भी होश उड़ गए थे पर बाद में अटकी सांस वापस आई शुक्र है सभी ठीक ठाक रहे किन्तु इस घटना ने एक माँ के ह्रदय को खोल कर रख दिया जब परिवार ही नहीं रहेगा तो वो जीकर क्या करेगी ऐसी होती है माँ ,प्रिय कुंती जी हार्दिक बधाई ये घटना साझा करने के लिए।
आ0 कुन्ती जी, अतिसुन्दर, जाको राखे साइयां मार सके न कोय। बधाई स्वीकारें। सादर,
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